जज़्बातों का समन्दर
राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’– अगर जज़्बातों का ये समन्दर न होताआदमजादे भी यहाँ जानवर बन जाते।कोई भी किसी के लिए परेशान न होताकिसी भी काम के न होते रिश्ते-नाते।न दिल मे किसी के लिए नफ़रत […]
राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’– अगर जज़्बातों का ये समन्दर न होताआदमजादे भी यहाँ जानवर बन जाते।कोई भी किसी के लिए परेशान न होताकिसी भी काम के न होते रिश्ते-नाते।न दिल मे किसी के लिए नफ़रत […]
राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’– चलने वाले ही गिरते हैं, डरने वाला चला नहीं।हार गया जो देख मुसीबत, यहाँ अपाहिज बना वही। मेहनत का फल मीठा होता, राह किन्तु थोड़ी है मुश्किल।दौड़ गया जो कठिन डगर […]
ग़ज़ल : बह्र- 2212 2212 2212 निहाल सिंह, झुञ्झनू, राजस्थान फूलों के जैसे मुस्कराई बेटियाँभंवरों के जैसे गुनगुनाई बेटियाँ। माँ, बेटी, अनुजा और तिय के रूप मेंरिश्ता वो सब से ही निभाई बेटियाँ। बेटे की […]
— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–आओ! हम ग़ौर करें, सदियाँ गुज़र रहीं,ग़ुलाम तहज़ीब को, क्यों ढो रहे हैं हम?दो–तुमने कहा, मैंने सुना, हो जायें चुप अब हम,दीवारों के कान, इधर तक सरक आये हैं।तीन–माना आप […]
डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’- मचलती तमन्नाओं ने आज़माया भी होगा बदलती रुत में ये अक्स शरमाया भी होगा । पलट के मिलेंगे अब भी रूठ जाने के बाद लड़ते रहे पर प्यार कहीं छुपाया भी […]
राघवेन्द्र कुमार “राघव”- तपिश ज़ज़्बातों की मन में, न जाने क्यों बढ़ी जाती ? मैं औरत हूँ तो औरत हूँ, मग़र अबला कही जाती । उजाला घर मे जो करती, उजालों से ही डरती है […]
जगन्नाथ शुक्ल…✍(प्रयागराज) इश्क़ के शह्र से , हो रिहा तक न पाये।साँस से साँस को हम तहा तक न पाये।। इस क़दर अश्क़ से है मोहब्बत हुई;दिल सिसकता रहा और बहा तक न पाये। बह […]
जगन्नाथ शुक्ल…✍(प्रयागराज) हम तो काँटा हैं मोहब्बत का छला क्या करते? गुल ही नादाँ है भँवरे से गिला क्या करते?हम तो हर हाल में शाखों से जुड़े रहते हैं; दिल के तूफ़ाँ में मुला क्या […]
जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद) चौंक उठता हूँ मैं अक़्सर रातों में; ज़िस्म तड़पता मिलता , जज़्बातों में। मन में उठता गुबार परेशां करता; क्या से क्या हो गये बातों -बातों में? दिल तो कचोटता होगा तुम्हारा […]
जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद) निरा झूठ को सच बताया न जाये; काँच से पर्वत को डराया न जाये। ख़ुद के दामन का दाग़ धोने को ; दूसरों के अरमां डुबोया न जाये। हठ को उम्मीद का […]
जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद) आज दर्पण का जीवन लगा दाँव में; सच दिखाया था क्यों झूठ की छाँव में? आँखों में दर्द था, दिल में थी शिकन ; पथ में काँटा चुभा जब तेरे पाँव में। […]
जगन्नाथ शुक्ल…✍ (इलाहाबाद) ख़मोशी में भी उनके कितनी अदब है, यही तो मोहब्बत का पहला सबब है। न बहके क़दम जिनके तन्हाइयों में , तभी दिल को बस उन्हीं की तलब है। पलटते हैं चिलमन […]
डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ सुन्दर डीपी लगा रखी है मोहतरमा अब तो चाय पिला दें सुबह उठते से ही देखो की है तारीफ़ अब तो चाय पिला दें । सोच रखा है छुट्टी का दिन […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय फ़नकार हो तो अपना फ़न दिखाओ न, महज़ बातों में मुझको अब उलझाओ न। देखो! मंज़िल आर्ज़ू अब है कर रही मेरी मुझे बढ़ने दो, अब मुझको फुसलाओ न। कुछ बातें हैं […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- जे-जे रहे दोस्त सब दुसमन होइ गइले, हमारा रहतिया में काँटा बोई गइले! बड़ा हँसी आवेला ‘बाबू’ के चल्हकिया पर, जे सुरूज के गोला के चनरमा समुझि गइले! डूबत उ खूब देखइहें […]
जगन्नाथ शुक्ल, (इलाहाबाद) अब नवाबों के शहर से ज़वाब आना है, शायद! हकीक़त में रुआब आना है। आज क्यूँ धड़कने नब्ज़ टटोल रही हैं? बदलाव आएगा या नया हिज़ाब आना है। लबों की गुज़ारिश शायद! […]