कला-जगत की कमलदलविहारिणी का जाना

डॉ॰ निर्मल पाण्डेय (इतिहासकार/लेखक)

डॉ• निर्मल पाण्डेय

जहां मैं पढ़ा-बढ़ा उस बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की अलुम्नाई, कला और सौंदर्यशास्त्र की एक प्रतिष्ठित विद्वान, संसद की पूर्व सदस्य और सांस्कृतिक अनुसंधान के एक दिग्गज हस्ती पद्म विभूषण डॉ. कपिला वात्स्यायन (1928-2020) का जाना भारतीय शास्त्रीय संगीत, कला, वास्तुशिल्प और स्थापत्य कला- इतिहास जगत की एक अपूरणीय क्षति है।

25 दिसम्बर, 1928 को एक पंजाबी परिवार में जन्मीं, दिल्ली विश्वविद्यालय, मिशिगन विश्वविद्यालय (अमेरिका) और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त डॉ. कपिला को कला-क्षेत्र-इतिहास के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 2011 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

कला-साहित्य के पारिवारिक माहौल में पली बढ़ीं कपिला मलिक ने 1956 में दिग्गज साहित्यकार सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन से विवाह किया। उनका साथ 1969 तक रहा। अज्ञेय से नाता टूटने के बाद भी डॉ. कपिला ने ‘वात्स्यायन’ सरनेम से नाता नहीं तोड़ा।

इण्डिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) की एशिया प्रोजेक्ट की अध्यक्ष रहीं डॉ. कपिला ‘इन्दिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर द आर्ट्स (IGNCA) की संस्थापक-निदेशक रहीं। शिक्षा मंत्रालय में उन्होंने अपनी सेवाएँ बतौर सचिव भी दीं और एक सांसद के तौर पर भी।

संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप, जवाहरलाल नेहरू फेलोशिप, राजीव गांधी नेशनल सद्भावना अवार्ड तथा ‘कांग्रेस ऑन रिसर्च ऑन डांस’ की ओर से नृत्य के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण शोधकार्यों के लिए सम्मानित हो चुकीं कला-जगत की कमलदलविहारिणी डॉ. कपिला की ‘अफ्लोट ए लोटस लीफ : कपिला वात्स्यायन’ नाम से जीवनी प्रकाशित है, जिसे ज्योति सबरवाल ने लिखा है।

कला तथा संस्कृति सम्बन्धी बहुतेरी रचनाओं में प्रमुख हैं: ‘द स्क्वायर एंड द सर्किल ऑफ इंडियन डांस’, ‘भरत : द नाट्यशास्त्र’, ‘मात्रालक्षणम’, ‘कांसेप्ट्स ऑफ स्पेस : एंशियंट एंड मॉडर्न’, ‘इण्डियन क्लासिकल डांस’, ‘पारंपरिक भारतीय रंगमंच : अनंत धाराएँ’ तथा ‘प्रकृति: द इंटीग्रल विजन’ आदि।

भारतीय शास्त्रीय संगीत, कला, वास्तुशिल्प और स्थापत्य कला-इतिहास की दिग्गज डॉ. कपिला वात्स्यायन को सादर नमन।