राम और रावण गले मिलने लगे हैं !

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

कैसे-कैसे बाबा अब दिखने लगे हैं,
कामिनी ले बाँहों में खिलने लगे हैं।
भगवा वस्त्र औ’ कलंकित मर्यादा,
आश्रम में बहुरुपिये दिखने लगे हैं।
कौन है साधु और शैतान भी कौन?
चरित्र और चेहरे यहाँ बिकने लगे हैं।
सादगी पर प्रहार अब भौतिकता की,
असत्य की बाज़ी सब जीतने लगे हैं।
धर्म का लक्ष्य अब अलक्षित है क्यों?
पाप का चन्दन मिल घिसने लगे हैं।
दिखते थे शीर्ष पर कल तक जितने,
आज ऊँचाइयों से क्यों गिरने लगे हैं?
कोई यहाँ सत्य से बढ़कर नहीं प्यारे!
विधर्मियों पर मेघ अब घिरने लगे हैं।
मत भूलो! कलियुग की विजयदशमी है,
राम और रावण गले मिलने लगे हैं।
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय; ८ अक्तूबर, २०१९ ईसवी)