प्रख्यात भाषाविद् आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय के ‘भाषाचिन्तन’ का एक व्यावहारिक आयाम

● हिन्दीभाषा-जगत् में ‘भाषिक क्रान्ति’ उत्पन्न करनेवाली पुस्तक वर्षान्त तक उपलब्ध


 हमारे अध्यापकवृन्द, प्रतियोगी विद्यार्थियों, सामान्य विद्यार्थियों तथा हिन्दी सीखने के प्रति लालसा जीनेवाले हिन्दी-अनुरागीजन के लिए वर्षान्त तक २३-३६/८ के बड़े आकार में 'सामान्य हिन्दी', 'व्याकरण', 'संरचना' तथा 'साहित्य' पर आधृत एक ऐसी पुस्तक सार्वजनिक होगी, जो "भूतो न भविष्यति" की सार्थकता को सिद्ध करते हुए, आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय (डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय) की अब तक की सम्बद्ध समस्त पुस्तकों को पीछे की ओर क़दम ले आने के लिए बाध्य और विवश कर देगी। 

उल्लेखनीय है कि प्रतिष्ठित व्याकरणाचार्य- भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की ही हिन्दीभाषा/व्याकरण/सामान्य हिन्दी की पुस्तकें उत्तर-भारत में सबसे अधिक पढ़ी जाती हैं। देश के छात्रावासों में प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं की तैयारी करने वाले अधिकतर विद्यार्थी आचार्य पं० पाण्डेय की ही पुस्तकों का अध्ययन करते आ रहे हैं।
लगभग ६५० पृष्ठों की वह पुस्तक अध्ययन-सामग्री-  वस्तुपरक प्रश्नों (उत्तरसहित), अपनी गुणवत्ता तथा अकल्पनीय प्रस्तुति के आधार पर सभी के हृदयप्रान्त में सहज ही स्थान बना लेगी। 

इसी पुस्तक के समानान्तर आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की एक बृहद् 'सामान्य ज्ञान' की पुस्तक भी अपने एक अलग ही कलेवर में मुद्रण-प्रक्रिया के अन्तर्गत है। 

दोनों ही कृतियाँ एक साथ अथवा अल्प अन्तराल पर सार्वजनिक हो जायेंगी।

एक प्रश्न के उत्तर में प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया है, "उक्त भाषिक-साहित्यिक पुस्तक में 'शुद्धता' और 'शुचिता' के प्रति विशेष ध्यान किया गया है।"
आचार्य पं० पाण्डेय ने बताया, "प्रतियोगी विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से पिछले १० वर्षों में विभिन्न प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं में किये गये प्रश्नों को उनके उत्तरसहित स्थान दिया गया है, साथ ही पुस्तक में १००-१०० प्रश्नों (उत्तरसहित) के १० प्रतिदर्श प्रश्नपत्रों की भी व्यवस्था की गयी है।"
एक अन्य प्रश्न के उत्तर आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया, "प्राय: पुस्तक लिखनेवाले पुस्तकों और ग्रन्थों और उनसे उद्धृत प्रसंगों का उल्लेख, मूल सन्दर्भ पुस्तकों और ग्रन्थों से सामग्री न लेकर उसी तरह की पुस्तकें लिखनेवाले 'अपात्र' (व्यावसायिक) लेखकों की पुस्तकों से यथावत् लेकर करते हैं। इस कारण सम्बद्ध पुस्तकों के नाम और उद्धृत 'शब्द', 'वाक्यांश' तथा वाक्य अशुद्ध रहते हैं। इसके लिए मैंने मूल पर दृष्टि निक्षेपित किया था।"

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने भेंटवार्त्ता के समय जिस मुख्य विन्दु की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है, वह उनके लिए महत्त्वपूर्ण है, जो शुद्ध हिन्दी लिखना और बोलना चाहते हैं, यानी हिन्दी सीखना चाहते हैं; किन्तु उपयुक्त स्रोत के अभाव में सीख नहीं पाते। इस विषय में आचार्य पं० पाण्डेय का कहना है, "वह पुस्तक उनके लिए अति उपयोगी सिद्ध होगी, जो आरम्भ से हिन्दी सीखना चाहते हों।"

हमें भी उस पुस्तक की प्रतीक्षा है।