मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’ (लखनऊ)
सज़ाएं काट लूँगा मैं तुम्हारा नाम न लूँगा |
कभी भी अब ज़माने में प्यार से काम न लूँगा ||
मुहब्बत में असर होता तो ये हालात न होते |
हो जिस पे इश्क़ का पहरा मैं ऐसी शाम न लूँगा ||
वफ़ा के नाम पर तुमने मुझे धोखा दिया आख़िर |
तुम्हारी मौत का भी हो तो मैं पैगाम न लूँगा ||
मुझे इल्ज़ाम न दो अब कहा था मैंने पहले ही |
अगर लूँगा मुसीबत मैं तो कोई आम न लूँगा ||
थकूँगा मैं वहाँ जाकर जहाँ मन्ज़िल मेरी होगी |
कहीं भी राह में रुक कर कभी आराम न लूँगा ||
इफ़्फ़त मुहब्बत की नहीं समझा सके तुम ‘मन’ |
किसी ना’पाक़ दिल से मैं कोई सलाम न लूँगा ||