बड़े बुजुर्गों से मिलता है आशीर्वाद
बड़े बुजुर्गों से मिलता आशीर्वादबेटी तुम हो! माँ सीता! जैसी;त्याग समर्पण की देवी, साक्षात् लक्ष्मी ,जिस घर में जाओगी बिटिया!वह घर ख़ुशियों से भर जाएगा ,मांँ सीता के जैसे ही ; तुममें प्रेम है,धैर्यता ,गंभीरता […]
बड़े बुजुर्गों से मिलता आशीर्वादबेटी तुम हो! माँ सीता! जैसी;त्याग समर्पण की देवी, साक्षात् लक्ष्मी ,जिस घर में जाओगी बिटिया!वह घर ख़ुशियों से भर जाएगा ,मांँ सीता के जैसे ही ; तुममें प्रेम है,धैर्यता ,गंभीरता […]
मेरे प्यारे बच्चों सुनो!बड़े भाग्य से मानुष तन पाया ,आओ , इस जीवन को सार्थक कर लें ,किस उद्देश्य यह जीवन मिला ,आओ , हम इसको जाने ,एक – एक पल बड़ा है मूल्यवान ,रात्रि […]
आकांक्षा मिश्रा, उत्तर प्रदेश अनन्त प्रतीक्षा बादतुम्हें मैंने पायाएक बार न कोई सवालन कोई जानने की जिज्ञासा मेरे हृदय में कुछ पीड़ाउमड़ रही थीतुमसे शिकायत करकेजी हल्का करना चाह रही थीऐसा न हुआमन की चिंताओं […]
हे! जलजीवनतुम मस्त रहती हो अपनी दुनिया मेंना तुममें भेदभाव की भावनातुम प्रेममयी होतालाब, नदियांँ, सागर की तुम रानी होअहं नहीं तुमको अपनी सुंदरता पर।रंग-विरंगी दिखती होतुम तो मेरे मन को भाती हो,जल से करती […]
हमारी सूझबूझ हमारे जीवन को सफल बनाती है,सफलता मिलें जिंदगी में,कभी-कभी मुझे शतरंज की चाल चलनी पड़ती है। मैं सोच समझकर निर्णय लेती हूँ,नित कदम आगे बढ़ाती हूँ,कठिन परिस्थितियों में भी! समस्या का समाधान करती […]
अपने थे या बेगानेकोई पता नहीं।गम देगे या खुशियांकोई पता नहीं।मुस्कुरा कर गए यारुलाकर गएकोई पता नहीं।हंसते हुए रुला गएया रुलाते हुए हंसा गएकोई पता नहीं।बेनाम का नाम कर गएया फिर बदनाम कर गएकोई पता […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय उखाड़ फेंको उस बूढ़े बरगद को, जो समावेशी चरित्र भूलकर आत्म-केन्द्रित हो चुका है। उसका समन्वयवादी चरित्र एकपक्षीय बनकर रह गया है। वह अन्य बीजों के अंकुरण होने, पौधों के […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेशर्म निगाहों का भ्रम तोड़िए हुजूर!झूठी आदतों को आप छोड़िए हुजूर!मर रहा आँखों का पानी आपका हर बार,बिखरा है देश अपना, उसे जोड़िए हुजूर!सब्ज़बाग़ देखकर आँखें गयी हैं थक,नज़रें ज़ुम्लेबाज़ी […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• खेती-किसानी है जल रही, शासन की नीति है खल रही। कौन-सा गुनाह था किसानों का? उनकी ख़ुशी हाथ है मल रही। धोखा बना आश्वासन का सूरज, चहुँ दिशि बदली […]
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय तुम्हारी पूर्णतारास नहीं आती मुझे;क्योंकि तुम द्रुतगामी प्रकृति से युक्त हो।हाँ, मै अपूर्ण हूँ।तुम मुग्ध हो, अपनी पूर्णता परऔर मुझे गर्व है, अपनी अपूर्णता पर;क्योंकि आज मुझेएहसास हो रहा है :–रिक्तता […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय रूप ने कला से कहा :–तेरा दृष्टि-अनुलेपन है अनुपम,तू रूप को सुरूप करती है।विरूप को कुरूप रचती हैतू सुरूप को विद्रूप बनाती है।तू रंग-रोगन करती हैऔर उकेरी गयी व्यथा-कथा को,एक […]
शून्य मैं अपने जीवन सेजब कभी हताश होती हूंँ , देख शून्य की ओरअपनी व्यथा सुनाती हूंँ। मौन होकर वह मुझे सुनता ,मेरे मन का बोझ हल्का होता , चेतना प्रकाश से कहती –उसकी चुप्पी […]
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय जुम्हूरियत१^ को नंगा दिखाओगे कब तक? बेशर्मी की सीरत२ दिखाओगे कब तक? जाहिल-मवाली दिखे हैं हर जानिब३, लुच्चों को सिर पे बिठाओगे कब तक? तवाइफ़^ से बढ़कर सियासत है दिखती, माख़ौल […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय मेरी अनहद१ बाँसुरी प्रलय की धुन सुनाती है। कातर२ आँखें, जन-जीवन से पृथक् दृष्टि-अनुलेपन३ करती हैं, काल के कपोलों पर। मुझ पर दृष्टि चुभोती, विहँसती, अल्हड़ गौरैया पंख झाड़ फुर्र […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय आस्थाविश्वासआश्वासनश्रद्धाभक्तिसमर्पणसाहित्य के विषय हैंऔर सिद्धान्त के भी।व्यवहार के जगत् मेइनका प्रयोजनछल-प्रपंच से है।स्वजनदुर्जन बन जाते हैं।एक निर्वात् दृष्टिबोधप्रकट होता है,और चरित्र परदृष्टि-अनुलेपन कराकरअन्तर्हित हो जाता है।अकस्मात् चिर-संचितक्षणिक विश्वास भीकापुरुष बन […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय शरीर मुझसे दूर जा रहा है,वा शरीर से दूर जा रहा हूँ।अशरीरी रहकर जीवन की कल्पनासमृद्धि के अन्तिम छोर पर अडिग खड़ी है।चर्मचक्षु से परे अपरा-पराविद्याका स्मृति-वातायनमन-गाम्भीर्य का दोहन नहीं […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय मेरे चेहरे पे जो चेहरा है,हक़ीक़त बयाँ नहीं करता;वह चिटकता भी नहीं।उसका पारदर्शी चरित्रअक्खड़ बन चुका है।भेद की एक अबेध्य नगरी,उसके आस-पास बसा दी गयी है।उसमे अपने हैं; पर रास […]
संघर्ष में आनंद छुपा है ,उसे ढूंँढ लेना तुम! फूलों की तरह खिलना तुम!कांँटों के बीच में रहकर भी!ज़िंदगी में आगे बढ़ना,और जीवन को समझना,फूलों की तरह मुस्कुराना सीख लेना तुम! आता है उतार – […]
अभी नहीं मैदान तय, ठोंक रहे हैं ताल।मुझको भी भविष्य में शायद, मिल जाये कुछ माल ।। चढ़ा बुखार चुनाव का, कर्मठ हुए अधीर ।नौसिखिये भी हो चले, सैद्धांतिक वीर ।। सेवा करूँ समाज की, […]
कोई भी मौसम आए और जाए ,मेरा दिल तेरे लिए ही धड़केगा बदल जाए ज़माना ,तेरा दीवाना न बदलेगा। मैंने तुझसे , जो वादा किया ,तेरा आशिक़ निभाएगा। मुझ पर भरोसा कर लो ! तुम […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–इधर लाश-अम्बार है, उधर चुनावी बोल।लज्जा हँस-हँस घूमकर, पीट रही है ढोल।।दो–लोग बने लतख़ोर हैं, आँख हुई हैं बन्द।नेता हैं सब जानते, रचते तब फरफन्द।।तीन–अन्धेरा भीतर भरा, बाहर दीप-प्रकाश।भूख देह […]
काश! तू मेरे पास होताजिंदगी में कोईगम न होता।अपना हाथमेरे सिर पर रखता।काश! मेरा भाईमेरे पास होता।यूं तो बहुत हैतेरी जगह परपर जहां तेरी जगह होती हैवहां कोई ओरनहीं होता।काश मेरा भाईमेरी जिंदगी में होताजिंदगी […]
हर जगह हरियाली छायी है,पेड़-पौधों ने हरियाली बिछायी है ।हर जगह रंगीन नजारा है,यह रंग-विरंगे फूलों ने बनाया है ।भोले-भाले लोग वहां,हिमाचल जैसा देश हो जहांलड़ाई-झगड़ों से दूर है रहते,एकदूसरे में प्यार की भावना को […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय हुस्न की रंगत,चाह की संगत;अब ‘भाती’ नहीं।तनहा-तनहा तन,रीता-रीता मन;अब ‘साथी’ नहीं।उदास है घोंसला,ज़ह्र-ज़ह्र पर्यावरण;चिड़िया ‘आती’ नहीं।प्रकृति नहीं स्वच्छ,वायुमण्डल विषाक्त;कलुषता ‘जाती’ नहीं। (सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ४ नवम्बर, […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय काल के कपोलों पर,अप्रत्याशित शैली मेजैसे ही मैने अधरों से हस्ताक्षर किये,वह संन्यस्त-सा भाव लिये बोला,“तुमने भेद जिया का क्यों खोला?”मेरा मन भोला, कुछ नहीं बोला। (सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय नूरानी१ चेहरा सोता रहा, चश्मोचिराग़२ रोता रहा। मसाइल३ से वाक़िफ़ रहा ही कहाँ, ख़ुद-से-खुद-को ही ढोता रहा। अन्दाज़े बयाँ चश्मे नम४ का यहाँ, ज़ेह्न५ मे जाने क्या बोता रहा। कश्ती […]
कुछ ख्वाब कुछ यादेंमुझ में रहने दोन मिल सको तो न मिलोखुद को मुझ में ही रहने दो।बीता हुआ वक्त औरबीती हुई बातेंकभी लौट कर नहीं आती,मगर फिर भीउन यादों कोमुझ में सिमटे रहने दो।जो […]
बड़ी धूमधाम से आजादी का अमृत महोत्सव मनायेंगे ,गली-मोहल्लों में भारत के शूरवीरों की गाथा गायेंगे। सत्य, अहिंसा, प्रेम के पुजारी बापू का दर्शन हम अपनाएंगे,बैरी ना माने तो आजाद बनकर दिखलाएंगे। मातृभूमि की रक्षा […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय सूरज को शर्मिन्दा होने दे, चाहत को परिन्दा होने दे। हिम्मत को सजा ले होठों पे, ज़ालिम को दरिन्दा होने दे। ज़ुल्फ़ों को झटक दे चेहरे से, औ’ ख़ुद को […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय दीपवर्तिका की ज्वलनशीलतालोकमानस की सहनशीलता।पृथक्-पृथक् पथ पर परिलक्षितदो समानान्तर दूरी पर गतिमान।संवाद-हेतु अवकाश पर प्रश्नचिह्नकिस-हेतु लोक का दीप-प्रज्वलन?मात्र आमोद-प्रमोद का विज्ञापन?दीप-प्रज्वलन निहितार्थ से नितान्त परे,प्रकृतिसंहारक मनोवृत्ति का प्रदर्शन?प्रतिस्पर्द्धा का नग्न […]
जागो एक बारअपनी अंतरात्मा कीआवाज़ के लिए।जागो एक बारअपने हृदय में पनपत्तिअभिलाषाओं के लिए।जागो एक बारअपने अंतर्मन में छिपीसत्यनिष्ठा के लिए।जागो एक बारअपनी स्वतंत्रता कीमर्यादा कोकायम रखने के लिए।जागो एक बारस्वयं के अंतर्मन में छिपीअंतरात्मा […]
तेज रफ़्तार से मैं चलती रही,कभी पीछे मुड़ के देखा नहीं ,करना है जीवन में बहुत कार्य,घर – परिवार से लेकर बाहर तकमैं तेज रफ्तार में दौड़ती रही,तनिक भी नहीं किया आराम,समय एक दिन वह […]
राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’– मृत्तिका निर्मित दीये से है अमावस काँपती। जलते हुए नन्हें दीये से डरकर निशा है भागती। दीपक-देह की अभिव्यंजना से रात जगमग हो रही। दीपकों के धर्म से रात भी अब […]
तुमसे मिलने आई थी ,कहनी थी तुमसे एक बात ,तुमको देख कर भूल गई ,तुम्हें देखती रह गई सारी रात ,बात अधूरी रह गई। दिल का क्या सुनाऊँ तुम्हें हालतेरे सिवाय ना आए कोई ख्यालमन […]
मैने जिसे चाहा , वह चाहता किसी और को ,जिसके लिए मैं तड़पी, वह तड़पा किसी और के लिए ,मैंने जिसे बेपनाह प्यार किया , वह प्यार किया किसी और को ,मैं जिसके लिए रोई […]
नफ़रत सोच समझ कर करनामोहब्बत होने केआसार होते हैं। बात सोच समझ कर करनाइश्क से सबनासार होते हैं। दिल की बात सोच समझ कर करनाअपनों में भी कईगद्दार होते हैं। हमराही को हमसफर सोच समझकर […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय हास कोइतिहास मत बनने दो;उपहास को,परिहास मत बनने दो।आगत-अनागतथाली मे तेल-बाती लिये,प्रतीक्षा सह रहे हैं;बाट जोह रहे हैं; उस पल का,जब तुम अपने होनेअथवा न होने की प्रतीति का,अनुभव कराओगे।मेरे […]
जल है सबके लिए अनमोल,इसका नहीं है कोई मोल।जल है जीवन का सार,मत करो इसे बर्बाद।पानी से है जीवन की आस,इसे बचाने का करो प्रयास।जल की एक एक बूंद है कीमतीइसमें ही सबकी जान है […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ग़म-ख़ुशी का फ़र्क़, महसूस होता है;यहाँ न कोई अपना, महसूस होता है।सौग़ात में मिलता रहा, दर्द का पिटारा;रिश्तों में दरार, अब महसूस होता है।जवानी ने भी छीन लीं, किलकारियाँ;बचपन बुढ़ापे-सा, […]
तुम भूल गए हो या याद हूंँ मैंअपनी धुन में खोए हुए रहते हो ,मन में आस लिए , तेरी राह में ,पलकें बिछाए बैठी रहती हूँ । कहीं खो गई हूंँ या याद हूंँ […]
जो चेहरे परनकाब लिए फिरते हैंअक्सर वही मोहब्बत केआसार लिए फिरते हैं।बोलना है तोकुछ बोलिए जनाबक्यों ऐसे चेहरे परमुस्कान लिए फिरते हैं।लबों से लबजोड़ ही लिए हैं तोबोलिए कुछ जनाबक्यों आंखों केइशारे किए फिरते हैं।लिखना […]
बुराई के अन्त का पर्व है विजयादशमी। मन के पापों का शमन है विजयादशमी। विजय-हेतु कौशल तथा मन की शक्ति सर्वोपरि है। स्वयं की जय से विजय का मार्ग है विजयादशमी। राम हैं पावन प्रकाश […]
आज दशहरे की घड़ी आयी।झूठ पर सच की जीत है आयी।रामचंद्र ने रावण मारा।तोड़ दिया अभिमानी काअभिमान सारा।एक बुराई रोज हटाओ।और दशहरा रोज मनाओ।विजय सत्य की हुईं हमेशाहारती सदा बुराई आयी।जिसने भी अभिमान किया हैउसने […]
विजय सत्य की हुई हमेशाहारी सदा बुराई है।आया दशहरे का उत्सवकरनी सबकी भलाई है।बुराई को जलाना हैदशहरे का उत्सव मनाना है।अब नहीं और हमें बुराईको बढ़ाना है।दशहरे के दिन हमें अपनेअंदर के रावण को जलाना […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय पत्नी उवाच :–सम्बल अपनी बाँह का, कभी न देना छोड़।कितना भी संकट रहे, दु:ख से करना होड़।।हर जन्म हम संग चलें, ऐसी अपनी चाह।खटपट भी होता रहे, अलग न होगी […]
दशहरा आयादशहरा आयाबच्चों ने है ।रावण का पुतला बनायाराम बनकरआग वाला तीर चलाया।फटे पटाखे, फेंके फूल,बच्चों ने खुशियाँ मनायीं भरपूर।दिवाली के 20 दिनपहले है आता।रावण हर शहर मेंजलाया जाता।दूर-दूर से लोगदेखने है आते।इसलिए कुल्लू का […]
दशहरे का त्यौहार है आयासबके लिये खुशियों की सौगात है लाया।दशहरे का है यह त्यौहारअच्छाई पर होगी बुराई की हार।सदियों से यह त्यौहार मनाया।राम के हाथोंरावण का पुतला जलाया।हमको भी अपने दिल सेबुराई को मिटाना […]
जन-जन कीपरंपरा है दशहराजिसे मनाता हैपूरा हिंदुस्तान हमारा।आओ मिलकररावण को जलायेऔर इस त्यौहार कामहत्व सबको बताएं।जलता हुआ रावणदिखलाकर सबकोबुराई पर अच्छाई कीजीत दिखलाएं। वंशिका, 7वीं की छात्राराजकीय उत्कृष्ट वरिष्ठ माध्यमिक, गाहलिया, कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
5 अक्टूबर को एक त्यौहार आया है,इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है।दशहरे के नाम से इसे पुकारा जाता है।श्री राम ने इस दिन विजय पाई थी,रावण के साथ बुराई […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय चिन्दी-चिन्दी रातें पायीं,फाँकों में मुलाक़ात रही।मुरझायीं पंखुरियाँ देखीं,सहमी-सकुची बात रही।बेमुराद आँसू हैं छलके,याद पुरानी घात रही।दुलराते बूढ़े ज़ख़्मों को,बची-खुची बस रात रही।दौड़ा-धूपा हाथ न आया,परवशता की लात रही।भूखा पेट मौन […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय मेरी निगाहों की भाषा मत लिख!मेरी नज़रों की आशा मत लिख!देख! मंज़र जवाँ हो रहा हौले-हौले,मेरे नेत्रों की अभिलाषा मत लिख!तुझे बूझते-बूझते बुझता जा रहा,मेरी आँखों की परिभाषा मत लिख!ज़माना […]
——०एक अभिव्यक्ति०—— ● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय कोई कट गया उनकी नज़रों से,पर्द: हट गया उनकी नज़रों से।झुकीं निगाहें क़ह्र बरपाती रहीं,मन फट गया उनकी नज़रों से।ग़ैरों मे शामिल थे और अपनो मे,अपना बँट गया […]
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय केने से तू अइलू,केने से तू गइलू।अदतिया न छूटलि,घींच-घाँच के खइलू।सोगहग भा खाँड़ी-चुकी,मिलल जौन पइलू।नीमन भा बाउर,अपना मन के कइलू।पहले रहलू करियठ,चीकन अब कहइलू।तुहूँ ए लोकवा में,अपना लेखा भइलू। (सर्वाधिकार सुरक्षित– […]
●आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–कैसा यह भगवान् है, चोर-चमारी भक्ति।मन्दिर मे मूरत दिखे, उड़न-छू हुई शक्ति।।दो–पट्टी बाँधे आँख मे, देश जगाता चोर।भक्त माल सब ले गये, कहीं नहीं अब शोर।।तीन–अजब-ग़ज़ब के लोग हैं, शर्म-हया से […]
हम अपनों के बिन अधूरे हैं ,छोटा सा जीवन ! देखा है हमनेअपनों के बिन, ये जिंदगी अधूरी हैहम अपनो के बिन अधूरे हैं। छोटा सा जीवन!सपने हैं मेरे बस इन्हीं से, देखा है हमने,बिन […]
1–मेरा घर छोटा–सा ही पर ,मेरे घर में रहनेवालों का दिल बहुत ही बड़ा है । 2–मैं महंगी वस्तुओं से नहीं,मैं बेला ,गुलाब , गुड़हल ,चंपा , चमेली फूलों से ,घर को सजा कर रखती […]
ख्वाहिश है मेरी उड़ने कीमुझे गिरना न सिखाइए।ख्वाहिश है मेरी मोहब्बत कीमुझे नफ़रत न सिखाइए।ख्वाहिश है मेरी जीतने कीमुझे हारना न सिखाइए।ख्वाहिश है मेरी मुस्कुराने कीमुझे रुलाना न सिखाइए।ख्वाहिश है मेरी जीने कीमुझे मरना न […]
हे संध्या ! रुको !थोड़ा धीरे – धीरे जानाइतनी जल्दी भी क्या है ?लौट आने दो!उन्हें अपने घरों में,जो सुबह से निकले हैंदो वक्त रोटी की तलाश में, मैं बैठी हूं अकेली,ना सखियाँ, ना कोई […]
मृत्यु का जयघोष होगाना तुम होगे ना हम होंगे।मृत्यु का हाहाकार होगान पाप होंगे ना पुण्य होंगे।मृत्यु का तांडव होगान अपने होंगे न पराए होंगे।मृत्यु का नाच होगान घर होगा न गृहस्थी होगी।मृत्यु का रुदन […]
मैं पंथ से विपंथ न हो जाऊंमुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर।मैं भक्त से अभक्त न बन जाऊंमुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर।मैं पुण्य से पाप की तरफ न बढ़ जाऊंमुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर।मैं न्याय से […]
हर नारी की कहानी एक ही जैसी लगती ,कैसे कहूंँ मैं, अंतर्मन में पीड़ा को छुपाएंसपने को सजाती, औरों परअपार स्नेह लुटाती, स्वयं प्रेम की बोली के लिए तड़प जाती, एक नारी की व्यथा कोकौन […]
आखिरी भ्रम थाछटने लगा धुंध परछाईयों सेतुम मेरे साथ हो ! अजीब किनारे से चुप होकरप्रतिक्रिया देने के लिए हर बारएक सीधा सवाल कर जाते हो । आखिरी भ्रम थाये सीधी सरल जिंदगी अभीदो कदम […]
ठिठुरती है ग्रीष्म में अब हिंदी वाणीवर्णमाला की नौका में आया है पानी। हिंदी के प्रियतम खिवैया बनकर इसमे बैठियेविपरीत धारा से ये आजन्म यात्रा कीजिए। हरिचरित के स्वरूप का यह बखान करतीदेश की संस्कृति […]
प्रेम उम्र नहींएहसास देखता है।प्रेम लगाव नहींतड़प देखता है।प्रेम मुस्कुराहट नहींआंखों में बहतेअश़्क देखता है।प्रेम हमउम्र नहींहमराही देखता है।प्रेम बहस नहींझुकाव देखता है।प्रेम बहता हुआ पानी नहींजलती हुई आग देखता है।प्रेम ह्रदय का रूप नहींचेहरे […]
धूल में मिट्टी के कण की तरह थे, आसमान का तारा बना दिया। कितने प्यारे हैं हमारे अध्यापक, हर काम के काबिल बना दिया। बहुत याद आओगे हमेशा, कौन समझाएगा हमें आप जैसा। हर काम […]
हर बार यह दिन आता है, शिक्षक दिवस यह कहलाता है। 5 सितंबर का दिन जब आता है, इसे डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। सही राह पर चलना सिखाते […]
कुछ नादानियांकुछ अठखेलियांबाकी है मुझ में ।क्षण-क्षण घूमतीमृत्यु के बीच मेंजीवांत जीवनबाकी है मुझ में।झूठ के चलते बवंडर मेंसत्य काजलता हुआ दीपकबाकी है मुझ में।जीवन मृत्यु के बोध मेंहे!ईश्वर तेरा ध्यानबाकी है मुझ में। राजीव […]
वैसे तो जिंदा हूं,पर अंदर से मर चुकी हूं,हे जिंदगी !मैं तुझ से लड़-लड़ के थक चुकी हूं ।लोग कहते हैं यह करवह कर, पर मेरी मां कहती है ,तू जो कर पाए वह कर […]
जीवन और मृत्यु का भेदतुमको कुछ बतलाऊंगा।हो सका तो तुमकोसच्चा जीवन निर्वाह सिखलाऊंगा।क्षणभर का जीवनक्षणभर की मृत्युफिर भीतुमको कुछ बतलाऊंगा।भेदभाव की नीवजो रखी तुमनेंउसको भी एक दिन मिटाऊंगा।धर्म के नाम परअधर्म तुम करते होधर्म की […]
सुबह-सवेरेउठो-उठो अब आंखे खोलोसबसे प्यारी बातें बोलो।सूरज जगा हुआ प्रभातढल गई है सारी रात।चिड़िया ने फिर गाना गायासबके मन को खूब हर्षाया।बच्चे चले स्कूल की ओरजिनके हाथों भविष्य की डोर।चलो चलो अब जागो प्यारेउज्ज्वल होंगे […]
जाग मछंदर गोरख आयाअलख निरंजन नाद सुनाया।महाकाल का भगत बनायाचौसठ योगिनी90 भैरव का गान सुनाया।52 वीर भी संग लाया,जाहरवीर को शिष्य बनायामहावीर संगभगवती काली का गुण गाया।जाग मछंदर गोरख आयाआदेश आदेश आदेश करसब में अलख […]
तिरंगे में केसरिया रंग आता है ,जो त्याग और बलिदान की भावना बढ़ाता है ।तिरंगे में सफेद रंग आता है,जो शांति, एकता और सच्चाई को बनाए रखता है।तिरंगे में हरा रंग आता है,जो विश्वास और […]
तीन रंग का झंडा हमारा, इसमें बस्ता है जहान सारा। केसरिया,सफेद, हरा इसको भाए, हर जगह खुशहाली ही खुशहाली छाए। आओ मिलकर तिरंगा फहराए, आजादी दिवस को खुशी खुशी मनाएं। हम हिंदू हिंदुस्तान की शान […]
स्वतंत्र देश के परतंत्र नागरिकों जागोअपने अधिकारों के प्रति ही नहींअपने कर्तव्यों के प्रति भी। स्वतंत्र देश के परतंत्र नागरिकों जागोअपने धर्म की रक्षा के लिए ही नहींदूसरे धर्मों के मान-सम्मान के लिए भी। स्वतंत्र […]
बहना छोड़ो न अपना भाई।माना हम कमजोर बहुत, स्तर जीवन छोटा।।आने जाने में होती फजीहत, बिन पेंदी का लोटा।।एक ही मां के गर्भ रहे हैं, एक ही पितु और माई।बहना छोड़ो न अपना भाई।। बढ़ा […]
दोस्ती में,भेदभाव नहीं होता ,दोस्ती में ,अटूट प्रेम होता है। दोस्ती में ,ना कहने की गुंजाइश नहीं होती,दोस्ती में ,समर्पण की भावना होती है। दोस्ती में ,धन दौलत का कोई मोल नहीं ,दोस्ती मे ,सहयोग […]
अन्तर्द्वन्द्व से परे ● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय [अभी-अभी मेरे विचारलोक मे एक साथ इतने शब्दचित्र उतरने लगे कि तज्जनित/तज्जन्य (‘तद्जनित’ अशुद्ध है।) विविध भाव/रस का प्लावन होने लगा और उसकी राशि की निष्पत्ति अधोटंकित […]
व्यक्तित्व ही व्यक्ति की अस्मिता, जिनका कोई व्यक्तित्व नहीं! वह भी! क्या कोई व्यक्ति? बिन व्यक्तित्व के व्यक्ति धरती का बोझ, व्यक्ति ही व्यक्तित्व खोजें, ना पहचान सकें अपना रूप, कहते लोगों से फिरते, ना […]
तुम जो आये हो शहर से जैसे आये हो बाजार से। न चेहरे पर ख़ुशी, सिलवटों ने बढ़ा दिया कुछ परेशानियों को। यहाँ जो दौलत थी छिन सी गई शहर के बाजार में तुम ले […]
तुम मेरे दिल के इतने क़रीब हो, चाह कर भी मैं तुम्हें भूल नहीं सकती। तुम मीठा–सा मेरे हृदय का वह एहसास हो, जिसे याद करके मेरा रोम–रोम पुलकित हो उठता है। चेतनाप्रकाश चितेरी, प्रयागराज
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–गति सबही की एक है, दुर्गति अलग विधान।पापी समझ न पा रहे, पाते नहीं निदान।।दो–पापी इस संसार मे, भाँति-भाँति के लोग।लटके उलटा हैं दिखें, तन के-मन के रोग।।तीन–घटिया शासन-नीति है, […]
नफरत की नहींमोहब्बत कीआजमाइश करो।पराएयो की नहींअपनों कीआजमाइश करो।बुराई की नहींअच्छाई का ढोंगकरने वालों कीआजमाइश करो।दिल दुखाने वालों की नहींदिल लगाने वालों कीआजमाइश करो।मरने वालों की नहींजीने वालों कीआजमाइश करो।कड़वी जुबान की नहींशहद से मीठे […]
हमसफर ऐसा होना चाहिए, जो समझाए नहीं समझे। हमसफर ऐसा होना चाहिए, जो जिस्म से नहीं रूह से प्यार करे। हमसफर ऐसा होना चाहिए, जो रुलाए नहीं हर समय हँसाए। हमसफर ऐसा होना चाहिए, जो […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय आकाश में उछालते हो, ‘मन’ की बातें?धरती पर उगा दो, कुछ ‘तन’ की बातें।हवा उड़ान भरती है, सोच-समझकर,मन से बात से उतरी है, मन की घातें।फुटपाथ पर जाओ और देखा […]
मैं आज भी तुमको ढूंढता हूंतेरी अनकही बातों में,मैं आज भी तुमको ढूंढता हूंतेरी खामोश हुई चुपी में,मैं आज भी तुमको ढूंढता हूंइन बरसती हुई बरसातों में,मैं आज भी तुमको ढूंढता हूंइन मखमली सी शामों […]
ना कोई मोहब्बत होती है ,ना कोई इश्क होता है ,यह सब जिस्म के खेल होते हैं ।कोई अपना नहीं होता,सोच समझ कर जीना जिंदगी,यहां सब मतलब के लिए होते हैं ।इस दुनिया में जीना […]
मैं न जानू काल को,मैं जानू बस महाकाल।रिद्धि सिद्धिमुझे न भाएप्रेम, स्नेह और भक्तिमुझे में वो सदा जगाये।हंसते खेलतेमुझे अपने गले लगाएं।जान शिशु अपनामुझे रिझाए।अलख निरंजन बनमुझे नाद सुनाएं।चार वेदों का भीमुझे ज्ञान करवाएं।योग विद्या […]
सुन मेरी लाडली बहना ,ओ मेरी प्यारी बहना ,छोटी – छोटी बातों पे ,धन्यवाद कह ,अपने भाई को शर्मिंदा न कर। सुन मेरी बहना, ओ मेरी लाडली बहनातेरा हक है मुझ पर ,तनिक तू संकोच […]
मत बांधोइन नन्हीं चिड़ियो कोखुले नील गगन मेंउड़ने दो।नन्हे-नन्हे पंखों सेसहसा इनको भी तोउड़ान भरने दो।लड़की हुई तो क्या हुआइनको भी तोअपना नामरोशन करने दो।खुद योनि का भेद करपहला योन शोषणतुम ही करते हो।लड़की-लड़की बोल […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय प्रणयपंछी विकल उड़ने के लिए,ताकता हर क्षण गगन की ओर है।किन्तु ममता की करुण विरह-व्यथा,ज्ञानपथ को आज देती मोड़ है।धैर्य की सीमा सबल को तोड़कर,दर्द की लतिका हरी बढ़ने लगी,अर्चना […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–न्याय कहाँ मिलता यहाँ, बड़े-बड़ों का खेल।एड़ी फटती हर जगह, पापी-पापी-मेल।।दो–लज्जा उससे दूर है, लज्जा को भी लाज।सीरत-सूरत इस तरह, कोढ़ी को हो खाज।।तीन–अपना किसको हम कहें, किस पर हो […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–कहते ख़ुद को जगद्गुरु, पतित बन गये लोग।कथनी-करनी छेद है, पापकर्म है भोग।।दो–सम्मोहित हैं सब यहाँ, नहीं किसी को होश।दिखते मनबढ़ एक-से, ख़ाली करते कोष।।तीन–क़लम बिकाऊ दिख रहे, बिकते हैं […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय मै मौन हूँ।तेरा मौन और मेरे भीतर केउमड़ते-घुमड़ते मौन मेएक बहुत अधिक फ़र्क़ है :–तू चुप्पी को पीता रहता हैऔर मै,तुझे पीता रहता हूँ।दोनो के पीने मे फ़र्क़ है :–तू […]