जनसामान्य की संघर्ष और पीड़ा के संवाहक सेवाराम यात्री

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, (भाषाविद्-समीक्षक), इलाहाबाद-


शिक्षाविद्-समीक्षक डॉ० अरविन्द उपाध्याय की शीघ्र प्रकाश्य शोधात्मक कृति ‘ से० रा० यात्री की कहानियों का मध्यवर्गीय स्वरूप’ की ‘फ़्लैप’ सामग्री पर एक दृष्टि :-


से० रा० यात्री (सेवाराम यात्री) के कथानक में मनुष्य अपने ही सरीखे अपनी ही आकृति और स्वभाव के, अपने ही रूप-रंग के तथा अपने ही आत्मा से समन्वित मनुष्यों को अपनी भाँति दु:ख-सुख पाते, निशि-दिवा व्यतीत करते, आते-जाते देख, अपनी भावना को अधिक समय तक निष्क्रिय नहीं कर पाता है और उसके आत्मा की पुकार, हृदय की भावना तथा वाणी का बाना धारण कर कहानी बन जाती है। यही कारण है कि से० रा० यात्री अपनी कहानियों-द्वारा मनुष्य-मनुष्य में साम्य स्थापित करते हुए, सुदूर निकल आते हैं। उनकी कहानियों का वैशिष्ट्य यह है कि वे मनुष्य-समाज की अन्तिम कहानी के अन्तिम पृष्ठ तक अपना क्रम बनाये रखने की अन्तिम क्षमता रखती हैं।
कुशल समीक्षक डॉ० अरविन्द उपाध्याय ने अपनी शोधात्मक दृष्टि का परिचय देते हुए, यह सुस्पष्ट कर दिया है कि से०रा० यात्री की कहानियाँ मध्यमवर्गीय समाज का प्रतिनिधित्व करते हुए, बिना किसी चामत्कारिक शैली के सहजता के साथ आरम्भ होती हैं और अपनी उसी मति-गति-रति के साथ समाप्त भी हो जाती हैं।
कहानियाँ सहज तो हैं परन्तु प्रभाव-स्तर पर उनकी किसी के साथ प्रतिद्वन्द्विता नहीं दिखतीं। ‘दूसरे चेहरे’ से लेकर ‘अकर्मक क्रिया’, ‘आदमी कहाँ है’, ‘स्पर्श’, ‘त्रिकोण’, ‘आत्महन्ता की डायरी’ आदिक कहानियों की यही नियति है। उनकी कहानियों में समस्त पात्रों के आचरण की सभ्यता एक सामान्य मनुष्य के रूप में निरूपित दिख रही हैं। देश-काल-परिस्थिति-पात्र का निर्धारण करने में से० रा० यात्री निष्णात हैं। पाठक-वर्ग उन कहानियों को अपने जीवन का अभिन्न भाग स्वीकार करता है। एक कुशल कहानीकार के कथानक का यह प्रभाव है, क्योंकि कथानक कहानी का प्राण होता है और उसका सम्बन्ध गम्भीरतर विवेचना से होता है। उनकी कहानियों में सभी घटनाएँ शृंखलित होकर मुख्य घटना का पथ प्रशस्त करती हैं। से० रा० यात्री चरित्र-चित्रण करने में दक्ष हैं। यही कारण है कि यथार्थ के धरातल पर अडिग रहते हुए, उनके आदर्श पात्र अपनी समस्याओं का निराकरण करने,बाधा का निर्विघ्न कर देने अथवा आपत्ति पर विजय प्राप्त कर लेने में स्वयं की भूमिका को स्थापित करने में समर्थ हैं।
निस्सन्देह, एक सहज मानवीय संवेदना, किन्तु धारदार प्रभाव को समीक्षा-जगत् में लाकर मेरे प्रियवर शिक्षाविद्-समीक्षक डॉ० अरविन्द उपाध्याय ने श्लाघनीय सारस्वत कर्म किया है।


यायावर भाषक-संख्या : ९९१९०२३८७०, ९१२५४३४१५६