लखनऊ मे सम्मान्य शम्भुनाथ जी के साथ किया गया सारस्वत विमर्श सुखद रहा

उत्तरप्रदेश मायावती-शासन मे निजी एवं प्रमुख सचिव एवं उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान मे निदेशक रहे, मेरे सारस्वत मित्र एवं ज्येष्ठ भ्राता-सम समादरणीय ७८ वर्षीय शम्भुनाथ जी को गत ११ नवम्बर को ‘आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला’ नामक कृति सश्रद्धा भेँट करते हुए, अतीव प्रसन्नता हुई थी। हम लगभग ३० मिनट तक उनके ६०, विशालखण्ड-निवासस्थान मे हरीतिमा से भरपूर परिसर मे बैठकर अन्तरंग एवं साहित्यिक विमर्श करते रहे। उनकी स्मृति आज भी समृद्ध है। मेरी कई दशक की बातेँ, लिखे और कहे गये वाक्य बिना किसी संशोधन के आज भी उनके स्मृति-पटल पर अंकित हैँ।

दस कृतियोँ, विशेषत: रामधारी सिँह ‘दिनकर’ जी की कृतियोँ पर सम्मान्य शम्भुनाथ जी का अभिनव समीक्षात्मक दृष्टिबोध अत्यन्त समृद्ध जान पड़ता है। उन्होँने जब बताया कि दिनकर जी मे शृंगारप्रियता एवं क्रान्तिकारिता से लेकर अध्यात्मवादिता तक की विचारशक्ति है तो हम अत्यल्प समय मे ही जयशंकर प्रसाद जी की ‘कामायनी’ शब्द का अर्थसंयोजन करते हुए, ‘इड़ा सर्ग’ के पृष्ठोँ की गवेषणा करते रहे, जिनके साथ कई अभिनव उपसंहार से भी जुड़ते गये; अन्तत:, जब हमने दिनकर जी को अध्यात्म से सम्पृक्त करने के लिए ‘हारे को हरिनाम’ का स्मरण किया तब आत्मवाद के कपाट अनावृत होते संलक्षित हुए।

आत्मीय श्रद्धेय शम्भुनाथ जी का प्रबल अभिलाष है कि वे दिनकर जी को ‘अध्यात्मवादी’ भी सिद्ध करेँ। उनका हेतु सफल हो, कामना है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १२ नवम्बर, २०२४ ईसवी।)