भारत-दुर्दशा का वर्तमान

छन्द :– चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी। देश लुट रहा बारी-बारी।।
जनता फिरती मारी-मारी। असर न होता अत्याचारी।।
आपस मे है मारा-मारी। पापी दिखते सब पर भारी।।
पाप घड़ा पापी भर आया। भगतोँ को यह रास न भाया।।
शीलहरण की हो अधिकाई। मानुस-मानुस है भिरुकाई।।
राज निरंकुश अतिशय भारी। जन-जन की दिखती लाचारी।।
दोहा :–
आँख खोलकर देख लो, गुण्डे हैँ चहुँ ओर।
हत्या-शीलहरण यहाँ, कोई ओर-न-छोर।।
बोलो सियाबर रामचन्द्र की जय।
चौपाई :–
तानाशाह देश मे छाया। गुण्डाराज बनाने आया।।
गुण्डागर्दी चरम पर आयी। राजनीति मे यही कमायी।।
एक सिरे से देश है छँटता। कोई बँटता-कोई कटता।।
पाप-लहर भारत मे छायी। भारत-दुर्दशा कहि न जायी।।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ५ नवम्बर , २०२४ ईसवी।)