बाँदा में बदसूरत बचपन की सिसकती तस्वीर

ख़बर का आधार इस खबर की फ़ीचर फ़ोटो है । इस फ़ोटो में कुछ छोटे-छोटे बच्चे की रंगीन वेला यानी विवाह की शाम वर-यात्रा में रोड लाइट के लिए झूमर लिए चल रहे हैं । बालश्रमिकों की संख्या न के बराबर लेकिन सच्चाई सभी जानते हैं ।

क्या सरकार, क्या अधिकारी, क्या समाज का ठेका लिए घूम रहे स्वयंसेवी संगठन और क्या मीडिया सभी गांधारी कीभूमिका में हैं ? वैसे क्या फर्क पड़ता है, ये बच्चे कौन सा हमारे घर के हैं ? समाजसेवी आशीष सागर कहते हैं कि यहाँ राजनीति के लिए मुद्दे लायक मामलों के सिवा कौन किस पर ध्यान देता है ? हालात कहाँ बदलने वाले !
लेकिन समाज की विडम्बना तो देखए कि यहाँ देश में फालतू के प्रवचन, धर्म, जाति के मुद्दे आदि को नासूर बनाकर बड़े – बड़े संगठन बड़ी – बड़ी रैलियाँ निकालते हैं और मुहिमें चलाते हैं । हाँ हमारे यहाँ जुगाड़ से बचपन को संवारने के नाम पर एवार्ड, सम्मान पत्र आदि ज़रूर प्राप्त कर लिए गए है । समाज की भलाई की कसमें खाने वाले विधायक और सांसद के साथ ही अन्य जनप्रतिनिधि बचपन के प्रति लापरवाही के लिए बधाई के पात्र हैं । क्या बालश्रम विभाग, बचपन बचाओ समिति, बाल कल्याण समिति, ज़िला प्रोबेशन अधिकारी, बच्चों के लिए काम करने वाले एनजीओ आदि इस पर ध्यान देंगे ।