सुधीर अवस्थी ‘परदेशी’-
मेरी परम प्रिय धर्मपत्नी मणि ! मैं तुम्हारा आभारी हूं। जीवन के कठिन संघर्षो में गुरू-पितु-मातु का सानिध्य और आपके साथ ने मुझे बहुत ही सहारा दिया। आज वैवाहिक 10वीं वर्षगांठ पर तुम्हारे लिए कुछ शब्द समर्पण इच्छा आई तो साथियों के साथ बड़ी बेबाकी से आपके जीवन सफर और दिनचर्या को लेकर खुले मंच पर तारीफ करने का मन आ गया। अपने से बड़ों के सामने पत्नी को तारीफ कुछ खास शोभा भले ही न देती हो या फिर यह कृत्य संस्कार विहीन हो यह जानते हुए भी मैं अपने आप को नहीं रोक पा रहा । इसलिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं-पढ़िए मेरे दिल के उदगाार-
ओह 10 वर्ष गुजर गए। 07.07.2007 को मेरी जीवन संगिनी बहुत सुन्दर, सुशील और सरल मणि को प्रथम मुलाकात में अपने जीवन के सिद्धान्तों के बारे में बताकर उन्हें भी अपनी जीवन की कार्यशैली को बदलने के लिए प्रेरित किया। उन्होनें मेरी बातों का अक्षरशः पालन करते हुए हर मोड़ पर परेशानी के दौर में परछांई की तरह रहती हैं। मणि की दिनचर्या किसी साधारण महिला की तरह नहीं बिल्कुल एक सन्त की तरह है। सुबह साढ़े तीन से चार बजे तक उठना, पूजा-पाठ-जप और नितप्रति हवन करने के पश्चात ही ग्रहकार्यों का शुभारम्भ करती हैं। फैशनबाजी से बिल्कुल दूर हां लेकिन किसी समारोह में आयोजक के सम्मान के लिए उन्हे संवरना पड़ता। घर की रोजमर्रा जिन्दगी में उनकी सादगी भी अपने आप में एक मिशाल है। दिन में बारह बजे से दो बजे तक विश्राम करने के बाद मेरे कारण सूर्यास्त से पूर्व ही भोजन तैयार करना होता है। नियमित सांयकाल सोने से पूर्व माताजी की सेवा करना आज तक दिनचर्या में शामिल है। जब तक पिताजी जीवित रहे मरते दम तक उनकी सेवा और सम्मान किया। बच्चों के स्कूल में क्या पढ़ाया गया और उनकी क्या जरूरत है। उसका भी उन्हें बखूबी अनुभव है। यह सब जिम्मेदारी वहीं संभालती हैं। क्रोध की तीव्रता के कारण कभी-कभी मनमुटाव हो जाता फिर बाद में सब नार्मल। हां आर्थिक रूप से मैं उनको उनके अनुरूप भले ही साधन सुविधा न दे पाया हूं फिर भी मणि के लिए पूरी तरह समर्पित रहता हूं। बहुत से जीवन के अनुभव मणि से जुड़े हैं। मेरे लिए दुनिया की सबसे बड़ी हसीना और सच्ची हमसफर हैं। उनके सिवा भला कौन हमारा हो सकता ? प्रेम प्रसाद के रूप में दो पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। जिनमें ऋषि और मुनि दोनों को पाकर दाम्पत्य जीवन सुखी और समृद्ध महसूस कर रहा हूं।