●आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
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हमारी बात, हम तक रहे तो बेहतर है,
हमारा साथ, हम तक रहे तो बेहतर है।
चादर देखकर ही, पाँव हम पसारा करते,
हमारा ख़्वाब, हम तक रहे तो बेहतर है।
जनाब! आप तो हमारे रक़ीब हैं ठहरे,
हमारा हबीब, हम तक रहे तो बेहतर है।
अफ़्सान: चादर का, बेबाक होने को है,
हमारी रात, हम तक रहे तो बेहतर है।
बहुत सलीक़े से, महब्बत से बात होती है,
बात नफ़्रत की, हम तक रहे तो बेहतर है।
जाने कितनी बस्तियाँ, उजाड़ी हैं तुमने,
कुछ सिसकियाँ, हम तक रहें तो बेहतर है।
आग बोने की कला, हमने सीख ली है अब,
कुछ पलीते, हम तक रहें तो बेहतर है।
तुम्हारी तहज़ीब की बस्ती, हमने देखी है,
कुछ हक़ीक़त, हम तक रहें तो बेहतर है।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ३० मार्च, २०२४ ईसवी।)