श्री रामचरितमानस मे मातृरूप के विविध रूप-दर्शन का विलक्षण वर्णन है– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

मानस-मर्मज्ञ पं० पन्नालाल गुप्त ‘मानस’ की पुण्यस्मृति मे आयोजित आध्यात्मिक परिसंवाद

मंगलवार को ‘मानस-मयूख’ एवं ‘श्रीमद्भट्टपीठम्’, प्रयागराज के संयुक्त तत्त्वावधान मे स्वागतम् होटल, प्रयागराज के सभागार मे मानसमर्मज्ञ पं० पन्नालाल गुप्त ‘मानस’ की स्मृत्यंजलि-स्वरूप ‘श्री रामचरितमानस मे मातृशक्ति की अवधारणा’ विषयक एक आध्यात्मिक परिसंवाद का आयोजन किया गया था। समारोह मे अध्यक्ष एम० एन० आइ० टी० के विद्यार्थीकल्याण-अधिष्ठाता डॉ० राजीव श्रीवास्तव थे। न्यायमूर्ति सुधीर नारायण मुख्य अतिथि की भूमिका में थे। भाषाविज्ञानी एवं मीडियाध्ययन-विशेषज्ञ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय मुख्य वक्ता थे, जबकि अनिल कुमार, पं० अशोककुमार शुक्ल तथा यासमीन सुल्ताना नकवी की भूमिका विशिष्ट अतिथि की रही।

आरम्भ मे मंचस्थ अतिथिवृन्द ने दीप-प्रज्वलन कर समारोह का उद्घाटन किया था। सामाजिक कार्यकर्त्ता संतोष जैन ने अतिथियों का स्वागत किया।

मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति सुधीर नारायण ने कहा– मानस-मर्मज्ञ पं० पन्नालाल गुप्त ‘मानस’ का जैसा सोच और विचार था, आज उसी के अनुरूप यह आयोजन सम्पन्न हो रहा है। श्री रामचरितमानस एक समुद्र है, जिसे अनेक दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। राम की माताओं की प्रकृति और प्रवृत्ति अलग-अलग रूप मे दिखती हैं। हम सबको मातृशक्ति की आराधना करनी चाहिए।

मुख्य वक्ता के रूप मे भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने अपना विस्तृत और विशद मत व्यक्त किया– सर्वप्रथम हम स्मृति-शेष और तुलसी-प्रणीत श्री रामचरितमानस की चौपाइयों, दोहों तथा सोरठाओं के मर्म का संस्पर्श करनेवाले पं० पन्नालाल गुप्त ‘मानस’ जी के सुपुत्र प्रबोध मानस जी का साधुवाद करते हैं, जिन्होंने अपने पिताश्री के मन-मानस मे व्याप्त रहनेवाले विषय का श्री रामचरितमानस के आलोक मे प्रस्तुत करते हुए, अपने पिता के प्रति वास्तविक भावांजलि अर्पित की है। वास्तव मे, श्री रामचरितमानस के विविध प्रसंगों मे मातृशक्ति-विषयक जितने भी संदर्भ लक्षित होते हैं, उनमे तत्कालीन नारी-दशा और दिशा के प्रतिबिम्ब की झलक मिलती है। मातृशक्ति का सकारात्मक और नकारात्मक रूप देश-काल, परिस्थिति-पात्र से प्रभावित रहा है। हम जब तुलसी-कृत श्री रामचरितमानस मे नारी-पात्रों की भूमिका पर विचार करते हैं तब ज्ञात होता है कि बालकाण्ड से उत्तरकाण्ड तक मे मातृरूप के विविध रूप-दर्शन का विलक्षण वर्णन है। राम का दिव्य रूप मे अवतरण और माता कौशल्या के कहने पर बालरूप मे आना, यहीं से मातृशक्ति की अवधारणा की पुष्टि होती है और मातृभाषा का महिमा-मण्डन भी होता है।

आचार्य पं पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने अपने व्याख्यान के अन्तर्गत अरण्यकाण्ड मे सती अनुसूइया का सीता को पातिव्रत-धर्म के मर्म के शिक्षण-दीक्षण करने के विलक्षण कर्म की महत्ता को समझाया। उन्होंने क्रमबद्ध रूप मे कौशल्या, मन्थरा, कैकेयी, उर्मिला, सीता, ताड़का, अनुसूइया, अहल्या, शूर्पणखा, शबरी, तारा, रुमा, सुरसा, सिंहिका, लंकिनी, त्रिजटा, मन्दोदरी, सुलोचना आदिक का चरित्रचित्रण करते हुए, समस्त नारीपात्रों का शोधपरक बोध कराया था।

एम०एन०आइ०टी०के विद्यार्थीकल्याण-अधिष्ठाता डॉ० राजीव श्रीवास्तव ने कहा– हम श्री रामचरितमानस का जितना भी अध्ययन करें, कम है। उसके सभी पात्र मातृशक्ति की उपयोगिता और महत्ता को प्रकट करते रहे हैं। आज ऐसी मातृशक्ति की आवश्यकता है, जो दिशाहीन दिख रहे बच्चों को सुपथ पर चलने के लिए प्रेरित करने मे सफल रहे।

इसी अवसर पर डॉ० राजीव श्रीवास्तव ने उपर्युक्त विषय पर अगले वर्ष अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर एक समारोह आयोजन कराने का प्रस्ताव किया था, जिसका सर्वसम्मति से करतल-ध्वनि के साथ स्वागत किया गया था।

अनिल कुमार ने पन्नालाल गुप्त ‘मानस’ के विषय मे अनेक संस्मरण प्रस्तुत किये।

परिसंवाद-कार्यक्रम के अनन्तर विद्यार्थियों के एक दल ने विविध प्रकार के योगासन करके दर्शकों का मन मोह लिया था।

इस अवसर पर मंचस्थ अतिथियों ने संतोष गोइन्दी, डॉ० चन्द्रविजय चतुर्वेदी, डॉ० राजमणि शास्त्री, शिशिर सोमवंशी, के० एन० कुमार, डॉ० जहाँआरा सिद्दीक़ी, डॉ० बालकृष्ण पाण्डेय, ज्ञानप्रकाश, सी० एल० सोनकर, डॉ० वीरेन्द्र तिवारी, शिवमंगल सिंह ‘मानव’, रजनीश केसरवानी, अभिनव शर्मा तथा अतिनुकुमार सोनकर को प्रशस्तिपत्र और शॉल भेंटकर सम्मान किया गया।
प्रबोध मानस ने समारोह का संयोजन किया था और नवीन सिन्हा ने संचालन।

इस अवसर पर प्रयागराज और बाहर से आये श्रोता-दर्शकों की प्रभावपूर्ण उपस्थिति रही।