विरामचिह्नो की उपयोगिता और महत्ता

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला
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 वाक्य मे सुस्पष्टता लाने के लिए, अर्थात् अर्थ का भाव  प्रकट करने के लिए विराम-चिह्नो के प्रयोग अनिवार्य माने गये हैँ। निस्सन्देह, विरामचिह्न की स्वतन्त्र सत्ता नहीँ होती; परन्तु महत्ता अवश्य होती है। एक ही वाक्य मे विरामचिह्नो के प्रयोग से अर्थ-परिवर्तन कैसे होता है, इसे ध्यानपूर्वक समझेँ।

इसी परिप्रेक्ष्य मे नीचे दिये गये कुछ उदाहरणो को देखा-समझा और अनुभव किया जा सकता है :–
★ पूर्ण, अल्प तथा सम्बोधन विरामचिह्नो के प्रयोग
१– उसे रोको मत जाने दो।
२– उसे रोको मत, जाने दो।
३– उसे रोको, मत जाने दो।
४– उसे रोको! मत, जाने दो।

यहाँ पहला वाक्य ‘अस्पष्ट’ वाक्य है। दूसरे शब्दोँ मे– यह अनुशासनविहीन वाक्य है।
दूसरा ‘स्पष्ट’ वाक्य है।
तीसरा ‘स्पष्ट’ वाक्य है।

ज्ञातव्य है कि दूसरे-तीसरे वाक्यो मे शब्द एक ही है; किन्तु विरामचिह्न अलग-अलग शब्दोँ मे लगने के कारण वाक्य मे अर्थ-परिवर्तन हो जाता है। ये दोनो ही वाक्य ‘अर्थ-परिवर्तित’ वाक्य भी कहलाते हैँ।

★ पूर्ण विरामचिह्न (।), अल्प विरामचिह्न (,), अल्प और प्रश्न विरामचिह्न (,+?), प्रश्न और विस्मय विरामचिह्न (?+!), विस्मय और प्रश्न विरामचिह्न (!+?) तथा सम्बोधन और पूर्ण विरामचिह्न (!+।) के प्रयोग :–
अब इन वाक्योँ को देखेँ :–
१– मलखान सिँह तोमर गये।
२– मलखान सिँह तो, मर गये।
३– मलखान सिँह, तो, मर गये?
४– मलखान सिँह तोमर गये?
५– मलखान सिँह तो, मर गये!
६– मलखान सिँह? तो मर गये!
७– मलखान सिँह! तो मर गये?
८– मलखान सिँह! तोमर गये।

★ अल्प विरामचिह्न और पूर्ण विरामचिह्न, योजकचिह्न तथा पूर्ण विरामचिह्न (- +।) के प्रयोग
अब इन वाक्योँ को भी देखेँ–
१– उत्कोच (रिश्वत) लेना, देना मना है।
२– उत्कोच (रिश्वत) लेना-देना मना है।

पहले वाक्य मे उत्कोच (रिश्वत) ‘लेने; किन्तु न देने’ की बात कही गयी है।

दूसरे वाक्य मे उत्कोच (रिश्वत) ‘न लेने और न देने’ की बात कही गयी है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज ५ दिसम्बर, २०२४ ईसवी।)