अरे बिल्लो रानी! देखती जाओ

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-

काहें के दँतवा चियार कर घिंघोर रही हो जी? तुम्हारे भी आच्छा दिनवा आ गया है। चौकीदरवा ‘दूधा का भात’ खा गया। उसको हम तुम्हारे लिए सरिहार कर रखे थे। अब का बतायें जुग-जामाना एतना करियठ (करियाह) हो गया है कि कोइलवा भी सरमा जाता है। हिहाँ ऐसा-ऐसा लोग है, जो बिना दामे तुराये राम को बेच देता है और ओकरे जगहिया पर नकली राम को रखकर आ ओईजगहे घण्टा-घरियाल रखिके पूजा-पाठ सुरू कर देता है।

आ जानती हो बिल्लो रानी! इ नियू इनडिया है। हिहाँ धरम का रोज नुमाइस होता है। एक से बढ़ि के एक कलाकार लोगवा अपना खेला देखाता है। एक है, जो अनुलोम-बिलोम आ पेट धँसावन का खेला देखाते-देखाते बड़का भारी ब्योपारी बन गया है। एकवा त बाड़ा तिरछोल निकला है। उ त चौकीदारी करते-करते “अमानत में खयानत” को घुसेड़ दिया है। ऊ बाड़ा बकबादी है आ नम्बर एक का सातिर है। अब उ धीरे-धीरे बिजनेसमैन बन गया है। केतना मेहनत से देस में जवन-जवन इनडसटरी को खोला गया था, उ सबको ई पाठा बेच रहा है, जाइसे उसके बपवा ने खरीदा हो। बिल्लो रानी! हमको बुझाता है कि इ सब बेंचि-बाँचि के हिंहा से ‘बुलेट टरेनिया’ के स्पीडिवा में भाग खड़ा होगा। काहें से न तो इसका मेहरारू है और न लइका-फइका। ई समझ लो– ना आगे नाथ ना पीछे पगहा–जेकरे नाँव पर रोये गदहा वाला उसका दसा है। वो तो इतना चरचण्ट है कि कह देगा– ए बिल्लो रानी! तनी होने घिसको। जारा हमहूँ दुधवा के रंग देखें कइसा है? आ इहे कहकर तुमको फुसलाते हुए एतना घुसुक आयेगा कि तुम उसकी घुसकने के आइडिया को देखती रहोगी और ओ चमरचीट तुम्हारा दूधवा सरपेट जायेगा।

अरे बिल्लो रानी! अगर भारत खाने-पीने का पदारथ होता त इ भुक्खड़वा कबे का उसे नियू इनिडिया बना के घपेल जाता।

अभी एतने नहीं है, इसका एक चेला भी है। ओ भी कानवा को फूँक कर बस में करने में माहिर है। एकवा बीन बजाता है त दोसरका एने-ओने देखकर मौका निकालता है आ भीड़ को कहता है– भागो-भागो! बाड़का अजगर साहीन बाग से निकलनेवाला है। आ जइसे भीड़वा भागने लगती है, गुरूआ धोतिया से जहरनिकला बाड़का अजगर निकालता है आ सामने फेंक देता है, फिर अपनी बिकी हुई भीड़ और मीडियावालों को बुलाता है और कहता है– देखो लोगो! यह हमारे दुसमनों की चाल है, जो साहीनबाग को लोगों को मरवाने के लिए चली जा रही है। फिर पुलिस, मीडिया बताने लगते हैं– साहीनबाग में सैकड़ों बिषधर साँप फेंके गये; वहाँ आन्दोलन कर रहे लोगों को मारने की साजिश रची गयी है।

एतने में दोनों– गुरु-चेला अपना काम बनाकर वहाँ से फूट लेते हैं।

त ए बिल्लो रानी! माजरा समझि गयी हो न। अब परसन्न होकर माजा मारो। हमरे लेखा जियादा सोच-बिचार करोगी त दुबराइ के ‘हरेठा’ हो जाओगी।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ५ फ़रवरी, २०२० ईसवी)