मनोज सिन्हा : प्रेरक व दृढ़ व्यक्तित्व

क्या विकास के यज्ञ को जातीय समीकरणों की काली आंधी पूरा होने देगी?

वह दिन आज भी जेहन में है; जिसके हम सभी साक्षी थे। कुर्ता चाहे जिस रंग का हो; पसीने से लगकर और गाढ़ा रंग धर लेता था। थी ही ऐसी भीषण गर्मी! हाँ सुकून बस इतना था कि स्वभाव से मधुर, एक बेहतरीन व्यक्तित्व जिसकी योग्यता का परचम सारे लोकसभा परिक्षेत्र में निर्बाध लहरा रहा था, के कार्यों को देखकर दिल को ठंढक पहुँचती थी। पर सवाल तो था ही! जो आज भी परेशान करता है कि क्या वह यज्ञवेदिका जिसमें अपने निजी स्वार्थ, संबंध और हित सबकी आहुति देकर सम्पन्न किये जा रहे विकास के यज्ञ को जाति के समीकरण की चली आ रही काली आंधी पूरा होने देगी?

  चुनाव के दौरान बहुत ही बारीक ऑब्जर्वेशन है, सिन्हा जी राजनीतिक शुचिता की हर व। परीक्षा पास करते जा रहे थे जो वर्तमान की राजनीति की कसौटी है। न ही सत्ता का दुरुपयोग और न ही कहीं असंवैधानिक भाषा का प्रयोग। एक पैर दिल्ली तो दूसरा गाज़ीपुर, पांच साल इसी तरह गाज़ीपुर से दिल्ली को घर से दुआर की तरह धाँगते रहे, ताकि लोग को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और व्यवसाय के लिए इधर-उधर न धाँगना पड़े। वो दिन नहीं भूलता है ज़ब सुबह आठ बजे से लेकर रात बारह बजे तक प्रत्यक्ष स्टेशन, ओवर ब्रिज, जैसे तमाम बड़े-बड़े प्रोजेक्ट नींद में भी दिखने वाले प्रोजेक्ट को चीख-चीख कर अपनी आवाज़ के सहारे लोग की नजरों को वहां तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे। जिसे आमजन स्वीकार करते हुए भी किन्ही कारणवश स्वीकार नहीं करना चाह रहा था।

 बरबस मैं बोला भी करता था कि वाह रे विडंबना! जवन काम क शोर दिल्ली तक बा ओके चिल्लात चिल्लात थाक जात बालन नेता जी लेकिन ओकरा बावज़ूद लोग ओ चीज क प्रासंगिकता ना समझ पावत ह। आखिर! यह कैसा समीकरण था जिसके आगे लोग अपनी जरूरतों, अपने विकास, अपनी तरक्की और अपना भविष्य सब कुछ बलिदान कर देना चाहते हैं?

समीकरण की आंधी में न जाने कितनों के सपने हवा हो जाते हैं। पता नहीं चलता! और फिर परिणाम होता है कि मुख़्तार और उसके अपनों की रोज ही दो चार करोड़ की सम्पत्ति कहीं न कहीं जब्त होती है।

चुनाव का हारना बहुत बड़ा आघात था। गाज़ीपुर का टेम्परामेन्ट समझना मुश्किल था। सच्चे समर्थकों का घोर अभाव था। अधिकांश सफ़ेदपोश; सफ़ेद भालू बनकर जैसे मालिक के सामने खुद को इम्प्रेशन डालना चाह रहे हों। टीम-वर्क का भी अभाव था। नेता जी के सिद्धांतों पर चलनेवालों का भी एकदम से अभाव था। ठगने वाले ज्यादा, बरगलाने वाले ज्यादा, हाँ में हाँ मिलाने वाले ज्यादा और सच्चाई, मांग, असंतोष तथा समस्या से रूबरू कराने वाले बहुत कम थे। खैर! जो भी था अच्छा ही था।

फिर एकदिन एकाएक ख़ुशी, आशा निराशा और संतोष-असंतोष की हवा बहती है।

मनोज सिन्हा जी का उपराज्यपाल बनना…

एक ऐसा टास्क जिसे वही पूरा कर सकता था, जिसके पास बरसते गोली और बारूद के बीच दुर्गम पहाड़ियों से होकर सड़कमार्ग से चलने का अदम्य साहस हो। जो ईमानदारी से जीता हो। स्वाभिमान से चलता हो और अपने परिधान से लेकर व्यवहार तक भारत के दिल को जीत लिया हो।

    स्वागत योग्य निर्णय था धारा 370 और इतने बड़े बदलाव को धरातल पर किसी के हाथों नहीं छोड़ा जा सकता था। सोचिये! जो धारा 370 अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती हो तो क्या इस सुधार को असफल बनाने की कोशिश कम की जाती रही होगी?

    जम्मू-कश्मीर देश का श्रृंगार भी था और समूचे देश के भविष्य को तय करने वाला राज्य भी। ऐसे में एक बेहतर कार्यकुशल, प्रबंधन में निपुण, ईमानदार, बंधुत्व को जीने वाला, सुंदर अभिव्यक्ति और निडरता से दिन रात चलने वाला इंसान चाहिए था और ये सारी काबिलीयत देश के राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री जी को श्री मनोज सिन्हा जी में दिखी। उन्होंने एक बेहतरीन मॉडल गाज़ीपुर को परोस रखा था जिसके लायक शायद गाज़ीपुर था ही नहीं, पर जिसकी प्रकृति सर्जनात्मक हो वो जहाँ भी रहेगा केसर खिलायेगा ही और देखिये परिणाम; दो वर्ष के छोटे कार्यकाल में ही जम्मू और कश्मीर में बदलाव दिखने लगा है। वहां के युवा पत्थर झटक कर अब खेल और पढ़ाई में रूचि ले रहे हैं। विश्वविद्यालयों में पढ़ाई और शोध अपनी नियत चाल पर हैं। व्यवसाय और बुनियादी कार्य जोरों पर है। पर्यटन में भी विश्व में एक अहम स्थान हो गया है जम्मू-कश्मीर का। कई इंडेक्स में भारत का सबसे अग्रणी राज्य बन गया है जम्मू कश्मीर। वहां की अवाम संवाद कर रही है, अपने विजन रख रही है और हाथों में तिरंगा लेकर अमृत महोत्सव में बढ़चढ़कर हिस्सा ले रही है। देश को दुनिया में सबसे आगे देखने का ख्वाब देख रही है। सबसे बड़ी चीज; अब वहां के लोग मानने लगे हैं कि वो भारत के अभिन्न अंग हैं, भारत से अलग उनकी कोई पहचान नहीं है।

     बहुत बड़ी चुनौती के साथ मनोज सिन्हा जी रक्तरंजित घाटी में प्रवेश किये थे और उनके तन्मयता, इच्छाशक्ति, ईमानदारी और लगन का ही प्रतिफल है कि अब उसी घाटी में केसर के फूल खिलते हैं।                   

✍️सुरेश राय चुन्नी

सुरेश रॉय ‘चुन्नी’ (युवा इतिहासकार/लेखक)