आइए! हम सब न केवल प्रभु को मानें, बल्कि प्रभु की भी मानें

जब भगवान अपना स्वरूप प्रकट करता है तब न जाने उसके कितने बंदों के अंदर एक साथ वो दीप्ति, वो प्रकाश प्रकाशित होने लगता है, जो ईश्वरीय प्रकाश कहा जाता है। संसार को जगाने के लिए, संसार में फिर से वो लहर पैदा करने के लिए किसी न किसी रूप में परमात्मा अपना स्वरूप प्रकट करता है। इसलिए कहा जाता है कि हर किसी में प्रभु का कोई न कोई अंशावतार अवश्य है। 
कोई 14 कला तो कोई 12 कला का अवतार है लेकिन कृष्ण षोडश कला वाले सम्पूर्ण अवतार हैं। प्रभु श्रीकृष्ण सम्पूर्ण रूप लेकर प्रकट हुए। ‘कृष्णं वन्दे जगतगुरूं’ अर्थात श्रीकृष्ण जगत के गुरू हैं। वे सारे संसार के सामने शिक्षा दे रहे हैं कि यह अन्दाज़ जीवन जीने का महान अंदाज है।
भगवान ने कहा “वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः। बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः।।’’ अर्जुन! बहुत लोग पहले भी पवित्र भाव में मुझको प्राप्त हुये हैं, जिन्होंने वीतरागभयक्रोधा- राग को छोड़ दिया। भय से ऊपर उठ गये। क्रोध को अपने अन्दर से पोंछ डाला और महान बन गये। श्रीकृष्ण ने कहा- जो मेरी शरण ग्रहण कर गया, उसका सर्वथा कल्याण हुआ। ऐसे ज्ञान और तप से जिन्होंने अपने को पवित्र किया है, ऐसे बहुत लोग मेरे भाव को प्राप्त हो गये हैं, मुझे प्राप्त हो गये हैं,मेरे आनन्द को उन्होंने प्राप्त कर लिया है।
यहाँ भगवान ने रास्ता दिखाया है कि यदि मेरे रूप को प्राप्त करना चाहते हो तो उसका मार्ग क्या है। बताया- ’वीतरागभयक्रोधा- राग का, भय का और क्रोध का पूर्णरूप से परित्याग करो। ‘मामुपाश्रिता’ मेरे अंदर जो अपने आपे को अर्पित कर चुके हैं वे लोग ज्ञान और तप के द्वारा मेरे स्वरूप को प्राप्त हो गये हैं, मेरे धाम तक पहुँच गये हैं। आइए! हम सब न केवल प्रभु को मानें, बल्कि प्रभु की भी मानें।