धर्म के आधार पर वैमनस्यता फैलाने वालों को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए

बिखरे हुए इतिहास के एक पुराने पन्ने प्राचीन अरबी काव्य संग्रह ग्रंथ ‘सेअरूल-ओकुल’ के 257वें पृष्ठ में हजरत मोहम्मद से 2300 वर्ष पूर्व एवं ईसा मसीह से 1800 वर्ष पूर्व पैदा हुए लबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-तुरफा ने भारतवर्ष के सन्दर्भ में लिखा है कि-

“अया मुबारेकल अरज मुशैये नोंहा मिनार हिंदे।
व अरादकल्लाह मज्जोनज्जे जिकरतुन ॥

इस पद का तात्पर्य है कि हे भारत की पुण्य भूमि (मिनार हिंदे) तू धन्य है, क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझको चुना ।

क्या कथित भारतीय संस्कृति विरोधियों को यह सब ऐतिहासिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं ? प्रतीत होता है कि लबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-तुरफा की कविता सन्देह के घेरे में है या फिर विरोधियों की पहुँच से बहुत दूर । यदि इस कविता में तनिक भी सच्चाई है तो धर्म के आधार पर वैमन्यस्यता फैलाने वालों को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए । ज्ञान की धरती के पूज्य प्रभु के नाम पर नफरत की सियासत करने वालों को धर्म का त्याग कर देना चाहिए ।