तुम नहीं दिखे

ज़ैतून ज़िया-

तुम आये कब
मुझे आहट भी ना लगी
कितने दिन से व्यथित थी
पीड़ा थी आज स्वप्न में
तुम्हारी हर चीज दिखी मुझे
ये वर्दी, ये सितारे
और भूरा बटुआ मेरे तिल के रंग का
सब दिखा मुझे
तुम नहीं दिखे !!

जैसे अंग अंग कट गया हो
किसी पेड़ की टूटी शाखों की तरह मेरा
मेरे खून का प्रवाह तेज़ है
इतना जैसे जल सोते से धार बँधी हो
प्रिये सब लाल था
हाँ बिलकुल मेरी साड़ी जैसा
सब दिखा मुझे
तुम नहीं दिखे !!

  वो इमली,वो बर्फ, वो गोली
हाँ वही बचपन वाली
वो फूल, वो इत्र, वो पत्र
हाँ वही प्यार वाला
वो कुर्ता, वो टोपी, वो घड़ी
हाँ वही शादी वाली
लेकिन समय ठीक ना था 
सब दिखा मुझे
तुम नहीं दिखे !!

कब तक है अब जाना तुमको
ये बात मुझे ना बतलाना
वजह ये अपने जाने की
इस बार मुझे ना समझाना
देखो तुम बिन घर है सूना
मेरा चंचल मन है सूना
ये अंश तुम्हारा कोख में मेरी
उसका भी जीवन है सुना !!

प्रिये मै तुमसे मिलने आया हूँ
समय खड़ा है बाहर द्वार
सुन ली तेरी बातें मैंने
आ दे दूँ अब तुझको प्यार
तू प्रीयसी मेरी सदा रहेगी
जीवन या जीवन उपरांत
कर मुझसे वादा तू बस एक
रहेगी कभी ना तू अशांत !!

रोज़ संवरना प्रेम में मेरे
देखूंगा तुझको जी भर के
फूल सजाऊँ केश में तेरे
सिन्दूरी कर दूँ आ मांग
कंठ मेरा है सुख रहा
अधरों से पी लूँ जी भर के
ये टोपी रख, ये वर्दी ले ले
पास रहूँगा अब मै तेरे
मुझे लेने को जो द्वार खड़े हैँ
जा ये सब तू उनसे कह दे !!

छुड़ा हाथ वो दौड़ के आई
देने  संदेसा बस प्रिये का
अधरों पे मुस्कान बहुत थी
रोम रोम सब खिला हुआ था
द्वार मिली बस टोपी, वर्दी
और तिरंगा लाल रंगा था
भागी भीतर, स्वप्न समझ ये
स्वप्न था वोह, जो भीतर ही था
द्वार पे उसके सत्य खड़ा था
द्वार पे उसके सत्य खड़ा था !!

वो दोस्त, वो रिश्तेदार
हाँ वही हमारे तुम्हारे
वो धुवां, वो महक
हाँ वही अगरबत्ती वाली
वो सफ़ेद चादर, वो सफ़ेद साड़ी
हाँ वही जो ओढ़े थे तुम हम
वो सम्मान, वो सलामी
जो मिलता है शहीद को
सब दिखा मुझे
तुम नहीं दिखे !!