‘यौन-शोषण’ के बदलते सन्दर्भ

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

‘मुक्त मीडिया’ का ‘आज’ का सम्पादकीय

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

कोई भी जब ‘यौन-शुचिता’ पर बात करता है तब वह ‘यौन’ नाना प्रश्नों के घेरे में आ जाता है। अब ‘यौनशोषण’ करना और कराना, बायें हाथ का खेल हो गया है। इस यौन शब्द से जुड़े ‘शोषण’ शब्द पर विचार किया जाये तो इसी शोषण में कई रूप, रंग, आकार-प्रकार तथा नाम छुपे हुए हैं। अति महत्त्वाकांक्षा; परन्तु प्रतिभा के नाम पर शून्य। ऐसे में, तरह-तरह की एजेंसियाँ प्रतिभा निखारने के नाम पर भरपूर शोषण करती हैं और वैसी प्रतिभाहीना जानती रहती हैं कि बिना दिये-लिये बात नहीं बननेवाली होती है। यही कारण है कि ‘कल’ की पारस्परिक रज़ामन्दी से किये गये अधिकतर व्यभिचार, संभोग इत्यादिक कुछ ख़ास अनबन के चलते ‘आज’ ‘यौनशोषण’ का रूप लेते जा रहे हैं। प्राय: ऐसा देखा गया है कि जो ‘मुँहलगी’, ‘मुँहफट’ तथा कई व्यभिचारी महिलाएँ पुरुषों के संसर्ग में रहती आयी हैं, अधिकतर वे ही ‘यौनशोषण’ का रोना रोती आ रही हैं। ऐसी ही महिला कलाकारों की उनके आचरण की पृष्ठभूमि से लेकर उनकी प्रत्येक गतिविधि को साक्ष्यों के साथ सार्वजनिक किया जाये तो सुस्पष्ट हो जायेगा कि वैसी महिला कलाकारें फ़िल्मों को पाने के लिए ‘स्वयं’ को परोसती आ रही हैं। ऐसी कुत्सित परम्परा हर क्षेत्र में है। समाज, साहित्य, मीडिया, राजनीति, कला, संस्कृति, विज्ञान, क्रीड़ा, धर्म, अध्यात्म, योग, चिकित्सा, वित्त-वाणिज्य, हर तरह के प्रबन्धन में है। कुछ छिप जाते हैं; छिपा लिये जाते हैं तो कुछ प्रकट हो जाते हैं; कुछ प्रकट करा दिये जाते हैं।

वर्ष २०१४ के यौनशोषण का दर्द अब उभर कर आया है। तो क्या मान लिया जाये, पिछले पाँच वर्षों तक ‘आनन्द का अनुभव’ लिया जा रहा था।

जो औरत अपने घरवालों से विद्रोह कर फ़िल्मी दुनिया की ओर भागी हो, वह कितनी ‘सती-सावित्री’ हो सकती है, यह विषय भी विचारणीय है। घर से भागकर कथित महिलाएँ किसके यहाँ रहती हैं; क्योंकि फ़िल्मी दुनिया बहुत महँगी होती है? घर से भागकर किसी महिला को कोई भी निर्माता यों ही काम नहीं दे देता। यह तो फ़िल्मी दुनिया की एक अघोषित परम्परा है। प्राय: निर्माता-निर्देशक नवागन्तुक महिलाओं से पूछते हैं– हम आपको यदि अपनी फ़िल्म में काम देंगे तो हमें बदले में ‘आपसे’ क्या मिलेगा? ऐसे में, यदि कोई सती-सावित्री महिला होती है तो वह तत्काल फ़िल्मी दुनिया को लात मारकर अपने घर लौट आती है। वैसे सती-सावित्री घर से विद्रोह कर भागती नहीं।

जो महिला मुम्बई की चकाचौंध में अपने घरवालों के साथ विद्रोह कर घर से फ़ुर्र हो जाती है, प्रथम दृष्ट्या यह एक अपराध है। ऐसी महिला कोई भी दुस्साहसिक कर्म कर सकती है।

एक और बात, जो महिला कलाकार अपने फ़िल्मी जीवन में असफल सिद्ध रहती है, वह तरह-तरह के हथकण्डे अपनाती है। उदाहरण के लिए– पूनम पाण्डेय, सनी लियोनी आदिक ने ‘सार्वजनिक रूप से’ अपने शरीर को परोसा। कला-फ़िल्मों की एक जानी-मानी अभिनेत्री ने दशकों पहले एक फ़िल्मी पत्रिका में भेंटवार्त्ता के दौरान कहा था– हम हीरोइनें ढकी-मूँदी वेश्याएँ होती हैं।

यहाँ यह भी प्रश्न विचारणीय है– क्या महिलाएँ पुरुष का ‘यौन-शोषण’ नहीं करतीं? चाक़ू खरबूजे पर गिरे या फिर खरबूजा चाक़ू पर गिरे, शोषण तो दोनों का होता है। उत्तर सुस्पष्ट है– बेशक, करती हैं। ऐसे में, प्रश्न उभरता है– फिर पुरुष क्यों नहीं कहता– अमुक महिला ने उसका भी यौन-शोषण किया है?

हमारा पुरुष-समाज भी विचित्र है! पहली ओर, वह महिला को अपने जाल में फँसाता है। कुछ समय बाद वही महिला जब ‘बलात्कार’ अथवा ‘यौन-शोषण’ का आरोप मढ़ती है तब वही पुरुष-समाज उस कथित छद्म पीड़िता का पक्षधर हो जाता है। दूसरे शब्द में– पुरुष-समाज का ‘दोगला चरित्र’ उभर कर सामने आता है।

एक बात और, ऐसी कौन-सी अभिनेत्री अथवा महिला कलाकार है– जिसका ‘कास्टिंग काऊच’ नहीं हुआ है? यह भी कड़ुआ सत्य है कि आज जितनी भी जानी-मानी फ़िल्म-अभिनेत्रियाँ हैं, उनमें से अधिकतर को ‘कास्टिंग काऊच’ से गुज़रना पड़ा है; क्योंकि वहाँ तो फ़िल्में पाने के लिए सब कुछ करने और मानने के लिए प्रतिदिन सैकड़ों को ‘कास्टिंग काऊच’ से होकर गुज़रना पड़ता है। उन्हीं में से कुछ ‘ब्लैक मेल’ करने या फिर स्वयं को फ़िल्मी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ‘यौनशोषण’ का नाम देकर पाँच-छ: वर्षों-बाद अपना रोना रोती हैं। आगे चलकर, उनमें से अधिकतर को फ़िल्मी दुनिया से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है और कुछ को अपने अनुसार चलाया जाता है।

यहाँ यह प्रश्न भी विचारणीय है– जो महिलाएँ कला के नाम पर अपने अंग-प्रत्यंग की तोड़-मरोड़, उछाल का भौंड़ा-प्रदर्शन करती हैं, उनकी पवित्रता पर वहीं हज़ारों घड़े पानी पड़ जाता है। ऐसे में, ‘यौन-शोषण’, ‘बलात्कारादिक’ के प्रसंग ‘बासी’ पड़ जाते हैं। अब शब्दकारों को चाहिए कि वे ‘यौन-शोषण’ का कोई और नामकरण करें।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २२ सितम्बर, २०२० ईसवी।)