एक मित्र का प्रश्न

प्रश्न- राम गुप्ता जी भगवान होते है अथवा नहीं..?
मंदिर में निर्जीव मूर्ति और पत्थरों की पूजा से भगवान का क्या तात्पर्य है..?

उत्तर- भगवान होते हैं लेकिन जिन्दे में होते हैं, मुर्दे में नहीं।
चैतन्यता में भगवान होते हैं जड़ता में नहीं।
जड़वस्तुओं से अधिक भगवत्ता पेड़पौधों में होती है।
पेड़पौधों से अधिक भगवत्ता पशुपक्षियों में होती है।
पशुपक्षियों से अधिक भगवत्ता मनुष्यों में होती है।

मनुष्यों में भी PQ से अधिक भगवत्ता IQ में होती है।
और IQ से अधिक भगवत्ता EQ में होती है।
और EQ से अधिक भगवत्ता SQ वालों में होती है।

SQ में ही सर्वोच्च भगवत्ता विद्यमान होती है।
जिस मनुष्य का SQ जितना अधिक विकसित है वह उतना अधिक भगवान है।

विवेक ही भगवान है।
विवेकशीलता ही भगवत्ता है।
यह संपूर्ण सृष्टि विवेक के ही अधीन है।

जो मनुष्य जितना अधिक विवेकशील है वह उतना अधिक ऐश्वर्य सम्पन्न होता है।
विवेक ही ब्रह्म है।
आत्मविवेक ही SQ का प्राथमिक चरण है।
विवेक ही संसार में मनुष्य को ईश्वरत्व प्रदान करता है।
विवेकशील मनुष्य से श्रेष्ठ कोई अन्य ईश्वर नहीं इस विराट ब्रह्मांड में।

धन्य है वह मनुष्य जो SQ सम्पन्न है, विवेकशील है, चैतन्य है, आत्मस्थ है, सर्वात्मक है, सर्वहितकारक है, स्वार्थमुक्त है, निष्पक्ष न्यायकारक है, प्रेम का पुंज है, इच्छाओं का ईश्वर है, वृत्तियों का दास नहीं शासक है, ऊर्ध्व-रेतस् है, योगस्थ है, समाधानस्थ है, मुक्त है, स्वस्थ है।
वही पूज्य है, वही आदर्श है, वही मार्गदर्शक है, वही नेतृत्वकर्ता है, वही विधाता है, वही मंत्री है, वही न्यायाधीश है, वही सद्गुरु है, वही ईश्वर है, उससे श्रेष्ठ इस ब्रह्मांड में कोई अन्य भगवान नहीं।

✍️???????? (राम गुप्ता, स्वतंत्र पत्रकार, नोएडा)