ग़ज़ल– मोहब्बत में असर होता तो ये हालात न होते

मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’ (लखनऊ) 


सज़ाएं काट लूँगा मैं तुम्हारा नाम न लूँगा |

कभी भी अब ज़माने में प्यार से काम न लूँगा ||

मुहब्बत में असर होता तो ये हालात न होते |

हो जिस पे इश्क़ का पहरा मैं ऐसी शाम न लूँगा ||

वफ़ा के नाम पर तुमने मुझे धोखा दिया आख़िर |

तुम्हारी मौत का भी हो तो मैं पैगाम न लूँगा ||

मुझे इल्ज़ाम न दो अब कहा था मैंने पहले ही |

अगर लूँगा मुसीबत मैं तो कोई आम न लूँगा ||

थकूँगा मैं वहाँ जाकर जहाँ मन्ज़िल मेरी होगी |

कहीं भी राह में रुक कर कभी आराम न लूँगा ||

इफ़्फ़त मुहब्बत की नहीं समझा सके तुम ‘मन’ |

किसी ना’पाक़ दिल से मैं कोई सलाम न लूँगा ||