कल ढूँढ़ते रह जाओगे, ‘हिन्दी’ नहीं मिलेगी

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


इस ‘मुक्त मीडिया’, जिसे ‘सोसल मीडिया’ कहा जाता है, के माध्यम से ऐसी बड़ी संख्या उनकी है, जो चक्षुसहित रहते हुए भी ‘नेत्ररहित’ लक्षित होते हैं। यत्र-तत्र-सर्वत्र ऐसों की ही उपस्थिति है। पाँच और छ: अंकों में ‘हिन्दी’ के नाम पर धनार्जन करते हैं; परन्तु वाचन और लेखन-स्तर पर ‘शून्य’ (०) दिखते हैं। शून्य रहते तो सन्तोष होता, वे सभी ‘देवनागरी लिपि’ और ‘हिन्दीभाषा’ के साथ बलप्रयोग करते हुए, अपनी विद्वत्ता और अपने वैदुष्य का हास्यास्पद परिचय भी प्रस्तुत करते हैं।

शासकीय अनुदान लेकर हिन्दी-पोषण करने के नाम पर निस्सन्देह वणिकवृत्त का विस्तार करने में निपुण उन्हीं में से एक वर्ग ऐसा है, जो प्रत्येक स्तर पर समाज का दोहन करता आ रहा है। आश्चर्य! उनके कुकर्मों का भुगतान आज ‘हिन्दी’ को करना पड़ रहा है।

शिक्षा-दीक्षा, परीक्षा-समीक्षा आदिक के सन्दर्भ में ‘हिन्दी-विकास’ के नाम पर जो कुत्सित कृत्य निष्पादित किये जा रहे हैं, उनका समुच्चय व्यवस्थागत नीतियों का विद्रूपतापूर्ण विग्रह है। यही कारण है कि किसी विश्वविद्यालय का कुलपति तक हिन्दी की वाचिक और लिखित परम्पराओं के स्रोत से आज तक अनभिज्ञ बना रहता है।

शिक्षा के क्षेत्र में आज वास्तव में, कहीं पर सन्तुष्टिदायक योग्यता भी रहती तो आज देश में हिन्दीपठन-पाठन और अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्रों में ‘बुद्धि-विलास’ के स्थान पर ‘बुद्धि-व्यायाम’ की आराधना की जाती और व्याकरण के निकष पर धाराप्रवाह संवाद कल-कल, छल-छल निनादिनी गंगा-सदृश बहिर्भूत होता रहता।

खेद है, ऐसे ‘महानुभाव’ ‘देवनागरी लिपि’ और ‘हिन्दीभाषा’ को ऐसी स्थिति में ला चुके हैं, मानो किसी पतिविहीना की मांग में ‘सौभाग्य बिन्दु’ लगाकर उसे एकान्त में बैठा दिया गया हो और अवसरानुकूल उसके साथ बलप्रयोग कर, स्वार्थ की सिद्धि कर ली जाती रही हो।

अब उपर्युक्त चित्र को आप सभी ध्यानपूर्वक देखिए, जो मात्र एक सामान्य दृष्टान्त के रूप में है; ऐसे सहस्रों प्रकार के चित्र इस ‘मुक्त मीडिया’ के माध्यम से प्रमादी समाज दौड़ाता रहता है; जबकि उसके दुष्प्रभाव को समझने की सामर्थ्य उसमें नहीं रहती। यही कारण है कि वह सामग्री ‘एच०आई०ह्वी० पॉजिटिव’ के रोगी की भाँति विचार-जगत् को असाध्य रोग से ग्रस्त करती रहती है।

इस चित्र में अंकित शब्दों को पढ़िए और बुद्धि-व्यायाम करने की सामर्थ्य को जाग्रत करने की स्थित में हों तो निष्कर्ष से जुड़िए।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; १४ सितम्बर, २०१८ ईसवी)