राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 पर गम्भीर मंथन ज़रूरी

शाश्वत तिवारी :

लखनऊ : राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें बालिकाओं एवं दिव्यांगों की शिक्षा के मद्देनजर सकारात्मक निर्णय लिये गये हैं, वहीं सामाजिक समस्याओं के निराकरण एवं शिक्षा के व्यापारीकरण को रोकने के भी प्रयास किये गये हैं। इसके साथ ही देश की प्राचीनतम भाषा संस्कृत की महत्ता को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है।

नई शिक्षा नीति में वैश्विक स्तर पर शैक्षणिक गुणवत्ता एवं शोध का भी विशेष ध्यान रखा गया है।

उच्चतर शिक्षा के रूपांतरण में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की भूमिका पर आज राज्यपालों के सम्मेलन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं केन्द्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ द्वारा प्रदेश के राज्यपालों, उप राज्यपालों एवं विश्वविद्यालय के कुलपतियों के साथ की गयी वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि दोनों राज्यों में नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए गम्भीरता से मंथन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि दोनों प्रदेशों में गठित टास्क फोर्स निकट भविष्य में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन हेतु अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी, जिस पर सम्यक् विचार-विमर्श के उपरान्त इसे लागू किए जाने की प्रभावी कार्यवाही की जायेगी।

राज्यपाल ने कहा कि किसी भी समाज और राष्ट्र का विकास और भविष्य उसकी उत्कृष्ट शिक्षा व्यवस्था, शिक्षा प्रणाली एवं गुणवत्ता पर निर्भर करता है। देश के उज्ज्वल भविष्य के संजोये गये सपनों को साकार करने के उद्देश्य से गहन विचार-विमर्श के बाद नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के रूप में शिक्षा के नवीन रूप का आविर्भाव हुआ है।

नयी शिक्षा नीति में बुनियादी शिक्षा से लेकर स्कूल-कालेजों तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया है।

इस अवसर पर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री डा0 दिनेश शर्मा, अपर मुख्य सचिव राज्यपाल महेश कुमार गुप्ता, अपर मुख्य सचिव उच्च शिक्षा मोनिका एस0गर्ग तथा छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर की कुलपति प्रो0 नीलिमा गुप्ता भी आनलाइन जुड़ी हुईं थी।

शाश्वत तिवारी