आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की आयोजन के प्रति मुक्त प्रतिक्रिया

हिन्दीभाषा-उत्थान-हेतु ‘अमर उजाला’ की शानदार पहल!

हिन्दी-दिवस की पूर्व-संध्या मे ‘अमर उजाला’ के कार्यालय-सभाकक्ष मे ‘हिन्दी हैँ हम’ के अन्तर्गत प्रयागराज की संस्थाएँ, लेखक, साहित्यकार, कवि आदिक अपने-अपने स्तर से हिन्दी-उत्थान के लिए किस-किस प्रकार की योजनाएँ बनायी हैँ? वे भाषा-शुद्धता के कितने पक्षधर हैँ? वे परम्परा को लेकर चलना चाहते हैँ वा परम्परा को छोड़कर वा फिर परम्परा को साथ लेकर कुछ नया करना चाहते हैँ?– इन विषय-बिन्दुओँ पर एक प्रभावकारी बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया गया था, जिसके केन्द्र मे भाषा-शुद्धता का प्रश्न अन्त तक बना रहा।

विषय-प्रवर्तन अमर उजाला, प्रयागराज के सम्पादक नवीन सिंह पटेल ने किया और संचालन भी।

भाषा-शुद्धता के एकमात्र पक्षधर के रूप मे मै रहा तथा प्रथम और समापन वक्ता के रूप मे भी। मेरा मानना था कि ”बोलचाल की भाषा मे भी शब्दशुद्धता होनी चाहिए, जिसमे सहजता और सरलता हो; क्योँकि आप जो कहेँगे, वह दूर तक जायेगा, जिससे समूचा समाज प्रभावित होगा। जब भाषा मे शुद्धता की बात कही जाती है तब पढ़े-लिखे लोग भी समझते हैँ कि संस्कृतनिष्ठ कठिन शब्दप्रयोग ही शुद्धता है, जबकि ऐसा नहीँ है। शुद्धता वह है, जिसमे आप सहजतापूर्वक सरल शब्दोँ मे शुद्ध वर्तनी के साथ आत्माभिव्यक्ति कर सकेँ।”

संचालक नवीन सिँह पटेल ने विज्ञान परिषद्, प्रयागराज के प्रतिनिधि डॉ० आर० पी० मिश्र से विज्ञान के क्षेत्र मे परिषद् की गतिविधियोँ पर प्रश्न किया, ”आपके परिषद् ने इधर कौन-से काम किये हैँ तब उन्होँने शब्दकोश-लेखन की बात बतायी, जिसे संचालक ने यह कहकर चर्चा आगे बढ़ा दी कि यह काम तो बहुत पहले ही किया जा चुका था; अब यह बतायेँ कि विज्ञान-लेखन मे हिन्दी-शब्दप्रयोग की दुरूहता से आप कैसे निबटते हैँ तब डॉ० मिश्र ने बताया, ”विज्ञान-लेखन मे हिन्दी-शब्द के प्रयोग आड़े आ रहे हैँ, जिसके कारण उसकी सम्प्रेषणीयता बाधक बनती जा रही है। इसे दूर करने की दिशा मे हमारी परिषद् प्रयत्नशील है। जहाँ तक लेखन मे शुद्धता का प्रश्न है, उसके प्रति सजग रहना ही चाहिए।”

शिक्षक विवेक निराला ने आयोजन मे उपस्थित हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमन्त्री कुन्तक मिश्र को लक्ष्य करके कहा, ”हिन्दी साहित्य सम्मेलन तो वेण्टिलेटर पर है। सम्मेलन को कोई जानता तक नहीँ। जवाब मे कुन्तक मिश्र ने संकेत की भाषा मे स्वीकार करते हुए कहा, ”हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने अब नये सिरे से भाषा-उत्थान के लिए काम करना आरम्भ कर दिया है, जिसमे परम्परागत साहित्य के साथ हमने विज्ञान-प्रौद्योगिकी- क्षेत्र मे भी प्रवेश करना आरम्भ कर दिया है।”

संचालक ने जब कवि श्लेष गौतम और कवयित्री संध्या नवोदिता से प्रश्न किया, ”आप सारी भाषाओँ के साथ हिन्दी को साथ लेकर बढ़ने के पक्षधर हैँ वा हिन्दी का बहुविध उत्थान करते हुए, उसे राष्ट्रभाषा बनाने का समर्थन करते हैँ तब दोनो का विचार यह था कि सभी भाषाओँ को लेकर चलना होगा, जबकि नवोदिता ने सुस्पष्ट प्रश्न कर दिया, “हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का आधार क्या है?”

यश मालवीय, विवेक निराला, अजीत सिंह तथा अनुपम परिहार, श्लेष गौतम तथा संध्या नवोदिता ने आरम्भ मे शुद्ध हिन्दी-प्रयोग को एक सिरे से ख़ारिज़ कर दिया था; किसी ने संग्रहालय की वस्तु, किसी ने भाषा-विकास के लिए अवरोधक, किसी ने लोकभाषा के साथ अन्याय तो किसी ने ‘मुखसुख’ को व्याकरण का नियम ही बता दिया, जबकि उनमे से अधिकतर अध्यापक हैँ; अधिकतर ऐसे भी थे, जो शुद्ध शब्द-व्यवहार कर रहे थे; परन्तु शुद्धता का विरोध भी कर रहे थे। इतना ही नहीँ, यह भी कह रहे थे ‘हंस’ और ‘हँसना’ मे शुद्धता बरतनी चाहिए। कुछ ने नुक़्ताप्रयोग करने का समर्थन किया। कुलमिलाकर, शुद्धता अपनाने को लेकर हाँ-नहीँ, और ‘हाँ’ भी था।

अन्त मे जब मैने बताया, “जब भी शुद्धता की बात की जाती है तब लोग यही समझ लेते हैँ कि ‘भारी-भरकम’ संस्कृतनिष्ठ शब्दोँ का प्रयोग होगा, जबकि ऐसा नहीँ है। शुद्धता का अर्थ यह है कि उच्चारण और लेखन-स्तर पर आप जिस शब्द वा वाक्य का प्रयोग कर रहे होते हैँ, उसमे वर्तनी की अशुद्धि नहीँ रहनी चाहिए। इसके लिए मैने दवाइयाँ-दवाईयां, लीजिए-लिजिए, भाइयोँ-भाईयोँ, विद्वज्जन-विद्वत्जनों इत्यादिक कई उदाहरण प्रस्तुत किये। मैने यह भी सुस्पष्ट कर दिया था,”मै भाषा-शुद्धता के साथ किसी क़ीमत पर समझौता नहीँ करूँगा।” अन्त मे, सबने इसे स्वीकार किया। इसप्रकार सुखद वातावरण मे बौद्धिक परिसंवाद का समापन हुआ।

अन्त मे, सम्पादक एवं संचालक नवीन सिंह पटेल ने समस्त विचारकोँ के प्रति अपना आभार-ज्ञापन किया। इसी अवसर पर एक सामूहिक छायांकन भी हुआ और अन्त मे सम्पादक की ओर से समस्त सहभागियोँ को ‘हिन्दी हैँ हम’ पत्रकयुक्त एक दैनन्दिनी भेँट की गयी।