सभ्य समाज के लिए जातिवाद भयङ्कर ज़ह्र के समान घातक

किसी मानवीय राष्ट्र या समाज की व्यवस्था में जातिवाद एक भयंकर जहर के समान घातक है। गुणानुसार कर्मो का अधिकार ही मानवीय व्यवस्था हो सकती है।

ध्यान रहे जातिवादी व्यवस्था जंगली होती है जिसमें जन्म से शृगाल का बच्चा ही मंत्री और सिंह का बच्चा ही राजा बनता है।

जंगलराज से बचना है तो जातिवादी व्यवस्था छोड़कर गुणानुसार कर्मवादी व्यवस्था अपनाओ।

गुणों के विकास के लिए उचित शिक्षण प्रशिक्षण अपनाओ और विकसित गुणों के अनुसार ही कर्म-पद-संपदा के अधिकारी बनो।
और परिश्रम द्वारा कर्म करके न्यायोचित फल प्राप्त करो और उस न्यायोचित फल से ही अपना जीवनयापन करो।
तभी मानवीय समाज एवं मानवी राष्ट्र के नागरिक सिद्ध हो सकोगे।
अन्यथा पशुवत जंगली व्यवस्था में घुट-घुट कर जियोगे और तिल-तिल कर मरोगे।

अयोग्यतावादी पशुता की जातिवादी जंगली व्यवस्था ओढ़कर मानवता जीवित नहीं रह सकती।
मानवीय न्यायधर्मिता को स्वीकार करो..!
समाज व राष्ट्र में “गुणकर्मविभागशः” के न्यायसिद्धान्त को अंगीकार करो..!
इसी में मानवता की सुरक्षा है।

एकता के लिए समता जरूरी

न्याय के बिना प्रेम नहीं उत्पन्न होता।
समता के बिना एकता नहीं जागती।
समुचित हिताधिकार प्रत्येक नागरिक को सुलभ होते ही परस्पर प्रेम एकता भाईचारा सब उत्पन्न हो जाएगा।

रामराज्य में वर्णित है-
रामप्रताप विषमता खोई। बयरु न करू काहू सन कोई।।
तब आगे लिखा है…..
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।

वास्तव में कोई भी समाज या राष्ट्र तब तक एकजुट नहीं रह सकता, जब तक कि उसे न्यायशील व्यवस्था स्वीकृत नहीं हो जाती, जनता के बीच समाधिकारिता प्रतिष्ठित नहीं हो जाती।

राष्ट्रीय राजकोष द्वारा प्रति व्यक्ति शिक्षा, प्रति परिवार रोजगार, प्रति बस्ती सुविधा, प्रति संवर्ग संरक्षण की सुलभता समान और उचित रूप से सिद्ध होते ही जनता के बीच प्रेम एकता भाईचारा खुद ही जाग जाएगा।
लेकिन जब एक को शिक्षा, रोजगार, सुविधा, संरक्षण मिले दूसरे को नहीं तब ये
विषम अधिकार ही वैर का मूल है, वैर ही बिखराव और यद्ध का मूल है।

बिखरा हुआ हिन्दू समाज बता रहा है कि हिंदुओं के साथ न्याय नहीं हुआ, राज्य द्वारा उन्हें समान अधिकार नहीं दिए गए, तो अन्याय से पीड़ित पक्ष भाग-भाग कर मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन बौद्ध, दयानन्दी, विवेकानन्दी, कबीरपंथी, रविदासपंथी आदि बनने को विवश होते रहे।

उठो, जागो न्यायशील राष्ट्रीय एवं सामाजिक व्यवस्था को स्वीकार करो, अन्यायजनित वैषम्य का त्याग करो।

न्यायप्रिय बनो, भागमभाग रुक जाएगी, पलायन रुक जाएगा, धर्मान्तरण रुक जाएगा, युद्ध रुक जाएगा, आतंक मिट जाएगा, खतरा टल जाएगा।
बोलो-

“न्यायं शरणं गच्छामि।”

तो हिंदुओं को मुहम्मदं, यीशुं या बुद्धं शरणं गच्छामि कहने-करने की जरूरत नहीं रह जायेगी।

संसार के विनाश के मूल कारण…..

व्यक्ति सत्यविहीन…
परिवार प्रेमविहीन…
समाज न्यायविहीन…
समष्टि पुण्यविहीन….

Note–
पढ़ लेते हो, अच्छी बात है लेकिन अमल में लाना और दूसरों को प्रेरित करना और भी ज्यादा अच्छी बात है।


राम गुप्ता, स्वतंत्र पत्रकार, नोएडा