एक समीचीन अभिव्यक्ति

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

मेरे दोस्त!
तुम्हारा चेहरा
आज दल-परिवर्त्तन करता दिख रहा है।
तुम्हारी अतिरिक्त महत्त्वाकांक्षा की गाथा
पैवन्द लगीं चादरें सुना रही हैं।
लोलुपता और लिप्सा
तुम्हारे चरित्र की पटकथा को
आमिशाषी बना रही हैं
तुम निष्ठुर बनते जा रहे हो।
तुम जीवन-मृत्यु के मध्य
समीकरण बनाने की कला
सीखकर भी सीख न पाये
क्योंकि परख और समझ को
तुमने दो समानान्तर रेखाओं में बदल दिया है।
स्वर में माधुर्य का अनुलेपन
और मन-मस्तिष्क में
विषाक्त षड्यन्त्र का प्रासाद निर्मित कर
तुमने जो भूल की है
समय-शिला पर
पश्चात्ताप और प्रायश्चित्त का भुगतान
तुम्हें करना ही है।
( सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; ५ मई, २०१८ ई०)