
◆ हमारे लेखन के अन्तर्गत पंचमाक्षर मे अनुस्वार का व्यवहार नहीँ है; क्योँकि पंचमाक्षर अनुस्वारयुक्त होता है। उसके तद्भव वा देशज रूप मे आवश्यकतानुसार ध्वनिप्रभाव को न्यून और अधिक करने के लिए अनुनासिक का व्यवहार होता है।
◆ आप हमारे द्वारा प्रयुक्त किसी शब्दप्रयोग को लेकर भ्रमित वा शंकित होँ वा दोनो होँ तो निस्संकोच प्रश्न कर सकते हैँ।
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
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वीडियो-माध्यम से प्रतियोगी विद्यार्थियोँ को हिन्दीभाषा का ज्ञान करानेवाला गुरु-घण्टाल अमरनाथ गुप्ता को यह नहीँ मालूम कि कहाँ और क्योँ ‘ह्रस्व उ’ की मात्रा लगायी जाती है और कहाँ और क्योँ ‘दीर्घ ऊ’ की मात्रा। उसे यह भी बोध नहीँ कि आदरसूचक शब्द का प्रयोग कैसे किया जाता है।
हमने इसे सिद्ध करने के लिए यूट्यूबर अमरनाथ गुप्ता-द्वारा ही लिखे शब्दोँ को साक्ष्य के रूप प्रस्तुत किया है। हमने यहाँ उसके शैक्षणिक वीडियो के दो स्थिर चित्र प्रदर्शित किये हैँ। दोनो चित्रोँ मे जो वाक्य दिख रहे हैँ, एक सिरे से अशुद्ध हैँ। हम पहले अमरनाथ गुप्ता-द्वारा एक ही अर्थ मे प्रयुक्त दो शब्दोँ को दिखायेँगे। आप दोनो स्थिर चित्रोँ को देखेँ। वहाँ बड़े आकार मे जो दो वाक्य दिख रहे हैँ, उसके प्रथम चित्र मे पहला शब्द ‘गुरूजी’ दिख रहा है और द्वितीय चित्र मे ‘गुरु जी’। इसप्रकार यहाँ सिद्ध हो चुका है कि हिन्दीभाषा और व्याकरण का बाज़ारू यूट्यूबर अमरनाथ गुप्ता उक्त दोनो प्रयोग (‘प्रयोगोँ’ अशुद्ध है।) को लेकर भ्रमित है। ऐसे ही हिन्दीभाषा और व्याकरण के ठीकेदार (यहाँ ‘ठेकेदार’ अशुद्ध है।) ‘पुरुष-पुरूष’, ‘रुपया-रूपया’ शब्दोँ की शुद्धता के साथ न्याय नहीँ कर सकते, परिणामत: विद्यार्थी एक-एक अंक के लिए इस न्यायालय से उस न्यायालय तक एड़ियाँ घिसटते रह जाते हैँ और अमरनाथ गुप्ता-जैसे धन्धेबाज़ यूट्यूबर अपना उल्लू सीधा कर खिसक लेते हैँ।
विद्यार्थियोँ को जानना-समझना होगा कि शुद्ध शब्द ‘गुरु’ होता है, न कि ‘गुरू’। गुरु ‘उपदेश करना’ के अर्थ मे ‘गृ’ धातु का शब्द है।
वीडियोबाज़ अमरनाथ गुप्ता निर्लज्जता की पराकाष्ठा पर पहुँच चुका है। वह प्रतिरात्रि ९.३० बजे से जो अपना वीडियो दिखाता आ रहा है, उसमे प्रयुक्त दिखते सारे वाक्य अशुद्ध रहते हैँ; क्योँकि हिन्दीवाक्य-गठन करने का नियम होता है, जिसे हमने उसके वीडियो मे दिखाये जा रहे अशुद्ध वाक्योँ को शुद्ध करते हुए कई बार बताये हैँ।
उसका पहला वाक्य देखेँ :–
“गुरूजी ने बताया अपने बचपन का किस्सा! आपने सुना?”
उक्त वाक्य मे कर्त्ता, कर्म, क्रियादिक का किस क्रम मे प्रयोग होता है तथा कहाँ कौन-सा विरामचिह्न प्रयुक्त होता है, अमरनाथ गुप्ता को इनका ज्ञान नहीँ। उसे यह भी समझ नहीँ कि क़िस्सा ‘सुनाया’ जाता है वा ‘बताया’ जाता है। विद्यार्थी जान-समझ लेँ– क़िस्सा सुनाया जाता है, बताया नहीँ जाता।
हम इसका अपनी अगली पुस्तक मे सकारण उल्लेख करेँगे। हम यहाँ समयाभाव के कारण वाक्य का शुद्ध रूप प्रस्तुत करेँगे।
◆ प्रथम वीडियो के स्थिर चित्र का शुद्ध वाक्य :–गुरु जी ने अपने बचपन का क़िस्सा सुनाया। आपने सुना?
उसके दूसरे वीडियो के स्थिर चित्र का वाक्य देखेँ :–
सीखने का गज़ब नुस्खा बता दिया गुरु जी ने! आपने सुना?”
◆ द्वितीय वीडियो के स्थिर चित्र का शुद्ध वाक्य :– गुरु जी ने सीखने का उत्तम ढंग बता दिया। आपने सुना?
अमरनाथ गुप्ता शिक्षा-जगत् का एक ऐसा ‘झोलाछाप डॉक्टर’ सिद्ध हो रहा है, जो धन्धा करने के लिए जाने कितने विद्यार्थियोँ का भविष्य बरबाद करता रहा है। उसे नहीँ बोध कि ‘नुस्खा’ (यह अशुद्ध है और आपत्तिजनक प्रयोग भी।) का कहाँ प्रयोग किया जाता है। वैसे भी उसे न तो ‘गज़ब नुस्खा’, ‘किस्सा’ की शुद्ध वर्तनी लिखने का बोध है और न ही यह समझ है कि उसके द्वारा प्रयुक्त ! यह चिह्न कब और कहाँ व्यवहृत होता है।
अमरनाथ गुप्ता के सारे विद्यार्थी उसके हाथोँ मे घातक खेल खेल रहे हैँ।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १ मार्च, २०२५ ईसवी।)