शिवांकित तिवारी “शिवा”
अपने सुकून की बलि देकर, वो सबकी जान बचाता है,
भूख प्यास भूल कर वो डॉक्टर होने का फर्ज निभाता है
दर्द से दवा तक का सफ़र था कड़ा, वो गिरा लड़खड़ा के,
हुआ फिर खड़ा तब मेहनत से वो फिर बन गया बड़ा,
माना वह एक डॉक्टर है, बेशक कोई भगवान नहीं,
डॉक्टर का डॉक्टर होना, मगर इतना भी आसान नहीं,
कई त्योहार बिन अपने परिवार के साथ वो बिताता है,
कभी किताबों में तो, कभी इमरजेंसी टेबिल पर सो जाता है,
जाने कितने लोगों को गहरी नींद से जगा दिया,
जाने कितने रोगों को उनने, दुनिया से ही भगा दिया,
ना कभी कोई संडे, ना उसकी कोई छुट्टी की गुजारिश,
ना पता रहता कब सर्दी आई ना पता कब आती बारिश,
फिर भी जो तुम्हें जो हर वक्त खुश दिखें, परेशान नहीं,
डॉक्टर का डॉक्टर होना, मगर इतना भी आसान नहीं ।
-©® युवा कवि एवं लेखक सतना (मध्यप्रदेश)संपर्क:-7509552096