● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
कुकर्मी यदि अपना नाम बदलकर कुकृत्य करे तो उससे उसका अपराध कम नहीं हो जाता। यही स्थिति मध्यप्रदेश के उस ‘व्यापमं’ की है, जो अपने कदाचार, दुष्कृत्य तथा हत्यारिन मानसिकता के लिए समूचे देश मे कलंकित हो चुका है। उस समय भी भारतीय जनता पार्टी के नेता और मध्यप्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान थे। उस बदनामी ने शिवराज मामा को इतना लथेड़-लथेड़कर पटका था कि उन्होंने ‘व्यापमं’ नाम से ‘तौबा’ कर लिया था। उसका नाम ‘पी० ई० बी०’ रखा गया। उस नाम ने बदनामी के चादर को इतना झीना कर दिया था कि उसे भी बदलना पड़ा और नया नाम ‘कर्मचारी चयन-मण्डल’ करना पड़ा था। अफ़्सोस! उस नाम के पैवन्द ने ‘कर्मचारी चयन-मण्डल’ का चिथड़ा-चिथड़ा कर दिया है। वर्ष २०१५ और २०२२ के मध्य ‘कर्मचारी चयन-मण्डल’ की ओर से १०६ परीक्षाएँ आयोजित की गयी थीं, जिनमे से २४ परीक्षाओं मे अनियमितता पायी गयी थीं। उनमे संलिप्त १ हज़ार से अधिक एफ० आइ० आर० की गयी थीं; मगर परिणाम, “ढाक के तीन पात”।
मूल विषय है, ‘चरित्र’। यदि कर्त्तव्यस्तर पर चरित्रहीनता दिखेगी तो परिणाम और प्रभाव का होना भयावह है। आज ठीक यही स्थिति मध्यप्रदेश के उस ‘कर्मचारी चयन-मण्डल’ का है, जिसे उसके मूल नाम के कुसंस्कार और कुकर्म के प्रभाव ने ग्रस लिया है।
स्मरणीय है कि भरती-प्रक्रियाहेतु दायित्व-निर्वहण करनेवाले राज्य-निकाय को लगभग ६,००० रिक्तियों के लिए १२ लाख ३४ हज़ार आवेदनपत्र प्राप्त हुए थे। पटवारी-भरती के लिए १५ मार्च से २६ अप्रैल, २०२३ ई० के मध्य ‘ऑनलाइन’ परीक्षा आयोजित की गयी थी, जिसमे ९ लाख ७४ हज़ार परीक्षार्थी सम्मिलित हुए थे। परीक्षा हो जाने के कुछ दिनो-बाद जो उत्तरपर्णी (आँसर की) जारी की गयी थी, उसमे कई प्रश्नो के उत्तर ही अशुद्ध और अनुपयुक्त थे। उसके बाद कई अभ्यर्थियों ने आपत्ति दर्ज़ करायी थी, जबकि सभी आपत्तियों की अनदेखी की गयी थी। ३० जून को परिणाम घोषित होने के बाद परीक्षार्थियों ने असंतोष और क्षोभ व्यक्त करते हुए, आरोप लगाया था कि उन्हें सामान्यीकरण के पश्चात् बहुत अंक प्राप्त हुए थे। इस भ्रष्टाचार का नीतू नामक अभ्यर्थिनी ने खुलकर विरोध किया था। असंतुष्ट सभी अभ्यर्थियों ने समूह–२, उपसमूह–४ तथा पटवारी रिक्तियों के अन्तिम परिणामो मे अनियमितता और कदाचार के आरोप मढ़े हैं।
इस परीक्षा मे ग्वालियर के एक ही परीक्षा-केन्द्र से १० मे से ७ टॉपर हैं। हैरत मे डालनेवाली बात यह है कि सभी टॉपरों के हिन्दी मे हस्ताक्षर एक-जैसे सुन्दर अक्षरों मे हैं। इतना ही नहीं, इसी परीक्षा-केन्द्र से ११४ अभ्यर्थियों का पटवारी के लिए चयन किया गया है। ग्वालियर के एन० आर० आइ० कॉलेज के बाद सागर के बाबूलाल ताराबाई कॉलेज का नाम बदनामी की रौशनी मे नहाया हुआ है। इस परीक्षा-केन्द्र मे परीक्षा देनेवाले १० से अधिक परीक्षार्थियों को १५० से अधिक अंक दिये गये हैं, जिनमे से अधिकतर ‘पटेल’ हैं।
ज्ञातव्य है कि पटवारी वह पदनाम है, जो ग्राम रजिस्ट्रार अथवा लेखाकार के पद पर रहते हुए, अपने दायित्व का निर्वहण करता है।
यहाँ जो महिला दिख रही है, उसने मध्यप्रदेश-पटवारीभरती-परीक्षा मे तृतीय स्थान प्राप्त किया है। उसका नाम ‘पूनम रजावत’ है। पटवारी-परीक्षा की इस तीसरी टॉपर से प्रश्न किया गया था― मध्यप्रदेश मे कुल कितने जिले हैं? तब वह इस बहुत ही आसान प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकी। इस महिला से इसी स्तर के कई प्रश्न किये गये थे, जिनके उत्तर वह नहीं दे पायी थी। एक अन्य वीडियो सार्वजनिक हुआ है, जिसमे पटवारी-भरतीपरीक्षा मे चयनित की गयी मधुलता गढ़वाल नामक अभ्यर्थिनी यह स्वीकार करते हुए बताती है, “मेरा नाम मधुलता गढ़वाल है। मेरे पिता जी का नाम लालपति राम है। मेरे बारे मे जो चर्चाएँ चल रही हैं, उनके बारे मे मै बस इतना कहना चाहती हूँ कि मुझे एक सीट के लिए १५ लाख रुपये का आफर मिला था, जिसे मैने स्वीकार किया था। अगर आपको
कोई ऐसा आफर देगा तो क्या आप नहीं मानेगे? हमको आफर मिला, जिसे मैने और पिता जी ने स्वीकार कर लिया; मगर परीक्षा कैंसिल नहीं करनी चाहिए।” एक अन्य अभ्यर्थिनी पूजा रावत का कहना है, “मेरे पिता खेती और सेक्योरिटी गॉर्ड का काम करते हैं। मेरे पास इतना पैसा कहाँ से आयेगा? मेरी जाँच करायी जाये और यदि मै गलत तरीके से चुनी गयी हूँ तो मुझ पर कार्रवाई (शुद्ध शब्द ‘काररवाई’ है।) की जाये और यदि मै निर्दोष हूँ तो उनपर कार्रवाई की जाये, जो आरोप लगा रहे हैं।”
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि टॉप टेन टॉपरों ने रिश्वत देकर ही सफलता हथियायी है और बारीक़ी के साथ इस प्रकरण की जाँच स्वतन्त्र जाँच-समिति से करानी होगी, तभी “दूध का दूध और पानी का पानी” हो सकेगा।
इसी तरह के कई नाम और चेहरे हैं, जिन्होंने रूप-रुपया-रुतबा के बल पर टॉप किये हैं और नौकरी पाने-लायक़ अंक बटोर लिये हैं। सभी रिश्वत देनेवाले-वालियों तथा रिश्वत लेनेवाले-वालियों के विरुद्ध कठोर काररवाई करने की ज़रूरत है।
उल्लेखनीय है कि इस परीक्षा मे २३ ऐसे अभ्यर्थियों का चयन किया गया है, जो ‘त्यागी’ उपनाम के हैं और सभी मध्यप्रदेश के मुरैना जनपद के हैं। उनमे से सभी विकलांग-कोटे अथवा आर्थिक रूप से कमज़ोर-कोटे के अन्तर्गत चयनित किये गये बताये जा रहे हैं।
तथाकथित टॉपर्स की सूची सार्वजनिक होते ही इस सत्य का उद्घाटन हुआ है कि जिन १० परीक्षार्थियों ने पटवारी-परीक्षा मे टॉप किये हैं, उनमे से ७ परीक्षार्थियों का परीक्षाकेन्द्र एन० आर० आइ० कॉलेज, ग्वालियर था। उन टॉपरों ने हिन्दी मे हस्ताक्षर किये थे, जबकि उन्हें अँगरेज़ी-विषय मे २५ मे से २५ अंक दिये गये हैं। इतना ही नहीं, ९ हज़ार चयनित अभ्यर्थियों मे से १ हज़ार ऐसे अभ्यर्थी हैं, जिनका परीक्षाकेन्द्र एन० आर० आइ० कॉलेज, ग्वालियर था। इसप्रकार इस पूरी भरती-प्रक्रिया मे एन० आर० आइ० कॉलेज, ग्वालियर की भूमिका संदिग्ध दिखती है। ज्ञातव्य है कि कथित सन्दिग्ध कॉलेज मध्यप्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के एक क़रीबी भारतीय जनता पार्टी के विधायक संजीव कुशवाहा का है, जो इससे पहले बहुजन समाज पार्टी का कार्यकर्त्ता हुआ करता था। यहाँ यह भी ग़ौर करने का विषय है कि परीक्षा कराने का दायित्व बंगलरु की कम्पनी ‘एडुक्विटी करियर टेक्नोलॉजी लिमिटेड’ को दिया गया था, जिसे केन्द्र-शासन की ओर से ‘ऑन-लाइन परीक्षा आयोजित करने के लिए अपात्र घोषित किया जा चुका था। इस कम्पनी को इसके काले कारनामो के लिए ‘ब्लैकलिस्टेड’ घोषित किया जा चुका था। ऐसे मे, प्रश्न है– जब मालूम था कि उक्त कम्पनी ‘ब्लैकलिस्टेड’ है तब उसे परीक्षा कराने का दायित्व क्यों सौंपा गया था?
अब यह विवाद इतना बढ़ गया है कि कथित टॉपर्स सामने आने का साहस नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें भय है कि ‘मीडिया की ओर से परीक्षण होते ही “दूध का दूध और पानी का पानी” हो जायेगा।
अब इस गड़बड़ घोटाले का संज्ञान करते ही मध्यप्रदेश की सरकार ने चुप्पी ओढ़ ली है। वास्तव मे, गम्भीरतापूर्वक विचार किया जाये तो यह व्यापमं-घोटाला-शृंखला को मज़्बूती देनेवाली एक बेहद घिनौनी कड़ी है :– पहले चिकित्सकों की भरती मे भ्रष्ट आचरण का परिचय दिया गया था, फिर कृषि भरती-परीक्षा मे घोटाला किया गया था और अब, इस पटवारीभरती-परीक्षा मे बेईमानी करायी गयी है।
इस पूरे घटनाक्रम ने ‘व्यापमं परीक्षा २०१३-१४ की चिकित्सकों की भरती-परीक्षा के परिणाम को स्मृति-पटल पर पटक कर रख दिया है, जिसमे भारतीय जनता पार्टी के क़द्दावर नेता भी शामिल थे और कुपात्र अभ्यर्थियों ने रिश्वत देकर नौकरी हथिया ली थी।
बेशक, पटवारी-भरती- परीक्षा-परिणाम पिछले ३० जून को घोषित किया गया था; परन्तु परिणाम घोषित होने के लगभग १० दिनो के बाद यानी १० जुलाई को अभ्यर्थी की ज़बरदस्त तरीके से टॉपरों की सूची जारी करने की माँग मुखर होने पर जब ‘कर्मचारी चयन-मण्डल’ की ओर से ‘टॉप टेन’ की ‘मेरिट-लिस्ट’ घोषित की गयी थी तब कथित मण्डल की ओर से करायी गयी धाँधली सामने आ गयी और अभ्यर्थियों का असंतोष चरम पर दिखने लगा।
दु:ख का विषय है कि इतने सारे तथ्यों और साक्ष्यों के बाद भी मध्यप्रदेश के गृहमन्त्री नरोत्तम मिश्र इन सभी आरोपों को एक सिरे से झुठलाते आ रहे हैं।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २३ जुलाई, २०२३ ईसवी।)