इहे ह भोजपूरी बाबू!

“अब देख ना हे भछनो के”

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

"का हो बबुनी! घुघुनिया भछत-भछत सेकराहे-सेकराहे फेकरात-फेकरात तिरिछियाइ के मटकी मारत तीरछी पाला कइले केने उधियाइल जा तारू?"
 
"तोरा के माटी लागो; तोरा खोभार परो; तोरा कीरा परो; तें टोकि के हमारु जतरा खराब कइले। हे बरहम बाबा! हे टूटाबीर बाबा! हेकरा के जलदिये उठा लीह। तहरा के कराहि के तिलवा चढ़ाइब।" 

"ए दादा! हई देख ना भहरौनो के? एक भछनो से हमार पूछलो दाँड़ि लागि गईल। आरे! हम त एही तरी इनकरा बोल दिहिंली हा, आ बबुनी के बाउर लागि गईल। तँ तू जा ओनिये झोंकरा; भहरा; फेंकरा।"
  
"झोंकराईं भा भसार में जाईं, एसे तोरा के का? ते केतना तिरछोल हुवे, ई कुल्हि टोला-माहाला जानेला, बूझले? हमरा सोझे तोर दलिया नइखे गले के। कहीं अउर बंसी लगाऊ।"
   
"बाह-बाह! तोर लेकचर सुनि के अब जनाये लागल कि अब बबुनी के राजनीती के चसका चढ़े लागल बा। के बोलाव ता तोरा के? स्मिरितिया लेखा पहिले तिरियाचरितर सीखु। ना होखे त काल्हु से हमरा पासे आ जइहे; घरवा में केहू बावे ना। हमु तोरा के ओकर एक-एक चलिया सिखाई देब। बुझाइल कि ना। आ इहो समुझि ले, जब तें चटक चटनी लेखा खटतूरस हो जइबे त मोदी, गोदी, रोगी, जोगी, भोगी-- सभकर जिभिया होठवा के लपेरे लागी। हऊ मोदिया के नउवा तनी भुला जा तानी; हँ याद आ गइल नीरव मोदिया। अरे फेर त तें इण्टरनेशनल बियूटी कवीन हो जइबे।"
   
"आच्छा त तें हमरा के इनटरलनेसलन बियूटी बनइबे। ए छिछोर! हम जान तानी कि हमरा का करेके बा। त एमे तोर का खियाता? हम राजनीती में जाईं भा फिलिम में जाईं, तोर देहिया काहें के कुकुलाता रे? ते न मनबे त तोर ककन छोड़ाए हमारा आवेला।"
   
"त बबुनी के अब फिलिमो में जाए के सौखि चरियावे लागल। के तोरा के पूछी रे? ओइजा एक से बड़हन-बड़हन चीजु होखे ला। तोरा लेखा हजारन गदराइल ओइजा पानी भरे।" 
   
"आ भाक्! तोरा जइसन थेथर आदमी के एगो ककुरो ना पूछी। फजीरे-फजीरे तोरि जे मुँहवा देखि लिही नू त ओकर दिनभर के बनलो जतरा बिगड़ि जाला। एही से तोरा के एगो कुकरो ना पूछ ला। अब हट् आ हमार रहतिया छोड़।"
    
"अब देख ना ई भछनो के। हम ढंग से बतियावतानी, आ ई नागिनिया-लेखा टेढ़-मेढ़ होके फुँफिया तिया। तोरा के टोकलो डाँड़ होई गईल। आ सुन! ते जेने जा तरे नू, उ तोरा खातिर दाँड़ि होइ जाई; बुझाइल? आ अब हम जा तानी।"
   
"त जो, के रोकता तोरा के? तेहीं त अदबदाइके हमरा के गोहरवले हा। जो; ते त डीह रहेवाला मँजनू नू हवे। जेने देखबे लइकी त होठवा से लारे टपके लागे ला, बाकिर एकहू ठेके ना। अब तें एइजा से भागु।"
    
"जा तनी छम्मक-छल्लो। बाकिर सुन ले, आखिर में खाली अपना के झँखिबे।"
    
"आ भाग मुअना। सुरतवाला जतरा बिगाड़ि दिहलस। अब कहीं ना जाइब। अब चल तानी घरे। फेर कबो जाइब। इ निसतनिया टोकि के आजु के पूरा दिनवा खराब कइ देहलस।

(सर्वाधिकार सुरक्षित — आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २३ जनवरी, २०२१ ईसवी।)