सबके कल्याण की प्रबल हिमायती है अवधी : डॉ० विद्या बिन्दु सिंह

अवधी के अनुपम अनुष्ठान ‘भाखा पत्रिका विमोचन’ के मौके पर अवधी के माहात्म्य पर वक्ताओं ने डाला प्रकाश

दिल्ली – ‘जइसे सबके दिन बहुरे हइ भगवान वइसै हमरेउ दिन बहुरै’ जैसी विश्व कल्याण की दृष्टि रखने वाली कोई अन्य भाषा नहीं अपितु हमारी संस्कार भाषा अवधी है जो हिन्दी को वैश्विक पटल पर प्रस्थापित करने के लिए अनथक अविरल गति से प्रयास कर रही है ।

ये बातें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की पूर्व उपनिदेशक व जानी मानी साहित्यकार डॉ विद्या विन्दु सिंह ने अवधी के धुरंधर कवि बलभद्र प्रसाद दीक्षित ‘पढ़ीस’ की जयन्ती के पावन मौके पर अवधी दुनिया केरि तिमाही प्रतापी पत्रिका ‘भाखा’ क्यार मंगल विमोचन करते हुए एक विश्वस्तरीय वर्चुअल कार्यक्रम में कही । उन्होंने पत्रिका परिवार को वात्सल्यमयी आशीर्वाद देते हुए कहा कि ‘भाखा’ पत्रिका अवधी उत्थान के लिए दुनिया में एक नई मिसाल कायम करे ऐसी हमारी अशेष शुभकामनाएँ हैं । विशिष्ट वक्ता के रूप में अमर उजाला के पूर्व प्रधान सम्पादक व निर्वान टाईम्स एवं हिंट के कर्ताधर्ता शम्भूनाथ शुक्ल ने कहा कि विश्व में हिंदी का समादर भाव रामचरित मानस की बदौलत ही है और रामचरित मानस अवधी भाषा में लिखी गई है । इसलिए अवधी को विश्व व्यापी सम्मान दिलाने के लिए जो बीड़ा भाखा के सम्पादक डॉ गंगा प्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ ने उठाया है वह निश्चित ही श्लाघनीय कदम है । उन्होंने बैसवाड़ी और केंद्रीय अवधी की रूप छटाओं की वैभाषिक संपदा, विपुल शब्दावली व उसके रूप -स्वरूप पर केन्द्रित अपना मनोहारी व्याख्यान भी प्रस्तुत किया और कहा कि अवधी के चाहने वालों की संख्या मारीशस, नार्वे, चीन, नेपाल, पाकिस्तान सहित तमाम देशों में आज भी बड़ी तादाद में मौजूद है । उन्होंने एक संस्मरण साझा करते हुए कहा कि जब रहमत अली भारत से पाकिस्तान गए तो साथ में रामचरित मानस पुस्तक ले गये । वहाँ वे इसी इसी पुस्तक के बल पर लोगों को राम कथा सुनाया करते थे। थोड़े दिन बाद ही जनमानस ने उन्हें पण्डित रहमत अली कहकर विभूषित किया। यह है अवधी भाषा का प्रबल प्रभाव व प्रताप जिसने जाति, धर्म की बेड़ियों को तोड़कर भारत का मान बढ़ाया है ।

बतौर अतिथि वक्ता प्रोफेसर कैलाश देबी सिंह पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषाएँ, लखनऊ विश्वविद्यालय, संस्थापक अध्यक्ष अवधी अध्ययन केंद्र लखनऊ ने कहा कि अवधी अवधांचल की ही नहीं वरन विश्व क्षितिज पर विराजमान तमाम भाषाओं के मध्य एक अप्रतिम भाषा के रूप में सुशोभित है अवधी में अद्भुत मिठास और सहजता दोनों समाहित हैं लोग बोलकर तो देखें । आज ‘बिरवा’पत्रिका की याद ताज़ा हो गई और अब लगता है कि उस बिरवा को ‘भाखा’ रूपी पत्तियाँ छायादार बनाएँगी । डा योगेन्द्र प्रताप सिंह, विभागाध्यक्ष, लखनऊ विश्वविद्यालय, आधुनिक हिन्दी एवं भाषाएँ विभाग ने बतौर अतिथि वक्ता कहा कि हिन्दी के साथ अवधी का मणिकांचन संयोग देखते ही बनता है और यही काम ‘भाखा’ पत्रिका भी करेगी। इसलिए भाखा पत्रिका को अग्रिम से नई -नई ऊचाईयाँ छूने के लिए ढेरों शुभकामनाएँ देता हूँ। फिर उन्होंने अवधी के रूप -स्वरूप को नवोन्मेषी दृष्टि के साथ व्याख्यायित किया ।

मॉरीशस के विश्व विश्रुत साहित्यकार मुख्य अतिथि हेमराज सुन्दर ने भारत भूमि को नमन करते हुए अपनी मातृभाषा अवधी के उत्थान के लिए लेखन प्रवाह में श्रीवृद्धि करने की जरूरत पर बल दिया।उन्होंने भारत और मारीशस के सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने के बाबत एक कविता सुनाकर सभी लोगों का दिल जीत लिया ।आशीष कन्धवे सम्पादक,’गगनांचल’ ने अवधी को गाँव गरीब मज़दूर की भाषा बताया और कहा जब तक गाँव गरीब मजदूर किसान की भाषा मजबूत नहीं होती तब तक देश उन्नति के नये आयाम नहीं तय कर सकता। प्रवासी संसार के सम्पादक,डॉ राकेश कुमार पाण्डेय ने अवधी के महत्त्व पर विश्व व्यापी चिंतन प्रस्तुत कर अवधी के विविध पक्षों को उभारा और जिम्मेदारों का अवधी के प्रति किए जा रहे रवैय्या के प्रति असन्तोष प्रकट किया।

मुख्य वक्ता अवधी हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार डा भारतेन्दु मिश्र ने ‘भाखा’ पत्रिका को शुभाशीष देते हुए सम्पादक डॉ गंगा प्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ को हृदय तल से शुभकामनाएँ दीं और कहा कि ‘भाखा’ अवधी के फूल से पूरी दुनिया महक़ेगी । उन्होंने न केवल अवधी के भाषिक स्वरूप की विवेचना की अपितु उसकी वैश्विक चेतना को भी चिह्नित किया और अपना पूरा व्याख्यान अवधी में देकर उसकी भाषिक क्षमता का प्रमाण भी दिया ।

राज्य लोक सेवा आयोग के अधिकारी व साहित्यकार अशोक कुमार शुक्ल ने ‘भाखा’ पत्रिका के दीर्घजीवी होने के लिए मंगलाशीष प्रेषित किया । नार्वे से विश्व विख्यात साहित्यकार सुरेश कुमार शुक्ल ने अवधी अंचल को वन्दन करते हुए अवधी उत्थान पर अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए । चीन से आशीष गोरे ने हिन्दी के प्रति अपने समर्पण भाव को लोगों के बीच साझा किया । दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ सत्य प्रिय पाण्डेय ने ‘अवधी जैसी सीधी सरल भाषा से भारतीय संस्कृति को बल मिलता है’ की बात कहकर अवधी की सुग्राह्यता पर प्रकाश डाला । तकनीकी सहयोगी व ‘भाखा’ के प्रमुख आधार स्तम्भ विनय शुक्ल ने लोगों को ढाढस दिलाया कि हम इस पत्रिका को नया मुकाम दिलाने के लिए हर सम्भव प्रयास करेंगे । कार्यक्रम का सन्तुलित, प्रभावी व प्रवाहमयी शैली में संचालन करते हुए शिक्षक व साहित्यकार आराध्य शुक्ल ने अवधी परिपथ बनाये जाने की पुरजोर वकालत की । इससे पूर्व पत्रिका के सम्पादक सीतापुर की माटी से जुड़े अवधी माँ के आराधक व वरदपुत्र डॉ गंगा प्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ ने अपने स्वागत सम्बोधन में कहा कि मेरे छोटे से आग्रह पर इतने बड़े-बड़े लोगों का अकूत अनुग्रह विस्मय विमुग्ध करने वाला है, बिना किसी आना कानी के इन सबका जुड़ जाना मुझ जैसे सामान्य व्यक्ति के लिए किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है, सुदामा के तंदुल का इतना मान कि द्वारकधीश काँख में झाँक लें । गरीब ब्राह्मण कैसे न खुश होता।उसे तो इसी में त्रैलोक्य-सुख मिल गया फिर चाहे द्वारकाधीश कुछ देते न देते ।

अतिथियों के सहज औदार्य के कारण अपने स्वागत उद्बोधन में मैं भावुक भी हूँ नीयत ठीक होगी तभी नीति फलदायी होगी। आज मै उस गूँगे की तरह खुश हूँ जो गुड़ खाकर स्वाद का अहसास तो करता हैं किन्तु अपने सुख का बखान नहीं कर सकता । यह भी कहा कि अवधी मेरी माँ है। गोस्वामी तुलसीदास की वैश्विक चेतना ने इसे मध्यकल में ही विश्वभाषा बना दिया था। इसका कर्ज़ हमारे सिर पर है उसे चुकता करूँगा और जब तक हमारी शिराओं में रक्त प्रवाहित हो है उसे जीवनपर्यन्त थमने नहीं दूँगा । पत्रिका परिवार के आग्रह पर गंगा-जमुनी संसकृति के ध्वजवाहक और साहित्य जगत में ख्यात नाम अवधी के अनन्य भक्त वाहिद अली वाहिद से माँ वाणी वन्दना करवाई जिसे सुनकर लोग जय सूरसती मइया कहने को उत्साहित नज़र आये । अन्त में डॉ रश्मि शुक्ल ने अतिथियों, वक्ताओं, कवियों व अवधी आराधकों का धन्यवाद देते हुए आभार व अभिनन्दन किया ।

समारोह के अंत में प्रोफेसर सूर्य प्रसाद दीक्षित के अग्रज की असामयिक निधन की सूचना से आहत होकर सबके द्वारा दो मिनट का मौन रखने के बाद आयोजन कोविराम दिया ।
इस अवधी अनुष्ठान के पावन मौके पर आलोक सीतापुरी,प्रोफेसर अनुराधा तिवारी, डॉ भास्कर शर्मा राममिलन दीक्षित, केदारनाथ शुक्ल, देवेन्द्र कश्यप ‘निडर’ सहित तमाम साहित्यानुरागी उपस्थित रहे ।