रचनाकार:-कैलाश मंडलोई कदम्ब
पृष्ठ:-19
प्रकाशक:- साहित्य संगम संस्थान
समीक्षक:-राजेश कुमार शर्मा “पुरोहित”
प्रस्तुत पुस्तक साहित्य संगम रचनाकार विशेषांक के अंतर्गत रचनाकार कैलाश मंडलोई “कदम्ब” की रचनाओ का विशेष अंक है । कृति का मुखावरण आकर्षक है । इसमें कुल 15 रचनाये है । कदम्ब जी की रचनाये सामाजिक सरोकारों से जुडी हुई है । आपकी रचनाओ में समाज में व्याप्त विभिन्न समस्याओ पर ध्यान केन्द्रित किया गया है । देश के प्रमुख समाचार पत्रों में,विभिन्न पत्रिकाओ में निरंतर छपती रहती है । साहित्य संगम संस्थान सम्पूर्ण विश्व के साहित्यकारों को एक मंच पर लाने का प्रयास कर रहा है । साहित्य मेध के माध्यम से हिंदी साहित्य को विश्व स्तरीय पहचान मिली है । इलेक्ट्रॉनिक हिंदी साहित्य को नव आयाम प्रदान करेगी । इस विशेषांक के प्रबंध सम्पादक कवि राज तरुण सक्षम संपादक छाया सक्सेना प्रभु सहसंपादक जितेन्द्र चौहान है ।
माँ सरस्वती वंदना में कदम्ब लिखते है:- “चरण पड़ा है दास तुम्हारा,लाखों दोष भरे है मुझ में दोष रहित मुझ को कर दे माँ । कवि कदम्ब कहना चाहते है की व्यक्ति के मन में कई दोष यानि विकार होते है । ईश्वर की शरण में जाते समय व्यक्ति को मन निर्मल हो यह प्रार्थना करना चाहिए । “श्रम शिखर से लथपथ चेहरे” में भूमि पुत्रों द्वारा खेतों में रात दिन काम श्रम करने का सजीव चित्रण किया है । किसानो एवं मजदूरों की पीड़ा समझने की आवश्यकता है । इनके घर आंगन भी सजाने की जरुरत है ।सर्दी गर्मी बरसात का सामना करते हुए ये खेतो में मेहनत करते है | “माँ की आशा टूट गई” में विधवा माँ की व्यथा को लिखा है । अपने बेटे को पढ़ाने के लिए भूकी प्यासी रह कर माँ ने मजदूरी के पैसो से डिग्रियां दिलवाई लेकिन रिश्वत भ्रष्टाचार के कारण बेटा बेरोजगार रह जाता है । देश में व्याप्त सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी को काव्य रचना में लिखा है । राष्ट्र भक्ति की रचना “हम है वीरो की संतान” में कवि कदम्ब ने राम कृष्ण गौतम जैसे वीरो की संतान को देश रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहने की सीख दी है | “गीत आयो रे“ में फाल्गुन व् बसंत ऋतु का विशद वर्णन किया गया है | पीले पीले सरसों के फूलो का वर्णन फाल्गुन में होली के रंग से भीगी रचना बहुत अच्छी लगी है । “नया साल अब आया है” काव्य रचना में नई नई उम्मीदों,नया उल्लास नए साल की खुशियां,बीते दुःख के दिन भुला कर विश्वास के साथ पुनः काम में जुटने का सन्देश देती है । “मुक्त होना चाहता हूँ” रचना में समाज में व्याप्त आडम्बर,कुरीतियों,कर्मकांड,अंधविश्वास का जिक्र करते हुए कवि ने इनसे मुक्त होने की बात कही है | देश में व्याप्त आस्था के नाम पर झूंठ बोल कर गोरख धंधा चलाने वालों की पोल खोलती रचना सामयिक लगी । कदम्ब कहते है की लोग धर्म का लेबल तो लगा लेते है लेकिन उनकी कथनी करनी में अंतर रहता है । ”राई सी बात का बन गया पहाड़” रचना में व्यक्तियों द्वारा छोटे छोटे प्रश्नों को लेकर राई सी बात का पहाड़ बना दिया जाता है । जवाब में व्यक्ति न तो सच तक पहुँच सकता है और न ही असत्य को पछाड़ सकता है । “प्यासी कोयल कुकी” कविता में पर्यावरण प्रदुषण,घटता जल स्तर,कटते जंगल,अन्धाधुंध पेड़ों की कटाई से जल,जंगल,जमीन को बचाने की आवश्यकता बताई है | आज का मनुष्य कितना स्वार्थी हो गया है पेड़ों को बेरहमी से काटा जा रहा है | इसलिए “नाराज है बेटी” कविता में कन्या भ्रूण हत्या के लिए स्वयं नारी ही जिम्मेदार है । समाज की झूटी परंपरा के कारण बेटियों को मार दिया जाता है । माता पिता बेटों को पढ़ा लिखा कर आगे बढ़ाते है वही बेटे दोनों को घर से बहार निकल देते है । बेटे बेटियों में अंतर व समाज में इस बुराई से पनपे नुकसान को बताया है । “माँ का कर्ज चूका न पाऊं” कविता में कदम्ब ने माँ की महिमा का गान किया वास्तव में सबसे बड़ा व सच्चा रिश्ता माँ का होता है । माँ का कर्ज कोई नहीं चुका सकता है ।मेरी कविता की पंक्तियाँ याद आती है “माँ के क़दमों में जन्नत होती है।”
कृति की भाषा सरल व बोधगम्य लगी। प्रत्येक रचना संदेशपरक व सामयिक लगी। कदम्ब जी ने समाज मे चल रही उठापटक को कविताओं के माध्यम से उजागर किया है।
आदरणीय कदम्ब जी को बहुत बहूत बधाई।
98,पुरोहित कुटी,श्रीराम कॉलोनी भवानीमंडी जिला झालावाड राजस्थान पिन 326502
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