भोजपुरी गीतों में शिव तथा पार्वती के विवाह सम्बन्धी अनेक गीत मिलते हैं, जिनमे शिव के विलक्षण रूप, विचित्र बारात आदि का वर्णन किया गया है। शिव बारात में उनकी विभत्साकृति को देख पार्वती की माता का अपनी पुत्री का विवाह से मना करने, और बाद में पार्वती के मनुहार पर शिव के सुन्दर रूप धारण करने पर विवाह कर देने के लिए माता के सहमत हो जाने का वर्णन भी कितना रस से भरा है, इसे देखिए:
लेहुना बारी रे हाथ सोपारी, ए डांड़े घुघुरवा बान्ही
लेहू देखू आऊरे बरिया कत दल आवेरे शिव बरियतिया ?
भूत बेताल आवे शिव बरियतिया, आरे शिव रूप देखलो ना जाई ।
शिवजी की बारात आ रही है, उसकी अगवानी के लिए बारी को भेजते हुए कोई कहता है कि ऐ बारी तुम अपने हाथ में सुपारी ले लो और अपनी कमर में घुंघरू बाँध लो और जाकर देखो कि शिव की बारात में कौन-कौन आ रहे हैं? और जब उसने बताया कि शिव की बारात में भूत, बैताल सब आ रहे हैं, और सर्पधारी शिव का रूप तो इतना भयंकर है कि देखा नहीं जाता।
अरे बाजऽत आवेला ढोल-बतासा, उड़ऽत आवेला निसान।
नाचऽत आवेले ईसर महादेव, बैल पऽ होके सवार।।
गउरा अइसन गेयानी सयानी, तेकर वर बउराह।
अइसन तपसिया के गउरा नाहीं देबों, बलु गउरा रहिहैं कुँवार ।।
और पार्वती की माता जब शिव को परीछने आती हैं तो सांप फुंफकार लगे, यह देख माता रुष्ट हो गयीं, उन्होंने बड़े जोर से किवाड़ बंद कर लिए, ब्याह का मंडप उखाड़ दिया, कलश फोड़ दिया और चौका पूरने के लिए रखे आटे को बिखेर दिया। माता क्रोध में बोलीं, ऐसे साधु को अपनी लड़की गौरा पार्वती को मैं नहीं दूँगी, चाहे वह कुँवारी भले ही रह जाय। पार्वती तो इतनी चतुर-सुजान है और उसका वर कैसा पागल सा है! एक अन्य भोजपुरी लोकगीत देखिए:
ए आगे परीछे गईली सासु मादागिनी, सरप छोड़ेले फुफकार।
ए उंहवां से अइली मादागिनी ठोकली, वजर केवार।।
आरे माड़ो उखारेली, कलसा फोरेली, पुरहथ देली छितराइ।।
अइसन तपसिया के गउरा नाहीं देबों, बलु गउरा रहिहैं कुँवार।
ए शिव गउरा अइसन गेयानी, सेकर सामी बउराह।।
तब कलश की ओट में छिपे-छिपे पार्वती ने शिव से अपने असल रूप में आने की बिनती की, ताकि मायके के लोग विश्वास कर सकें। यह सुन शिव ने अपनी जटा-भस्म उतार कर, स्नान किया, आठों अंग चन्दन चढ़ा, विवाह मण्डप के बीच आकर खड़े हुए, और कहा, ‘मेरी सासु और सलहज कहाँ हैं, अब आकर मेरा रूप देखें।
आरे कलसा के ओटे गउरा बिनती करे, शिवजी से अरज हमार।
तनिक ए शिव, भेख उतारू, नईहर लोग पतियाई।।
उतारेले शिव जाटा, उतारेले गागा, करेले असनान।
आठो ही अंग शिव चनन चढ़वलें, माह मंड़उवा भईले ठांढ़।।
कहाँ बाड़ी सासु, काहाँ बाड़ी सरहज, रूप देखसु अब हमार।
इसरूप को देखकर पार्वती की माता बहुत प्रसन्न हुयीं, और मण्डप सजाने लगीं. और कहा अब ऐसे तपस्वी को मैं पार्वती अवश्य दूँगी, पार्वती का विवाह अवश्य उसी से करुँगी।
आरे माड़ों गड़ावेली, कलस धरावेली, पुरहथ लिहली बटोर।
अइसन तपसिया के गउरा हम देबों, करबों मैं गउरा से बिआह।।
जी.ए. ग्रियर्सन संग डब्ल्यू.जी. आर्चर लगायत कृष्ण देव उपाध्याय, उदय नारायण तिवारी, दुर्गा शंकर प्रसाद सिंह, श्याम मनोहर पाण्डेय आदि ने भोजपुरी की बखारी से बहुत कुछ निकाला है, और बहुत सारा अब भी माटी में दबा है। भोजपुरी माटी और भाषा में दबी स्वर्णिम संस्कृति को उभारने और उसे मुख्य धारा के लेखन,गायन और रंगमंच की अटरिया पर पहुँचाने में नयी पीढ़ी को अभी और मेहनत करनी होगी।
‘शिव बारात गीत’ के बहाने नवकी पीढ़ी से निहोरा बा। ऊ सोन-जस भिनसार के हमरा इन्तजार बाऽऽ।