प्रकृति का सौन्दर्य

कल्पना करिए कि कोई मंदिर; शहर और कस्बे के कोलाहल से बहुत दूर है।

कल्पना करिए कि वहां पहुंचने के लिए न विमान सेवा है, न हाईवे है। यहां तक कि पक्की सड़क भी नहीं है। रास्ते में न गाड़ियों की पों-पों है, न भीड़ की चों-चों। कच्चा, पगडण्डी वाला रास्ता है। इसलिए न सीट बेल्ट लगाने का झंझट है, न हेलमेट पहनने की मजबूरी।

मंदिर के प्रांगण में पार्किंग का कोई झंझट नहीं है। जिधर बाइक पार्क कर दो, वही पार्किंग। मंदिर के बाहर दर्जनों दुकानदार आपको जबरन घेरकर पूजा की थाली खरीदने की जिद नहीं करते। मंदिर में प्रवेश करने के लिए आपको कोई लाइन नहीं लगानी पड़ती। कोई सुविधा शुल्क नहीं देना पड़ता, कोई विशेष पर्ची नहीं कटवानी पड़ती। समय बिल्कुल भी नहीं लगता। आपके और भगवान के विग्रह के मध्य बस चंद सेकंड्स का फासला है।

मंदिर के अंदर पहुंचने पर मंदिर का पुजारी आपसे कोई दक्षिणा नहीं मांगता है और न ही कोई विग्रह के सामने कुछ सेकंड से अधिक रुकने पर आपको धक्का दे देता है। विग्रह साफ सुथरे और पावन हैं। न मनों फूल माला से ढकी हुई, न अत्यधिक फल-मिष्ठान के चढ़ावे से चिपचिपी, लसलसी हुई मूर्तियां।

दान पात्र है लेकिन कोई विवशता नहीं है। आपका मन करे तो दान पात्र में एक रुपये डाल दीजिए, अगर श्रद्धा है तो हज़ार रुपये भगवान के नाम पर अर्पण कर दीजिए। एक रुपये डालने से आपका कोई तिरस्कार नहीं करेगा और हज़ार रुपये डालने से कोई आपका जबर्दस्ती टीका चंदन नहीं करने लगेगा, कलावा नहीं बांधने लगेगा।

समय कम है तो दो मिनट में दर्शन करके वापस चल दीजिए। पर्याप्त समय है तो घंटों मंदिर की फर्श पर बैठकर ईश्वर का ध्यान कीजिये या यूं ही बैठकर मंदिर प्रांगण की आध्यात्मिकता का अनुभव कीजिये। कुछ समय के लिए अपने जीवन की तमाम समस्याओं को भूल जाइए, सभी कष्ट प्रभु को अर्पण कर दीजिए।

अब मंदिर के बाहर आइये। बाईं तरफ एक बड़ा सा पीपल का पेड़ है। जो आपके क्लांत शरीर में प्राणवायु भर रहा है। उसी पुराने पीपल के पास एक ठंडे पानी का कुंआ है । गर्मी के मौसम में कुंए का ठंडा जल पीजिए। मेरा विश्वास करिए, उस ठंडे जल से न केवल आपकी प्यास बुझेगी बल्कि मन भी शीतल हो जाएगा।

अब आप कुंए की जगत (चबूतरे) मैं बैठ जाइए। आंखें बंद कर लीजिए और हरे भरे खेतों की तरफ से आकर कुंए के जल से ठंडी होकर गुज़रती हवा को अपने चेहरे और पूरे शरीर पर महसूस कीजिये। ऐसा लगेगा कि आपकी वर्षों की थकान दूर होती जा रही है। कोई अलौकिक शक्ति आपके शरीर की सारी पीड़ा हर ले रही है। आपका शरीर शीतल, हल्का और निरोग होता जा रहा है। अपने शरीर के अंदर होते इस बदलाव को मन की आंखों से देखिए और महसूस कीजिये।

अब आप आंख खोलिए और ऊंचे तथा बड़े पीपल के पेड़ को यूं ही निहारिये। उसके पत्तों की हलचल को महसूस करिए। फिर वहां से उठिए और आसपास नजर दौड़ाइये। एक तरफ केले के बाग हैं, दूसरी तरफ आम के पेड़ हैं। उसके आगे यूकेलिप्टस की कतारें हैं, फिर पशुओं के चारे वाले खेत हैं ।

अब आप केले के बाग की तरफ जा रहे हैं। वहां जाकर केले के पौधे में लगे केले के घौद को देखिए । उसमें लगे छोटे हरे केलों को निहारिये। ये एक दिन पककर पीले होंगे। तब ये मीठे और स्वादिष्ट होंगे। अभी बेस्वाद लगेंगे।फिलहाल तो इनकी केवल सब्जी बनेगी। प्रकृति के इस खेल पर आश्चर्य करिए कि केले का पौधा अपने जीवनकाल में सिर्फ एक बार फल देता है, फिर काट दिया जाता है।

अब आम के पेड़ो की तरफ बढिये। किसी बड़े और फलदार पेंड़ के नीचे खड़े होकर पके आम के टपकने का इंतज़ार कीजिए। देशी आम के गिरते ही, उसे बिना धोए केवल हाथ से पोंछकर चूसकर खाइये। कार्बाइड से पके कलमी आम और पेड़ से पककर गिरे देसी आम के स्वाद में फर्क महसूस कीजिये। मुंह में जो रस लग गया है, उसे हाथ से साफ कर दीजिए और फिर हाथ को आम के पत्ते से पोंछ लीजिए। रुमाल को आज जेब मे ही रहने दो।

अब वापस मंदिर के पास आइये। मंदिर के बगल में स्थित तालाब के पास सीढ़ियों में बैठकर तालाब में मछलियों के उछलने कूदने से होने वाली हलचल को महसूस कीजिये। तालाब के चारों तरफ लगे पेड़ों की प्रतिकृति तालाब के साफ पानी में देखिए। बयार चलने पर पेड़ झूमेगा तो तालाब के पानी के अंदर वाला पेड़ भी हूबहू वैसे ही नाचेगा।

अगर आपके अंदर का बच्चा अब भी जिंदा है तो एक बित्ती (पत्थर या ईट का पतला टुकड़ा) पूरे जोर से एक विशेष कोण पर तालाब के पानी में फेंकिये और देखिए कि पानी में डूबने के पहले यह कितने बार उतराता है।

कालिका मंदिर, कुम्हड़ौरा, लालगंज बैसवारा (आशा विनय सिंह बैस)