नज़्म : आदमियत का क्या हुआ

October 15, 2024 0

राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’– किसी की तासीर है तबस्सुम,किसी की तबस्सुम को हम तरसते हैं।है बड़ा असरार ये,आख़िर ऐसा क्या है इस तबस्सुम में? देखकर जज़्ब उनका,मन मचलता परस्तिश को उनकी।दिल-ए-इंतिख़ाब हैं वो,इश्क-ए-इब्तिदा हुआ।उफ़्क पर जो […]

चन्द अश्आर

March 12, 2020 0

पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक : बेतरतीब बनती जा रहीं रिश्ते की ज़ंजीरें, किसी बच्चे की चाहत-मानिन्द उलझी हुईं। दो : आँखों ने आँखों से गुफ़्तुगू क्या कर ली महफ़िल में, फ़क़त बात इतनी थी मगर अफ़साना […]

पृथ्वीनाथ पाण्डेय के कुछ शे’र

March 11, 2020 0

पृथ्वीनाथ पाण्डेय– एक : जब भी चाहा, उठाकर फेंक दिया, ऐसी दोस्ती से तेरी दुश्मनी ही भली। दो : तुम भी आ जाओ, मेरे साये में, मुझे दीवार होने की सज़ा मालूम है। तीन : […]

एक अभिव्यक्ति

March 11, 2020 0

पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक– तिल का ताड़ दिखने लगे हक़ीक़त में, सोचना, दिमाग़ का ज़ंग अभी बाक़ी है। दो– कुछ अलग हटकर सोचा करो साहिब! यहाँ जितने हैं ‘रेडीमाल’ बेचा करते हैं। तीन– तिनके-तिनके जोड़कर आशियाँ […]

आजमाने की उन्हें जरूरत होती है जिन्हें यकीं नहीं होता

September 23, 2018 0

राजेश पुरोहित भवानीमंडी, जिला झालावाड़, राजस्थान ढलेगी रात अंधियारी, सुबह फिर सूरज निकलेगा। जो ख्वाबों में दिखा तुमको, वह हकीकत में दिखेगा।। घर घर की कहानी वही पीढ़ी का अंतर देखा। नई पीढ़ी चाहे आज़ादी,पुरानी […]

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय का काव्यलोक

March 2, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय  बेचारा है, दिल तोड़ नहीं पाता, बेचारा है, दिल छोड़ नहीं पाता। नफ़रत क़रीने से सजा के रखता है, बेचारा है, दिल जोड़ नहीं पाता। हर सम्त लोग मुखौटे लगाये हैं बैठे, […]

आओ! किसी रोते को हँसाने की आदत डालें

February 10, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय आओ! अब कड़ुए घूँट पीने की आदत डालें, आओ! अब मरकर भी जीने की आदत डालें। हवा अच्छी हो या बुरी उसे तो बहना ही है, आओ! अब चलते रहने की आदत […]

ग़ज़ल- कोई इंसान, पैदाइश से बागी नहीं होता

January 25, 2018 0

दिवाकर दत्त त्रिपाठी –  वो लेकर गोद में बच्चे को मुहब्बत सिखाती है । वो माँ, जो रोजमर्रा की हमें आदत सिखाती है । ये हिंदुस्तान की तहजीब सिखाती है मुहब्बत , किसी को कब […]

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय के कुछ शेर

January 14, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- एक : उसका दीवानापन, सितमकशीद१ लगता है, सितमगर सितमकशी२ का ऐसा इम्तिहान न ले। दो : मझधार में है सफ़ीना३, साहिल४ है दिखती दूर, किश्तीबान५ साहिबे! रुको नहीं, मंज़िल भले हो दूर। […]

रूठो, जीभर रूठो, मनाऊँगा नहीं

January 12, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय –  रूठो, जीभर रूठो, मनाऊँगा नहीं, रोओ, जीभर रोओ, हँसाऊँगा नहीं। दोनेभर जलेबी लिये दूर क्यों खड़े? पास आ जाओ, फुसलाऊँगा नहीं। ज़ख़्म बूढ़े देखते, तुम जवान हो गये, घबराओ मत, तुमसे […]

ग़ज़ल : उन्हें फ़िक्र क्यों रही ?

January 10, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय – हम रहगुज़र हैं अपने, उन्हें फ़िक्र क्यों रही, मंज़िल बनी है अपनी, उन्हें फ़िक्र क्यों रही ? घर-बार अपना छोड़कर, वीराने में आ गये, रिश्तों की दुहाई की, उन्हें फ़िक्र क्यों […]

बहादुर हो तो सीना तानकर सामने से मिलो

January 7, 2018 0

 डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- एक : ठिठकते पाँवों को ज़मीं से बढ़ाते चलो, ठिठुरती अँगुलियों को हरकत में आने दो। दो : लपकते शोलों को छूकर मैं देखा करता हूँ, तुम मुझे अँगारों की तासीर क्या […]

ज़माने की रीति कितनी निराली है प्यारे

January 7, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- एक : वह सच बोलता भी है, इसका यक़ीं नहीं होता, झूठ तो उसके ख़ून के हर बूँद से टपकता है। दो : वह नाचीज़ अपनी नाज़्नीन पे नाज़ है करता, यह […]

लम्हा-दर-लम्हा जो संग-संग चलता रहा, बूढ़ा समझ हम सबने घर से निकाल दिया

January 1, 2018 0

 डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- एक : लम्हा-दर-लम्हा जो संग-संग चलता रहा, बूढ़ा समझ हम सबने घर से निकाल दिया। दो : कितना निष्ठुर दस्तूर है ज़माने का, काम निकल आने पे घूरे में डाल आते हैं। […]

अर्ज किया है :- दोमुँहे साँपों से बचने की तरकीब आसां नहीं

December 29, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डे-  एक : वह वादाशिकन है, पलकों पे बिठाना मत, गर नज़रों में समायी तो पछतायेगी ज़िन्दगी। दो : ज़िन्दगी भीख में मिला नहीं करती प्यारे! मौत के जबड़े से छुड़ा लेने की […]

अर्ज किया है :- इज़्ज़त ख़रीद कर लाये हैं बाज़ार से कल हम

December 27, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-  १- ”हालात जस-के-तस” मीडिया बताता है, बाहर हो जाने का डर उसे भी सताता है। २- इज़्ज़त ख़रीद कर लाये हैं बाज़ार से कल हम, काना-फूँसी शुरू है, सेंध लगाये पहले कौन। […]

जफ़ापरस्त की उम्र होती है बहुत

December 24, 2017 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- एक : खोकर जीने का मज़ा कुछ और ही है यारो! कामयाबी की मनाज़िल (१) यों ही हासिल नहीं होतीं। दो : आँखों में आँसू, लब पे हैं दुवाएँ, इन्तिज़ार उनका, आयें […]

बातें- जज्बे

December 20, 2017 0

डाॅ. पृथ्वीनाथ पाण्डेय- 0 उनके दर पे पहुँच कर भी, पहुँच न सका, नज़रें यों झुकीं, हम सलाम कह न पाये। 0 रंजो-ग़म भूलकर, हम ज्यों गले मिले, ख़ंजर जिगर के पार, मिलते रहे गले। […]