उल्लास का प्रतीक है ऋतुराज बसंत

ऋतुओं का राजा बसंत शुभ स्वागत। शुभ आगमन आपका। आपके आते ही चेहरे पर नई खुशी नई उमंग नया उल्लास छा जाता है। बसंत आते ही प्रकृति खिल उठती है। नव पल्लव नव सुमनों से पेड़ लदे हुए नज़र आते हैं। पुरानी पत्तियां पीली होकर झड़ जाती है। वृक्षों पर नई नई रंग बिरंगी पत्तियां आ जाती है। 

भांति-भांति के अलग-अलग रंगों के फूल खिल उठते हैं। खेतों में सरसों के पीले फूल ऐसे लगते हैं मानों ललनाओं ने पीले रंग की साड़ी पहन रखी हो। खेत सोने से चमकते हैं। गेहूँ की बालियां आ जाती है। महकते लहलहाते खेत मनमोहक लगते हैं। बैर के पेड़ बैर से लदे हुए। लताएं कितनी अच्छी लगती है।
गुलाब गेंद सूरजमुखी सरसों के फूल खिल आते हैं।बसंत में जीव जगत में नई स्फूर्ति नई चेतना दिखाई देती है। पशु पक्षी खुश नजर आते हैं। आम के बगीचों में कोयल की कुहू कुहू सुनाई देती है बाग बगीचों में फूलों पर मंडराते गुनगुन करते भँवरे दिखाई देते हैं। यह ऋतु समशीतोष्ण होती है। न सर्दी न गर्मी लगती है। रजाई छोड़ देते हैं लोग। किसान लोजगीतों पर नृत्य करते हैं खुशियां मनाते हैं।तितलियां फूलों पर मंडराती है।
कामदेव का प्रभाव चहुँ ओर दिखता है।सुखद जीवन सुखी जीवन स्वच्छ परिवेश प्रसन्नता से भरी जिंदगी नज़र आती है।
विद्या कला ज्ञान की देवी माँ शारदे का बसन्त पंचमी के दिन पूजन अर्चन किया जाता है।

कहीं बसंत के मेले लगते हैं। गाँव-गाँव उल्लास रहता है।
हिन्दी के सभी कवियों ने बसंत की महिमा अपनी कविता में लिखकर प्रकृति की सुंदरता का बखान किया है।

-डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित, भवानीमंडी