आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

अध: टंकित वाक्य को सकारण शुद्ध करेँ :–
● मैं दो दिन से गांव पर/पे है।
सकारण उत्तर–
सर्वप्रथम हम अपने प्रश्नात्मक वाक्य पर विचार करेँगे। यह वाक्य अशुद्ध है; क्योँकि वाक्य से निर्देश की ध्वनि आ रही है, इसलिए वहाँ वाक्यान्त मे प्रयुक्त विवरण-चिह्न (:–) के स्थान पर निर्देशक-चिह्न (–) (‘चिन्ह’ अशुद्ध है।) का प्रयोग होगा।
इसप्रकार हमारा प्रश्नात्मक वाक्य होगा :–
◆ मै दो दिन से गांव पर/पे है।

उपर्युक्त (‘उपरोक्त’ अशुद्ध है।) अशुद्ध वाक्य का पठन करने पर ज्ञात होता है कि यह शुद्ध नहीँ (‘नहीं’ अशुद्ध है।) है; क्योँकि (‘क्योंकि’ अशुद्ध है।) वाक्य का कर्त्ता-शब्द ‘मै’ सर्वनाम-शब्द है, जो उत्तम पुरुष का एकवचन है।यह चिरन्तन/शाश्वत/सनातन सत्य है कि ‘मै’ का क्रिया-शब्द ‘हूँ’ ही होता है, इसलिए प्रयुक्त क्रियात्मक शब्द ‘है’ का कोई औचित्य नहीँ है। ‘है’ प्रयोग तब शुद्ध माना जाता जब हमारा कर्त्ता अन्य पुरुष का एकवचन होता; उदाहरण के लिए– वह, शान्तनु, राघव, प्रिया, अदिति इत्यादिक।

हमे बोध होना चाहिए कि हिन्दी मे वाक्य-गठन करते समय सर्वप्रथम कर्त्ता, फिर कर्म, यदि पूरक शब्द हो तो पूरक तथा अन्त मे क्रिया का व्यवहार किया जाता है।
हमने सबसे पहले कर्त्ता-शब्द ‘मै’ (‘म’ पंचमाक्षर है, जो अनुस्वारयुक्त होता है, इसलिए ‘मै’ मे अलग से अनुस्वार का प्रयोग करना उपयुक्त नहीँ है।) को लिख लिया। ‘मै’ के आगे कालबोधक विशेषण-शब्द ‘दो दिन से’ है, जोकि अशुद्ध है। ‘दो’ बहुवचन का शब्द है, इसलिए वाक्य की प्रकृति को समझते हुए, उसके साथ जुड़ा शब्द ‘दिन’ का बहुवचन ‘दिनो’ का प्रयोग होगा। उदाहरण के लिए– चार घण्टे/घण्टोँ, चार वर्षोँ, चार महीने/महीनो इत्यादिक। हाँ, हम ‘चार सप्ताहोँ’, ‘चार दशकोँ’ इत्यादिक का प्रयोग नहीँ कर सकते; क्योँकि सात दिनो का समूह ‘सप्ताह’ है एवं दस वर्षोँ का समूह ‘दशक’ है, इसलिए हम ‘चार सप्ताह’ एवं ‘चार दशक’ ही कहेँगे, लिखेँगे, पढ़ेँगे-पढ़ायेँगे। अब हमे आरम्भिक शुद्ध वाक्यांश ‘मै दो दिनो से’ प्राप्त हो गया है। ‘दो दिनो से आगे’ का शब्द ‘गांव पर/पे’ है, जोकि अशुद्ध है। यहाँ ‘गांव’ की वर्तनी (अक्षरी) शुद्ध नहीँ है; क्योँकि ‘गांव’ तत्सम शब्द नहीँ है। यदि तत्सम शब्द होता तब अनुस्वार का प्रयोग होता; क्योँकि अनुस्वार (ं) का प्रयोग केवल तत्सम/विशुद्ध शब्दोँ मे किया जाता है, शेष मे अनुनासिक (ँ) का। यहाँ ‘गांव’ के स्थान पर ‘गाँव’ लिखा जायेगा। चूँकि ‘दो दिनो से हूँ’ का प्रयोग है अत: सुस्पष्ट हो जाता है कि ‘मै’ नामक व्यक्ति गाँव मे प्रवेश कर चुका है। यद्यपि सप्तमी विभक्ति के कारक ‘अधिकरण’ के लक्षण ‘मे, पे, पै, पर’ प्रकट करते हैँ तथापि ‘गाँव’ मे प्रवेश किये जाने के सम्बन्ध मे ‘मे’ का ही व्यवहार किया जायेगा। उदाहरण के लिए बहुसंख्यजन इस आशय का वाक्यप्रयोग करते सुने जाते हैँ :– ‘मै घर पर ही हूँ; चले आना।’ यह प्रयोग अशुद्ध है; क्योँकि व्यक्ति जैसे ही अपने घर के मुख्य प्रवेशद्वार को खोलता है वैसे ही वह ‘घर मे’ प्रवेश करता है। इसप्रकार वह ‘घर पर’ के स्थान पर ‘घर मे’ ही का व्यवहार करेगा। भीतर जाना, अन्दर जाना, घुसना, प्रवेश करना मे कारक-चिह्न ‘मे’ ही प्रयुक्त होता है; जैसे– जंगल मे, नदी मे, रास्ते मे, मन्दिर-मस्जिद मे, चिकित्सालय मे, शिक्षालय मे इत्यादिक। ‘पर’ का प्रयोग होता है :– सड़क पर, पेड़ पर, मुँड़ेर पर, छत पर, स्टेशन पर इत्यादिक स्थलोँ के लिए किया जायेगा।

उपर्युक्त वाक्य की शुद्ध की गयी क्रिया ‘हूँ’ के ‘ह’ के ऊपर अनुस्वार का प्रयोग करके यदि ‘हू’ पर बिन्दी (हूं) वा ‘हू’ पर शून्य (०) लगाया जाता है तो वह ‘भयंकर भूल’ के अन्तर्गत रेखांकित किया जायेगा। हम यदि ‘हूं’ का उच्चारण करते भी हैँ तो ‘हूँ’ की ही ध्वनि निर्गत होती है, इसलिए ‘हूँ’ ही शुद्ध प्रयोग है।

इसप्रकार हमारा शुद्ध वाक्य गठित हुआ है :–
◆ मै दो दिनो से गाँव मे हूँ।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २४ अक्तूबर, २०२४ ईसवी।)