देश के समस्त क्रीड़ा-प्रशिक्षण-संस्थानों की पारदर्शिता पर प्रश्न

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

हमारे देश में क्रीड़ा-क्षेत्र में एक-से-बढ़कर-एक प्रतिभाएँ हैं; किन्तु उनके प्रति उपेक्षा का भाव है। आदिवासी-अंचलों में जाकर कर्मठ युवाओं (महिला-पुरुष) की खोज करनी होगी। कुश्ती, कबड्डी, तीरन्दाज़ी, नौकायन, फुटबॉल, तैराकी आदिक खेलों के लिए वह युवा-वर्ग अधिक उपयुक्त रहेगा। उन जनजातीय युवक-युवतियों को समुचित प्रशिक्षित करने के लिए देश के समस्त क्रीड़ा-प्रशिक्षण-संस्थानों को प्रतिबद्ध और तत्पर रहना होगा; क्योंकि उनका परिवेश और उनकी प्रकृति उन्हें इतना उद्यमी, परिश्रमी तथा आत्मनिर्भर बना देती है कि वे किसी भी क्षेत्र में प्रवेश पाने पर अपने शारीरिक गठन और मन-मस्तिष्क का सदुपयोग करते हुए, अपने को सिद्ध कर सकती हैं। इसके लिए राजनेताओं और नौकरशाहों को, जो अब तक ऐसे प्रशिक्षण-संस्थानों को अपने घर की खेती समझते आ रहे हैं, उन्हें कठोरतापूर्वक निकाल बाहर करने की आवश्यकता है; क्योंकि किसी भी क्षेत्र में प्रतिभाओं के साथ खुला अन्याय करने में इन सभी का पूरा-का-पूरा हाथ रहता है। यही नेता और सफ़ेदपोश अधिकारी प्राय: अयोग्य और लम्पट-प्रकृति के लोग को क्रीड़ा-अधिकारी बनाते हैं और क्रीड़ा-प्रशिक्षक भी। इस देश में ऐसे कई क्रीड़ा-अधिकारी और प्रशिक्षक हैं, जो लड़कियों के दैहिक शोषण की शर्त्त पर उन्हें अनधिकृत सुख-सुविधा और अन्य प्रकार के लाभ देने की बातें करते हैं। जो लड़कियाँ स्वाभिमानी और सुयोग्य खिलाड़ी होती हैं, उनके साथ ऐसे लोग हर स्तर पर अन्याय कर, उनकी प्रतिभा को कुण्ठित करने का प्रयास करते हैं। ऐसे क्रीड़ाधिकारियों और प्रशिक्षकों को लात मार कर बाहर कर देने की ज़रूरत है। इस प्रकार के प्रकरण आये-दिन प्रकाश में आते रहते हैं।

अब देश के सभी क्रीड़ा-संस्थानों की क्रिया-प्रणाली को पारदर्शी बनाये जाने की आवश्यकता है। ओलिम्पिक में सम्मिलित समस्त खेल-प्रतियोगिताओं की तैयारी कराने के लिए अपेक्षित-वांछित समस्त संसाधनों के साथ खिलाड़ियों की युद्ध-स्तर पर लगातार तैयारी कराये जाने की आवश्यकता है।

पहले शारीरिक शिक्षा-प्रशिक्षा पर बल दिया जाता था; योग-आसन, शारीरिक कौशल इत्यादिक का नियमित रूप में अभ्यास कराया जाता था; परन्तु वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य क्रीड़ा के सन्दर्भ में रिक्त दिखता है। इधर, समस्त राज्य-शासन को गम्भीरता बरतनी होगी।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; २० अगस्त, २०१८ ईसवी)