डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय–
प्रयागराज में ‘दिव्य कुम्भ’ के अवसर पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, उत्तरप्रदेश-राज्यपाल-मुख्यमन्त्री, प्रमुख विपक्षी राजनेत्री-नेता आदिक शान के साथ डुगडुगी पिटवाते हुए पधारे थे; संगमस्नान किये थे; यहाँ तक कि प्रधानमन्त्री कवच-कुण्डल धारण कर सर्वोच्च रक्षात्मक व्यूह-रचनान्तर्गत संगम में एकाकी स्नान किये थे और सरकारी दलित जातियों के महिला-पुरुष के पाँव से घुटनों तक भक्तिभाव से रगड़-रगड़ कर समत्व भाव और स्वच्छता अभियान को भावात्मक रंग में रँग भी गये थे। अब वही प्रयागराज, संगमनगरी तथा दास्य भाव के साथ जिनके पाँव पखारे थे, वे सभी आज ‘जल-प्लावन’ (कथित गंगा-यमुना-सरस्वती-प्रकोप) के कारण अपने अस्तित्व-रक्षा के लिए “त्राहि माम्-पाहि माम्” कर रहे हैं और प्रधानमन्त्री ‘उल्लासनगरी’ में मदान्ध होकर हुल्लासमय वातावरण में अपना तथाकथित ‘जन्मदिन’ मना रहे हैं। इतना ही नहीं, उल्लिखित समस्त नेतागण अब प्रयागराज/संगमनगरी को संकट के क्षणों में साथ छोड़कर ‘गांधी के तीन बन्दर’ हो गये हैं।
इतना ही नहीं, प्रयागराज के जनपद-प्रशासन के वे तथाकथित अधिकारी, जिन्हें उनकी कर्त्तव्यनिष्ठा के लिए ‘सरकारी प्रमाणपत्र’ दिये गये थे, वे ‘केदारनाथ की किस गुफा’ में संकुचित और क्षुद्र स्वार्थ- साधना और आराधना कर रहे हैं?
यह ‘न्यू इण्डिया’ के इतिहास में ‘परोपकारिता’ का एक अभिनव अध्याय सिद्ध होगा।
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १८ सितम्बर, २०१९ ईसवी)