और बी०एच०यू० कलंकित हुआ!

महिला-छात्रावास में पी०ए०सी० के जवान कैसे घुसे?

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय (यायावर भाषक-संख्या : ९९१९०२३८७०, prithwinathpandey@gmail. com)-


आज देश के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कम, राजनीति अधिक हो रही है। एक चपरासी से लेकर कुलपति तक शतरंज की बिसात पर मोहरें चलते हुए नज़र आ रहे हैं। यही कारण है कि देश के सारे विश्वविद्यालय और संघटक महाविद्यालय अध्ययन-अध्यापन को गर्त्त की ओर ले जाते हुए स्पष्टत: दिख रहे हैं। निर्धारित मानदण्डों-मापदण्डों की अवहेलना करते हुए, नियुक्तियाँ की जा रही हैं, जिनमें सत्ताधारी दलों का सीधा हस्तक्षेप रहता है।
‘कुलपति’ शब्द कितना अर्थवान्, पवित्र, गौरवपूर्ण तथा दायित्वमय अर्थ रखता है परन्तु जहाँ पात्रता और योग्यता का तिरस्कार करते हुए, चाटुकारिता और उत्कोच (रिश्वत) के आधार पर कुलपतियों की नियुक्तियाँ की जाती हों वहाँ वे सारे उदात्त अर्थ अपना स्थान छोड़ने लगते हैं।
इसी का परिणाम और प्रभाव देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक बी०एच०यू० अर्थात् ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में पिछले चार-पाँच दिनों से दिख रहा है, जो उस महामना की दानशीलता को आघात पहुँचाता है, जिसने पाई-पाई जोड़कर उसकी आधारशिला रखी थी। तो क्या उस महामना के प्रति वर्तमान कुलपति और समस्त विश्वविद्यालय-प्रशासन का यही प्रतिदान है कि बेटी-बहुओं का मान-मर्दन करो।
शर्म करो, भारतीय संस्कृति के कर्मकाण्डीय उपासको! महामना मदनमोहन मालवीय ने तुम सबको बी०एच०यू० इसलिए नहीं सौंपा था कि वहाँ अपनी निष्क्रियता को सिद्ध करते हुए, अराजकता का वातावरण बनने दो प्रत्युत इसलिए समर्पण की पराकाष्ठा स्थापित की थी कि उसे ज्ञान की शक्तिपीठ का आसन दो।
खेद है, उसी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर गिरीशचन्द्र त्रिपाठी अपनी कुलपति की मूल चेतना को गह्वर में पैठाकर पूर्णत: कर्त्तव्यच्युत दिख रहे हैं।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में बहुत दिनों से वहाँ की छात्राओं के साथ वहीं के लुच्चे-लफंगे-लम्पट विद्यार्थी छात्राओं के साथ आपत्तिजनक व्यवहार करते थे; छात्राएँ सहमी रहती थीं; लोकलाज के भय के कारण किसी से कुछ कह नहीं पाती थीं। जब वे अराजक तत्त्व मनबढ़ हो गये तब छात्राएँ अपनी आवाज़ उठाने के लिए बाध्य और विवश हो गयीं। कुलानुशासक और अन्य अध्यापकों से छात्राएँ अपनी सुरक्षा की माँग करने लगीं। कोई उपाय नहीं दिखने पर उन्होंने कुलपति से मिलकर अपनी बातें-शिकायतें करने की ठान लीं। ऐसे में, कुलपति को सुरक्षा-संरक्षण में रहकर छात्राओं के प्रतिनिधि-मण्डल से मिलकर उनकी वेदना सुनने में क्या और क्यों कष्ट हो रहा था? जब उन छात्राओं की माँग नहीं माँगी गयी तब छात्र-छात्राओं ने अपनी असन्तोष-अभिव्यक्ति के लिए पुलिस-सुरक्षा में ‘शान्तिपूर्ण प्रदर्शन’ करने की अनुमति माँगी थी। इसमें कौन-सा अपराध किया था? उसके बाद भी जब छात्र-छात्राओं ने सड़क पर उतरकर अपना सामूहिक असन्तोष प्रदर्शित करना चाहा तब उन्हें पी०ए०सी० और उत्तरप्रदेश पुलिस की लाठियाँ खानी पड़ीं और कुलपति महोदय अपने कमरे में आराम फ़रमाते रहे? धिक्कार है!
यही नहीं, छात्राओं के आन्दोलन पर नियन्त्रण करने के लिए कुलपति ने पुरुष पुलिसबल का प्रयोग कराया था। यही कारण है कि महिला छात्रावास के भीतर पुरुष पुलिस और पी०ए०सी० के जवान घुसकर लड़कियों पर लाठियाँ भाँज रहे थे, जिसमें कई छात्राएँ घायल हुई हैं; सहमी हुई हैं तथा अपने भविष्य के प्रति आशंकित हैं।
प्रश्न है— इन सारी घटनाओं के लिए कौन उत्तरदायी है? उत्तर भी मिलता है— एकमात्र कुलपति।
यहाँ कुलपति से कुछ प्रश्न करने स्वाभाविक लगते हैं। कुलपति महोदय! आपको लाखों की संख्या में वेतन किस लिए दिया जाता है? जब से आप कुलपति बने हैं तब से आप स्वत: संज्ञान लेते हुए, उनकी कठिनाइयों, समस्याओं, माँगों आदिक के सन्दर्भ में छात्रों और छात्राओं के प्रतिनिधिमण्डल से कितनी बार मिल चुके हैं और यदि मिले भी हैं तो उन कठिनाइयों, समस्याओं तथा माँगों के सन्दर्भ में आपने अभी तक कौन-कौन-से ठोस क़दम उठाये हैं? महिला-पुरुष के छात्रावासों में आप कितनी बार गये हैं और वहाँ उनकी समस्याएँ कितनी बार सुनी हैं? किस विभाग का कौन-सा अध्यापक अपने कर्त्तव्य का परिपालन नहीं कर रहा है और राजनीतिक वातावरण बनाकर विश्वविद्यालय का अहित कर रहा है, इसे जानने का प्रयास आपने कभी किया है? विश्वविद्यालय और संघटक महाविद्यालयों में आप वहाँ के छात्रकल्याण अधिष्ठाता (डीन) और कुलानुशासकगण (प्रॉक्टर) से कितनी बार मिले हैं और यदि मिले हैं तो विद्यार्थियों की समस्याओं को जानने-समझने तथा उन्हें दूर करने का प्रयास किया है?
उक्त सभी प्रश्न देश के समस्त विश्वविद्यालय के कुलपतियों तथा संघटक महाविद्यालयों के प्रधानाचार्यों के लिए भी हैं।
बी०एच०यू० के कुलपति ने अपने पक्ष में कहा है, “बड़ी ‘मात्रा’ में बाहर से लोग यहाँ लाये गये।” ऐसे में, पुन: प्रश्न है, विश्वविद्यालय परिसर अय्याशगाह नहीं है अपितु ज्ञान का पुनीत केन्द्र है। ऐसे में, आपके ‘सुरक्षा गार्ड’ क्या कर रहे थे?
एक और घिनौना प्रकरण बी०एच०यू० का है, जिसमें वहीं की एक महिला प्राध्यापक ने कला-संकाय के ‘डीन’ कुमार पंकज को आरोपित किया है कि पंकज ने उसके साथ आपत्तिजनक बरताव किया है। इस मामले को ठण्ढे बस्ते में डाल दिया गया है, क्यों?
५६ इंच के सीने पर घमण्ड करनेवाले “बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ” नारा के प्रवर्त्तक और जहाँ राष्ट्रीय मर्यादा के साथ बलप्रयोग किया गया है, वहाँ के सांसद और देश के प्रधान मन्त्री ‘मौनी बाबा’ क्यों बने हुए हैं? मुख्य मन्त्री आदित्यनाथ योगी साधुवाद के पात्र हैं, जिन्होंने छात्राओं पर लाठियाँ चलानेवाले नपुंसकों के कुकृत्यों की जाँच के आदेश कर दिये हैं।
बहरहाल, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति अपने कार्यकाल के अन्तिम चरण में विश्वविद्यालय के इतिहास में पहली बार छात्राओं के आवास में उत्तरप्रदेश के पुरुष पुलिसबल और पी०ए०सी० के जवानों को घुसने की अनुमति देकर और उन पर लाठियाँ चलवाकर, एक बीभत्स इतिहास लिखते हुए, अपने माथे पर अमिट कलंक का टीका लगा चुके हैं!