एक भोजपुरी शोक-गीत

– डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

इसके पहले कि आप इस शोक-प्रधान भोजपुरी गीत को पढ़ें , समझें तथा अनुभव करें, आपकी सुविधा के लिए इसकी पृष्ठभूमि का एक शब्द-चित्र प्रस्तुत है :——–

तहरा जिनिगिया के भोर हो।। ४।। छोट जब रहलू त बड़ कइ के जीवइनी। खुद ना खईनी बाकिर तहरा के खिययिनी।। जिनगी-भर जियत रहिह सनवा से बूची। (शान) मत बनइह मनवा के चोर हो।।५।।
दोसरि घरि जइह त इ घरि भूलि जइह।
ओहि घरवा के आपनि घरवा समुझिह।।
सास-ससुर-मरद के जतन से रखिह।।
चाहे दुखवा आवे घनघोर हो।।६।।
बाबूजी नईखन त करी के चिन्ता ए बूची!
उपरि से त देत रहब आसिरबाद ए बूची ! अन्हरिया* में हमारा के जरूर याद करिह, (अँधेरा) तहरा पासे भेजब अजोर हो।। ७।। (उजाला) मत कबो जिनगी से उदास तू होखिह। मत कबो जिनगी से निरास तू होखिह।। भोर के किरिनियाँ फूटत रही जिनगी में, बनब हरदम असवा के डोर हो।।८।। एइजा केहू ना आवेला सब घरी** खातिर। (यहाँ,* घड़ी, समय)
सब केहू आवेला आपनि करम करे खातिर।।
बाबूजी छोड़ तारे अब तहन लोग के संगवा,
मत करिह मनवाँ के थोर* हो।।९।। (उदास) तोरा के हर बतिया पर डाँटत हम रहनी | हरदम तोरा के हम पढ़े के कहत रहनी।। अब तहरा के पढ़े खातिर के डाँटी ए बेटी! भीजे जाता अँखिया के कोर हो।।१०।। देत बानी तहरा के खूबे असीसिया ए बेटी! (आशीर्वाद )
जहाँ रहिह उहाँ खूब खुस रहिह ए बेटी!
हम त सिधारत बानी अब आपन लोकवा,
रोक आपन अँखिया के लोर* हो।।११।। (*आँसू )
(सर्वाधिकर सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १९ फरवरी, २०२० ईसवी)