पुस्तक समीक्षा : एहसास

लेखिका:- निक्की शर्मा”रश्मि”
प्रकाशक:-भारत पब्लिकेशन ,मुम्बई
संस्करण:-प्रथम,1मई 2019
पृष्ठ:-56
मूल्य:-75/-
समीक्षक:- राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित”
कवि, साहित्यकार

देश की ख्यातिनाम कथाकार निक्की शर्मा रश्मि की ये प्रथम कृति “एहसास” है। प्रस्तुत कहानी संग्रह में कहानियां सामाजिक विषमताओं की पोल खोलती है, साथ ही घर परिवार पारिवारिक रिश्तेदारी में आई अपनत्व की भावना में कमी जैसे कहीं विषयों पर आधारित है। सीधी सरल भाषा में कहानीकार शर्मा ने आम जीवन के अनुभवों की अपनी कलम से उकेरा है। एहसास की सभी कहानियां रिश्तों के ताने बाने के इर्दगिर्द घूमती है साथ ही एक सार्थक सन्देश भी देती है। कहानीकार ने नारी सशक्तिकरण विषय पर आधारित कहानी लिखकर उन सभी महिलाओं को आगे बढ़ने की सीख दी है जो सामाजिक संघर्ष से पीछे हट जाती है। एक सच्ची कहानीकार का धर्म निभाते हुए शर्मा ने अपनी कहानियों के माध्यम से युवाओं को नई दिशा देने का काम किया है। शर्मा की साहित्यिक यात्रा में ये प्रथम कृति मील का पत्थर साबित होगी। सभी कहानियों में क्रमिक घटनाक्रम के अनुसार कहानियां लिखी गयी है। प्रत्येक घटना का दूसरी घटना से तारतम्य है।जो कथाकार की विशेषता इंगित करता है। मेरी चन्द पंक्तियाँ इस कहानी संग्रह के नाम पर आधारित है- “ज़िंदगी एक मधुर एहसास है।इसे जीने की आस है।। यूँ ही नहीं चलते रिश्ते।रखना एक दूजे पर विश्वास है।।” यह प्रथम कृति कहानीकार ने अपने माता- पिता ,पति एवं पुत्रों को समर्पित की है।

देश के प्रसिद्ध व्यंग्यकार, पत्रकार राजेश विक्रांत जी ने इस कृति की भूमिका लिखी है। उन्होंने लिखा ये कृति सृजन की खुशबू से भरी है। आम जीवन के अनुभवों की कहानियां है। शब्दों की कोमलता देखते बनती है। कहानियों में मन की निर्मल भावनाओं की तरज़ीह दी गयी है।

इस कृति की प्रथम कहानी” माँ उठो न” में माँ ब्रेनहेमरेज के कारण कोमा में चली जाती है। माँ उठो न कहते ही रह गए। बच्चे विलाप करते रहे। मर्मस्पर्शी कहानी लगी। “प्यार तो बस प्यार है”में बताया कि प्यार में बदलने की भावना नहीं होना चाहिए। आजकल ये चल रहा है कि प्यार का दिखावा कर बात मनवा लो। आप उसे उसी रूप में पसंद करो जिस रूप में आपने उसे प्यार किया था।”गुलाबो” कहानी में पांच साल की लड़की का बाल विवाह कर दिया जाता है और 14 वर्ष में गोना कर दिया जाता है बताया। ये हमारे देश की कुप्रथा को बताती कहानी है।जिस उम्र में बच्चा शादी का अर्थ भी नहीं समझता उस उम्र में विवाह कर देना। ये प्रथा हम सबको मिलकर बन्द करनी होगी। वह पति के मरने पर विधवा हो जाती है। बचपन मे विधवा का अर्थ वो क्या जाने? सुलभा उसकी दूसरी शादी करने हेतु घर वालों को मनाती है। पुनर्विवाह करने की तैयारी हो जाती है। गुलाबों के हाथों में मेहन्दी सजेगी। वह फिर से रंग बिरंगी चूड़ियाँ पहनेगी। ये जानकर उसे खुशी हुई।”खुशनुमा एहसास” कहानी में बताया कि प्यार का एहसास करके देख नई जान आ जायेगी। जिंदगी ही बदल जाती है। पति पत्नी का रिश्ता प्यार से ही मजबूत बनता है।”पहले करियर फिर प्यार”कहानी में भाभी अपने देवर को शादी करने से पहले रोजगार से जुड़ने की कहती है।जवानी के जोश में युवा लव मैरिज कर लेते हैं। बेरोजगारी मे शादी करने से परिवार नहीं चलता।पहले करियर पर ध्यान देना चाहिए। युवाओं को सीख देती सामयिक कथा।”जो तुमको है पसंद वही बात करेंगे”रिश्तों में जिस दिन मिठास आ जाये उसी दिन दीवाली हो जाती है।”प्यार सांवला या गोरा नहीं होता” गुणों की कद्र होती है रंग काला होने से फर्क नहीं पड़ता। रंगभेद नहीं करना चाहिए।रंग तो भगवान ने बनाया है। मन की सुंदरता ही असली सुंदरता होती है। प्यार तो बस प्यार होता है सांवला या गोरा नहीं।”मुखोटा”कहानी में बताया कि बहु शर्तों पर आई है उसका असली चेहरा सामने आ जाता है।”प्यार के आगे कुछ नहीं”कहानी में बताया कि प्यार तो बस प्यार ही होता है जो सीधा दिल से होता है। दिखावे या पैसों के लिए वहाँ कोई जगह नहीं होती।”एहसास” कहानी में माँ के प्यार का स्नेह का ममता का एहसास बताया है। माँ के कदमों में जनन्त होती है। जब उसे गोपाल को गोदी में रखा तो आंखों से आंसू बह निकले।सास जब पत्नी को पति के पास नहीं जाने देती। रोज रोज तंग आकर एक दिन पत्नी कठोर निर्णय करती है निम्मो ने कमरा बन्द कर लिया। बच्चों के लिए हिचकिचाहट त्याग कर कठोर कदम उठाए। पूरे विश्वास व ईमानदारी से आगे बढ़ी तो सफलता मिली। निम्मो व प्रकाश के घर मे खुशी आ गई। महिलाओं को ऐसे वक्त में निर्णय लेने की शक्ति देती प्रेरणास्पद कहानी।”अछूत” आठ साल की बालिका अछूत का अर्थ पूछती है। समाज की कुप्रथा। जातिवाद। ऊंच नीच का भेद। इंसान को इंसान से अलग करती ये प्रथा।वह कहती है अछूत शब्द एक कलंक है ।अछूत के दर्द की कोई दवा नहीं ।जिसके मन को कोई न छू सके वह अछूत है। वास्तव में अछूत तो वो है जो तन से नहीं मन से अछूत है।”रह जाता है तो बस प्यार”कहानी में बताया कि प्यार की डुबकी ऐसी होती है जिसमे हर दर्द गायब हो जाता है याद रहता है तो बस प्यार।”बेटियाँ बोझ नहीं होती”रिया को अपने पति की ऐय्याशी की खबरे पता चलती है। उसका पति राजन ऐय्याशी करता है तो वह अपने पिता को बुला लेती है। पिता दामाद जी के एक थप्पड़ लगाते हैं वे कहते हैं घर पति पत्नी दोनों की ईमानदारी से चलता है। वह बेटी को साथ ले जाने की कहते है लेकिन बेटी जब मना करती है तब उसके पिता कहते हैं बेटी बोझ नहीं होती। कलेजे का टुकड़ा होती है। आजकल ऐसे लोग बेटियो की जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं।”औरत हूँ पर कमजोर नहीं हूं” इस कहानी में शुभांगी का पति दस साल बाद घर लौटता है। वह रीमा नाम की लड़की से नाजायज सम्बन्ध बना लेता है शादी का रिश्ता तोड़ देता है। विश्वासघात करता है। इतने साल बाद शुभांगी के पास आता है। वह कहती है नाश्ता करो और चले जाओ।वह कठोर होकर निर्णय करती है वह अपने आप से कहती है नहीं अब कमजोर नहीं हूँ मैं। ये पुरुषों की दुनिया भी हम स्त्रियों की देन है। हम नए समाज की नई कहानी लिखते हैं। हम शान से कहते हैं हम औरत हैं। कोमल जरूर है औरत लेकिन कमजोर नहीं है।”बूढ़ा मैं नहीं तेरी माँ हो गई है!” इस कहानी में सुगंधा मायके जाती है तो अपने पिता की आधी बीमारी यूँ ही दूर हो जाती है। बेटियां पिता की जान होती है सचमुच। “मायका अब मायका नहीं रहा”कहानी में बताया कि बेटी के पीहर में जब माता पिता का निधन हो जाता है तो मायका तब मायका नहीं रह जाता है। बेटी सिम्मी मायके गई तो पता चला कि माता का निधन हो गया। बारह दिन बाद बेटी जाने लगी तो किसी ने यह नहीं पूछा कि तुम ये बच्चों के लिए ले जाओ। कोई आत्मीयता दिखाने वाला नहीं था। मामा ममी चाचा चाची जी सब अनजाने हो गए।”दिल तो अभो जवान है” कहानी में बेटे व पुत्रवधु अपने बालक के साथ घूमने गए लेकिन माता पिता को एक बार भी न पूछा कि आप भी चलो। पोते बंटी ने जिद जरूर की। वे दोनों पति पत्नी बुढ़ापे में कश्मीर घूमने का निर्णय करते हैं। स्वत्रन्त्र रहो। जब वे हमारी नहीं सोच रहे तो हम भी अपनी आज़ादी से घूमने चलें बोझ बनकर अब नहीं रहेंगे। हम तन से बूढ़े है मगर दिल जवान है। कल किसने देखा। “वक़्त यहीं थम सा जाए” कुछ पल हम भूल नहीं सकते। जिंदगी हँसकर जिये।शरारतें याद दिला देती हैं।जिन्दगी में हर एक पल नया होता है कुछ क्षण खास होते हैं।जिन्हें याद कर हम मुस्करा देते हैं। जरूर ऐसे पल याद करना चाहिए। जिन्दगी को हँसी खुशी जिए।

इस कृति की अंतिम कहानी”ये उम्र नाजुक है”में कहानीकार शर्मा ने इस कहानी में प्रेमी प्रेमिका घर से भाग कर शादी करने की योजना बनाते हैं लेकिन लड़की को लड़का धोखा दे देता है। उसकी पोल खुल जाती है। लड़का शादी शुदा व बच्चों का बाप निकल जाता है। लड़की की मां उस बेटी का पीछा करती है। थकी बेटी को देख वह घर लाती है। उसे समझाती है कि सही गलत में क्या फर्क है। यह नाजुक उम्र है। आजकल ऐसी ही उम्र में लड़के लड़कियां अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं। माँ कहती है बेटी शिव को भूल जा। उसने तुम्हें धोखा दिया है। तुमने हमसे छिपकर उसके साथ जो किया वह भूल जा। नयी मंजिल तुम्हारा इंतजार कर रही है।तुम अब सही रास्ता अपनाओ।

19 कहानियों की ये कृति साहित्य में कहानीकार निक्की शर्मा रश्मि को नई पहचान दिलाये ऐसी कामना करता हूँ।राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में नियमित छपने वाली शर्मा ने साहित्य क्षेत्र में उत्कृष्ट साहित्य सृजन कर अलग पहचान बनाई है। मेरी ओर से बधाई । आपकी कृतियाँ ऐसी ही छपती रहे।

राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित”
समीक्षक,कवि,साहित्यकार
98, पुरोहित कुटी,श्रीराम कॉलोनी
भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान पिन 326502
123rkpurohit@gmail.com