बालगीत : बहुरुपिये बादल !

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-


आसमान में उड़ते बादल,
रूप बदलकर आते बादल |

लेकर चेहरे काले-भूरे,
कभी गरज चौंकाते बादल |

संग हवा के दौड़ लगाते, 
यहाँ-वहाँ दिख जाते बादल।

देह अकड़ती ठण्ढ से जब,
गुप-चुप धूप दिखाते बादल |

हाथ किसी के कभी न आते, 
दूर गगन छा जाते बादल।

सूरज ग़ुस्से में जब आये,
दूर कहीं छुप जाते बादल |  

रूई के फाहे-से दिखते,
पलभर में छँट जाते बादल।

सबके मन को भाते रहते
प्यारे-न्यारे लगते बादल |

वह दिन कब आयेगा प्यारे!
मन अपना हो जाये बादल?

(यायावर भाषक-संख्या : ९९१९०२३८७०)