लेखिका:- अर्चना पाण्डेय
प्रकाशक:- साहित्य संगम प्रकाशन, इंदौर
पृष्ठ:- 23
संस्करण:- 2019 (प्रथम)
समीक्षक:- राजेश कुमार शर्मा “पुरोहित”
देश की ख्यातिनाम कवयित्री अर्चना पांडेय की प्रथम काव्यकृति काव्यमेध के प्रधान संपादक डॉ. कैलाश मंडलोई कदम्ब है। संपादक चन्द्रपाल सिंह चन्द्र व सह संपादक राजेश कुमार तिवारी रामू व राजवीर सिंह मन्त्र है।
अध्यक्षीय में राजवीर सिंह मन्त्र लिखते हैं कि हर रचनाकार के मन मे ये होता है कि मेरी भी एक कृति प्रकाशित हो। ऐसे ही नवोदित रचनाकारों के लिए साहित्य संगम प्रकाशन आगे आया और काव्यमेध तैयार किया जा रहा है।
सम्पादकीय में डॉ. कैलाश मंडलोई ‘कदम्ब’ ने लिखा कि काव्यमेध काव्य के विस्तार का एक अभियान है। काव्यमेध में सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण की कामना होती है क्योंकि यज्ञ तो सर्वहितैषी होता है। प्स्तुत कृति की प्रथम रचना “सरस्वती वंदना “है जिसमें कवयित्री ने कहा कि अंतर्मन से अर्पित करती हूँ शब्दों के साज। बुद्धि विद्या ज्ञान की देवी माँ शारदे की वंदना से श्री गणेश करना हर सरस्वती के उपासक को पसंद आता है ।
“मेरा साहित्य” रचना में लेखिका ने सारंग और सरिता के जैसे मेरे प्राणों का पर्याय हैं ये कहकर मानवीय जीवन का सच कहने का प्रयास किया है। आज मन्दिर बनाने की होड़ लगी है। लोग मन्दिर तो बना लेते हैं लेकिन मन्दिर का मान मन्दिर की प्रतिष्ठा का महत्व भूल जाते हैं। “अज्ञानता” रचना में कवयित्री कहती है। आज अखबारों के मुख पृष्ठ अपराधों की खबरों से भरे पड़े हैं। विद्यावान ही राजा बने विद्वान कहाये ये जगत का नियम है। पांडेय लिखती है “जीवन भर के अपराधों से भरे है पन्नो से अखबार। विद्या रिपु विद्वान कहाते यही नियम का है संसार।” जब दुख आता है तो लोग मन्दिरों में जाकर शीश झुकाते हैं।
प्रकृति सरल है अटल है “उडुगन “कविता में बताया है। शब्द चयन देखते ही बनता है। राष्ट्रभाव से ओतप्रोत रचना ‘लक्ष्य हमारा’ में पांडेय ने आज़ाद, भगत सिंह का स्मरण करते हुए उनकी तरह शत्रु विजेता बनने की सीख दी है। आज देश के गांव गांव में कौमी एकता व भाईचारे की भावना बढ़ाने की आवश्यकता है । कवयित्री सचेत करती है कि हमे जातिवाद को छोड़कर इतना ध्यान रखना चाहिए कि हम सब हिन्दू है। प्रेम एकता व संगठन लक्ष्य हमारा है ये लक्ष्य सभी को आज रखने की आवश्यकता है।
“वर्तमान सर्वहारा” रचना में श्रमिकों की पीड़ा को लिखने का प्रयास किया है। ये धरती ही जिनका बिस्तर है ऐसे श्रमिकों के रहन सहन व कड़ी मेहनत का सजीव वर्णन किया है। तन ढकने के लिए जिनके पास वस्त्र नहीं होते है। जिनकी काया चीथड़ों में लिपटी रहती है। बून्द बून्द जिनका पसीना टपकता है। जब लू चलती है तो बदन जलता है वहीं सर्दी में ठिठुरते हैं।
“ऐ मुसाफिर” रचना में लिखा कि मेरे सुख का सार तू कष्ट का आधार तू। यथार्थ में व्यक्ति के जीवन मे मुसाफिर की तरह सूख व दुख आते ही रहते हैं। पांडेय ने धोबिन कविता में लिखा कि ‘धोबिन कपड़े धोते समय यह नहीं सोचती कि ये कपड़े किस जाति वाले के है। ये कपड़े रोगी के है या निरोगी के। वह तो सबको एक मानकर दाग छुड़ाती है। न जात पात को मानती है वह कर्मनिष्ठ होकर अपना धर्म निभाती है।’ हमे भी इससे प्रेरणा लेना चाहिए।
“दीवाली” कविता में कवयित्री ने कहा “आओ प्रियतम दीप बनो तुम मैं बन जाऊँ दीवाली। प्रीति द्रव्य में दीप जलाएं जग में फैली उजियाली। इस कविता में मानव मानव में प्रेम की भावना रखने का संदेश दिया है।
“तमसो मा ज्योतिर्गमय” कविता में मन से मोह रूपी तमस मिटाने की बात कही है। कर्म व पुरुषार्थ से जीवन मे आगे बढ़ना चाहिए। आज ईर्ष्या की भावना मिटाने की आवश्यकता है। सत्य मार्ग पर चलना चाहिए। इस जगत में जन्मना व मरना आना और जाना यही चक्र है जो चलता रहता है। श्रेष्ठ कर्म कर अमरत्व को पाना हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
“संस्कार” कविता में पांडेय ने मानवीय रिश्तों में बढ़ रहीं खींचतान को देखते हुए आम जनता को सावचेत किया है कि आज भावी पीढ़ी को संस्कार देने की आवश्यकता है बहन बेटी माता पिता गुरु ईश्वर मित्र छोटो बड़ो का सम्मान सभी करे।
सत्य मार्ग पर चलना, गरीबों दुखियारों की सेवा करना निर्बल की मदद करना किसी से छल न करना आदि कार्य करने हेतु प्रेरित किया है। दिव्यांग असहाय भूखे पर दया जीवों पर दया करने की बात प्रमुखता से कही है।
“मंच का कवि” कविता में सच्चे साहित्य साधकों की विशेषता बताई है। कबीर की तरह मंच का कवि होना चाहिए। कबीर यानि जिसमें लालच न हों, जो कर्तव्य पथ पर निरन्तर चलता हो। जो जन मानस की पीड़ा देखता हो।
जिसका स्वर पांचजन्य जैसा हो। पाञ्चजन्य सत्य की घोषणा का प्रतीक है। जिसके स्वर मात्र से जगत आनंदित हो जाता है । साहित्य संस्कृति के क्षेत्र में नवोदित नित ही आगे बढ़े।
“शब्दों की ढोलक थाप मुग्ध भावों का वाद्य मंजीरा हो। मेरे मंच का कवि कबीरा हो।”
“मद्य” कविता में पांडेय ने नशे की प्रवृत्ति से घिरे लोगो के जीवन मे घोर अंधेरा हो जाता है। जो बेसुध होकर रास्ते मे पड़े मिलते हैं। जिसको सारा समाज दुत्कारता है लज्जित करता है। शराब सारे तन को खोखला कर देता है ए साखी तुझे बताऊँ में तुझसे तांण्डव करवाऊं मैं। साखी कहते है शराब पिलाने वाली को। नशा नाश की जड़ है। माटी के घर, परदा प्रथा आदि भी महत्वपूर्ण काव्य रचनाएँ हैं।
पांडेय की प्रथम काव्य कृति की भाषा सीधी सरल व बोधगम्य है। अनेक रूपकों के माध्यम से भाव स्पष्ट करने का प्रयास किया है।
पांडेय ने इस कृति में सामाजिक समस्याओं पर आधारित अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से स्वस्थ समाज की परिकल्पना की है। सभी रचनाएँ संग्रहणीय है। शैली वर्णात्मक है।
यह कृति जन जन का कल्याण करने में मील का पत्थर साबित होगी। साहित्य जगत में ये नई पहचान बनाये इसी कामना के कवयित्री अर्चना पांडेय को हार्दिक बधाई।
राजेश कुमार शर्मा “पुरोहित”
समीक्षक, कवि, साहित्यकार
98, पुरोहित कुटी, श्रीराम कॉलोनी
भवानीमंडी, जिला झालावाड़, राजस्थान (326502)