एक रात की बारिश ने खोला फाइलों का राज़, दलित-बस्ती के कई घर जमींदोज

साल मे करोड़ों का बजट,जलनिकासी की समुचित व्यवस्था नहीं, फाइलों मे सिमटा नगर पंचायत अझुवा का विकास कार्य

सालों से मलाई मार रहे जिम्मेदार और लोग कर रहे बेखौफ भ्रष्टाचार, उठती रहीं आवाज़े लेकिन सोती रही सरकारें

कौशांबी जिले की नगर पंचायत अझुवा मे परसों रात हुई लगातार बारिश से जहां नगर पंचायत मे जगह जगह भीषण जलभराव देखने को मिल रहा है वहीं भीषण जलभराव के कारण कई गरीबों के घर जमींदोज हो जाने से उनके सिर पर छत भी नही रही। नगरवासियों का जीवन इस भीषण जलभराव से अस्त-व्यस्त हो गया है। नगर मे जल निकासी के समुचित इंतजा़म न होने और तालाबों पर जिम्मेदारों द्वारा वोट और धन के लालच मे लगातार कब्जा कराए जाने के कारण आज ऐसी दशा देखने को मिल रही है। ऐसा नही कि सरकार नगर के विकास के लिए धन देने मे कोताही बरतती है लेकिन धन देकर उसकी सुधि लेना सरकार अपनी जिम्मेदारी नही समझती; तभी तो जिम्मेदारों के लिए वही धन लूट खसोट का जरिया बन जाता है और आम जनता तकलीफें और परेशानियां सहने को मजबूर हो जाती है। हद तो तब हो जाती है जब बार बार चेताने के बावजूद सरकार की आंखे नहीं खुलती जो भ्रष्टाचारियों के मनोबल को बढ़ाने मे भरपूर मदद करती है।

परसों रात नगर पंचायत अझुवा मे भीषण बारिश से सब्जी मंडी, शांखा रोड, शायरी माता सहित लगभग हर वार्डों मे भीषण जलभराव हो जाने से जहाँ लोग आवागमन मे परेशानी झेल रहे, वहीं बहुत से लोगों के घरों मे बारिश और चोक नाली-नालों की गंदगी भर गई। सबसे अधिक दंश वार्ड नंबर 2 अंबेडकर नगर के लोग झेलने को मजबूर हुए जहां वार्ड का अधिकांश हिस्सा जलमग्न होते हुआ दिखाई दिया। बारिश के जलभराव से वार्ड 2 के निवासी चार गरीब परिवारों जगतनारायण पुत्र तिलकधारी, राजभूषण पुत्र चंद्रपाल, विक्रम पुत्र रामसजीवन सहित सरिता देवी पत्नी जगत के मकान गिर जाने से उनकी मुश्किलें काफी बढ़ गईं। जिससे क्षुब्ध होकर मुहल्ले के लोगों और महिलाओं ने नामित सभासदगण सौरभ केसरवानी व विजय कुमार आदि के साथ नगर पंचायत कार्यालय मे अपनी व्यथा लेकर पहुंचे लेकिन कार्यालय समय होने के बावजूद अधिशासी अधिकारी, चेयरमैन एवं प्रधान लिपिक के न मिलने पर कार्यालय का घेराव करते हुए नाराजगी जताई।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि करोड़ों का बजट सरकार से प्रतिवर्ष मिलने के बावजूद नगर के लोगों की समस्याओं को शीर्ष प्राथमिकता पर रखते हुए विकास के कार्यों को सही ढ़ंग से अमलीजामा पहनाने मे जिम्मेदार क्यो विफल हैं? क्या इसलिए कि अपने मनमाफिक बंद कमरे मे कार्ययोजनाएं बनाकर अधिक से अधिक कमीशन खाया जाए चाहे नगरवासी अपनी सार्वजनिक समस्याओं से कराहते रहें?