चिर-प्रतीक्षित कृति ‘समग्र सामान्य हिन्दी’ नवम्बर के प्रथम सप्ताह से आप सभी के लिए उपलब्ध

आत्मीय विद्यार्थिवृन्द!
आप सभी के समुज्ज्वल और भास्वर भविष्य की कामना है।
आप सभी के प्रश्न का उत्तर, ” गुरुदेव ‘समग्र सामान्य हिन्दी’ कब तक उपलब्ध हो जायेगी?”, मिलनेवाला है। आपमें से अधिकतर विद्यार्थियों ने ‘युक्ति पब्लिकेशंस’, आगरा के स्वामी श्री मयंक अग्रवाल से फ़ोन-माध्यमद्वारा वार्त्ता भी की थी; कुछ अब भी कर रहे हैं।

मुद्रण और प्रकाशन-पद्धति इतनी जटिल होती है कि यह बता पाना सहज नहीं रहता कि कोई कृति मुद्रित होकर कब तक प्रकाशित होगी। उसकी इतनी प्रक्रियाएँ-उपप्रक्रियाएँ होती हैं कि जब तक वह विधिवत् मुद्रित होने के बाद संतोषप्रद ढंग से ज़िल्दसाज़ की कारीगरी से युक्त होकर प्रकाशनकार्यालय में पहुँचा नहीं दी जाती तब तक उपयुक्त उत्तर दे पाना सहज नहीं होता।

आप सभी के लिए हर्ष का विषय है कि आज (२५ अक्तूबर) ‘समग्र सामान्य हिन्दी’ के आवरणपृष्ठ और उनतालीस अध्यायों से युक्त कुल ४८० पृष्ठों के बृहद् आकारवाले अन्त: पृष्ठ मुद्रित हो जायेंगे। इसके आरम्भिक पृष्ठ चार रंगों में रहेंगे और शेष पृष्ठ दो रंगों में।

मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है कि मेरी अब तक सामान्य हिन्दी की जितनी भी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, उन सभी में ‘समग्र सामान्य हिन्दी’ शीर्ष पर रहेगी। इस कृति के प्रकाशक प्रियवर मयंक अग्रवाल जी ने इस परीक्षोपयोगी पुस्तक को आकर्षक रूप देने में कोई कमी नहीं की है। उन्होंने व्यावसायिक हितपोषण को परे करके, इसे आप सभी के लिए ग्रहणीय बनाने का यथाशक्य प्रयास किया है, जिसके निर्णायक आप सभी होंगे। इससे पूर्व जितने भी प्रकाशक रहे, उनमें विषय-सामग्री को समझने और लेखक की पुस्तकीय शुद्धता के प्रति आग्रहशीलता को प्रतिष्ठित करने की सामर्थ्य नहीं रही। उनकी दृष्टि में मात्र पुस्तक का विक्रय होते रहना, ‘पुस्तक की गुणवत्ता’ थी। यही कारण है कि वे मेरे निकष पर विफल सिद्ध हुई हैं। इस संदर्भ में मैं ‘युक्ति पब्लिकेशंस’ के स्वामी प्रियवर मयंक जी का साधुवाद करता हूँ।

यहाँ आवरणपृष्ठ और अन्त: रंगीन पृष्ठों की गुणवत्ता को समझने के लिए एक प्रतिदर्श प्रस्तुत किया गया है।

आप समस्त विद्यार्थिवृन्द के यशस्वी जीवन की कामना करता हूँ।


— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय