● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
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इन दिनो वैश्विक क्षितिज पर गौतम आडानी और उनके भाई राजेश आडवानी का बेटा सागर आडानी-सहित कुल छ: लोग चर्चा के केन्द्र मे हैँ, जिन पर संयुक्त राज्य अमेरिका के क़ानून ‘फॉरेन करप्ट प्रैक्टिसेज एक्ट’ (एफ० सी० पी० ए०) के अन्तर्गत गम्भीर आरोप लगाये गये हैँ।
देखा जाये तो भारत मे नम्बर दो के उद्योगपति गौतम आडवानी का विवादोँ के साथ पहले से ही नाता रहा है। उनके साथ पहला विवाद जनवरी, २०२३ ई० का है, जिसे लेकर हिण्डनबर्ग रिसर्च ने मनी लाण्ड्रिंग के आरोप लगाये गये थे। दरअस्ल, गौतम आडानी की फ़्लैगशिप कम्पनी ‘आडानी एण्टरप्राइजेज’ ने २० हज़ार करोड़ रुपये का फॉलोऑन पब्लिक ऑफर लाने की घोषणा की थी। वह ऑफर २७ जनवरी, २०२३ ई० को हिण्डनबर्ग रिसर्च ने जो रिपोर्ट प्रसारित किया था, जिसमे आडानी-समूह पर मनी लॉण्ड्रिंग से लेकर शेअर मैनिपुलेशन-जैसे आरोप मढ़े थे। दूसरा विवाद लो-ग्रेड कोयले को हाइ-ग्रेड मे बेचने का आरोप है। जनवरी, २०१४ ई० मे आडानी-समूह ने एक इण्डोनेशियाई कम्पनी से २८ डॉलर (लगभग २,३६० रुपये) प्रति टन के मूल्य पर ‘लो-ग्रेड’ कोयला क्रय किया था, जिसे तमिलनाडु जेनरेशन ऐण्ड डिस्ट्रिब्यूशन कम्पनी को ‘हाइ-ग्रेड’ वाले कोयले के रूप मे ९१.९१ डॉलर (लगभग ७, ७,७५० रुपये) प्रतिटन के औसत मूल्य पर विक्रय कर दिया गया था।
जिस व्यक्ति पर भारत के प्रतिपक्षी नेता राहुल गांधी लगातार अँगुलियाँ उठाते आ रहे हैँ और सत्तापक्ष के लोग नकारते आ रहे हैँ, उस पर संयुक्त राज्य अमेरिका और केन्या ने अपनी-अपनी मुहर लगा दी है।
‘युनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेण्ट ऑव़ जस्टिस’ एवं ‘युनाइटेड स्टेट्स सिक्योरिटीज ऐण्ड एक्सचेंज कमीशन’ की ओर से २४ अक्तूबर, २०२४ ई० को आडानी-समूह की कम्पनी ‘आडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड’ और विदेशी कम्पनी ‘एज्योर पॉवर’ के विरुद्ध ब्रुकलिन (न्यूयॉर्क) के फेडरल कोर्ट मे गौतम आडानी, सागर आडानी, विनीत एस० जैन, रंजीत गुप्ता, साइरिल कैबेनिस, सौरभ अग्रवाल, दीपक मल्होत्रा तथा रूपेश अग्रवाल के विरुद्ध उपर्युक्त आपराधिक प्रकरण को दर्ज़ कराया गया है। उस न्यायालय मे अलग से एक नागरिक मुक़द्दमा (सिविल सूट) भी दर्ज़ कराया गया है। उस प्रकरण के अन्तर्गत कहा गया है कि गौतम आडानी-समूह ने भारत के शासकीय अधिकारियोँ को २६५ मिलियन डॉलर (लगभग २,२०० करोड़ रुपये) की रिश्वत देकर ओडिशा, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ तथा जम्मू-कश्मीर मे ‘सौर ऊर्जा’ का ठीका हासिल किया है। उन सब पर प्रतिभूति-नियमो के धोखाधड़ी-रोधक प्रविधानो के उल्लंघन करने का भी आरोप मढ़ा गया है। आडानी को आरोपित करते हुए कहा गया है कि उन्होँने वर्ष २०२१ मे आन्ध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री जगमोहन रेड्डी से भेँट की थी, जिसके परिणामानुसार वह राज्य-सरकार ७,००० मेगावाट बिजली क्रय पर सहमत हो गयी थी। यह भी आरोपित किया गया है कि साइरिल कैबेनिस, सौरभ अग्रवाल, दीपक मल्होत्रा तथा रूपेश अग्रवाल ने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्योँ को नष्ट करके ग्रैण्ड ज्यूरी, सिक्योरिटीज ऐण्ड एक्सचेंज कमीशन (एस० ई० सी०) और एफ० बी० आइ० को भ्रमित करके न्याय-प्रक्रिया मे व्यवधान उत्पन्न करने का प्रयास किया था तथा जाँच रोकने का षड्यन्त्र रचा था। उन चारोँ अधिकारियोँ ने घोटाले-काण्ड से जुड़े ई० मेल, मैसेज तथा एनालिसिस भी मिटाये थे। इस समूचे प्रकरण की सुनवाई २० नवम्बर, २०२४ ई० को की गयी थी, जिसमे ‘रॉयटर्स’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, गौतम आडानी और उनके भतीजे, आडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के प्रमुख अधिकारी सागर आडानी के विरुद्ध गिरिफ़्तारी वारण्ट जारी कर दिया गया है।
गौतम आडानी अभी इस संकट से उबरे ही नहीँ हैँ कि केन्या के राष्ट्रपति विलियम रूटो ने पिछले २० नवम्बर को आडानी-समूह के दो प्रमुख परियोजना-समझौता को निरस्त करने की घोषणा कर दी थी। केन्या-सरकार ने आडानी-समूह के साथ ३० वर्षोँ के लिए ७३६ मिलियन डॉलर (६,२१७ करोड़ रुपये) की पॉवर ट्रांसमिशन का समझौता किया था, जिसके अन्तर्गत केन्या मे विद्युत-ट्रांसमिशन के लिए आधारमूलक ढाँचा तैयार करना था। इसके अतिरिक्त आडानी-समूह का १.८ बिलियन डॉलर (१५,२०५ करोड़ रुपये) का प्रस्ताव भी था, जिसके अन्तर्गत एक अन्तरराष्ट्रीय वायुयान-केन्द्र का विकास करना था; परन्तु आडवानी-समूह की बेईमानी को भाँपते हुए, केन्या के राष्ट्रपति ने कुल २१, ४२२ करोड़ रुपये के दोनो समझौतोँ को तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया है।
ज्ञातव्य है कि आडानी-समूह ने वर्ष २०२१ मे स्थानीय रूप से विनिर्मित सौर सेल और माड्यूल-आधारित संयन्त्रोँ का उपयोग करके ८,००० मेगावाट विद्युत-आपूर्ति के लिए बोली जीती थी; परन्तु उक्त समूह विद्युत-क्रय करनेवाली राज्य-सरकारोँ की मूल्य-अपेक्षाओँ पर खरा न उतर सका।
अब प्रश्न है, यह आपराधिक मुक़द्दमा और कहीँ भी तो किया जा सकता था, संयुक्त राज्य अमेरिका के ही न्यायालय मे क्योँ? उत्तर साफ़ है कि गौतम आडानी ने भारतीय सरकारी अधिकारियोँ को रिश्वत देने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के बैंकोँ और निवेशकोँ से झूठ बोलकर उनसे निवेश कराये थे। आडानी की परियोजना मे वहाँ के बैंकोँ और निवेशकोँ की धनराशि लगायी गयी थी तथा वहाँ के क़ानून के अन्तर्गत उस धनराशि को रिश्वत के रूप मे देना अपराध है, इसलिए संयुक्त राज्य अमेरिका मे मुक़द्दमा किया गया था।
आडवानी-समूह का सफर : एक दृष्टि मे
वर्ष १९९४– १५० रुपये शेअर के अन्तर्गत बी० एस० ई० और एन० एस० ई० पर सूचिबद्ध।
वर्ष १९९५– सिंगापुर मे विल्मर के साथ जाइण्ट वेंचर पर हस्ताक्षर किये गये।
वर्ष १९९६– बी० जे० पी० के पूर्णकालिक कार्यकर्त्ता बने।
वर्ष– २००१– सिटी गैस वितरण का व्यापार आरम्भ किया।
वर्ष २०१०– ऑस्ट्रेलिया की कारमाइकल खदान का अधिग्रहण किया।
वर्ष २०१७– सोलर पी० वी० पैनल का निर्माण-कार्य आरम्भ किया।
वर्ष २०१८– भारत मे सबसे बड़े फूड एफ० एम० सी० जी० ब्राण्ड बनकर ‘फार्च्यून’ उभरा।
वर्ष २०२०– आडानी-समूह के वायुयान-केन्द्र के उद्योग मे प्रवेश किया।
उल्लेखनीय है कि संयुक्त राज्य अमेरिकी अभियोजक ने आरोप लगाया है कि आडानी की कम्पनी को हाल ही मे केन्द्र की कम्पनी 'सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑव़ इण्डिया' (एस० ई० सी० आइ०) से १२ गीगावॉट (१२ हज़ार मेगावॉट) सौर ऊर्जा उपलब्ध कराने का ठीका मिला है; परन्तु एस० ई० सी० आइ० को ऊर्जा-क्रय करने के लिए भारत मे क्रेता नहीँ मिल रहे हैँ, जिसके कारण ये समझौते सम्भव ही नहीँ थे। यही कारण है कि 'आडानी ग्रीन एनर्जी' और 'एज्योर पॉवर' ने भारत के राज्य आन्ध्रप्रदेश-सरकार की ओर से ७ हज़ार मेगावॉट विद्युत क्रय करने के बदले वहाँ के सरकारी अधिकारियोँ को प्रति मेगावॉट २५ लाख रुपये यानी कुल २० करोड़ डॉलर (१,७५० करोड़ रुपये) की रिश्वत दी गयी थी। उक्त दोनो कम्पनियोँ ने रिश्वत के रूप मे धनराशि देने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के बैंकोँ और निवेशकोँ से झूठ बोलते हुए, १७.५ करोड़ डॉलर (१,४७८ रुपये) लिये थे। अपनी इस धूर्त्तता को छिपाने के लिए आडानी-समूह ने जिस कोड का इस्तेमाल किया था, वह था– 'न्यूमेरे यूनो' (द बिग मैन) था। गौतम आडानी का कोड-नम्बर 'ए' और 'बिग मैन' था, जबकि सागर आडानी का 'स्नेक' था।
दूसरी ओर, इस घटना के चलते, अडानी-समूह की सभी ११ कम्पनियोँ के स्टॉक मे गिरावट के कारण इनका संयुक्त मार्केट कैपिटल ३८ हज़ार करोड़ रुपये से गिरकर ११.६८ करोड़ रुपये हो गया है, जबकि दो कारोबारी दिवस मे आडानी-समूह को २.६९ करोड़ रुपये की क्षति हुई है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के कोर्ट मे जो दस्तावेज़ और साक्ष्य प्रस्तुत किये गये हैँ, वे बता रहे हैँ कि जो चार अधिकारी गौतम आडानी को बचाना चाहते थे, वे हैँ :– सिरिल कैबेनिज, सौरभ अग्रवाल, दीपक मल्होत्रा तथा रूपेश अग्रवाल, गौतम आडानी। इन चारोँ ने जो एफ० बी० आइ० को बयान दिया है, उससे सुस्पष्ट हो जाता है कि गौतम आडानी ने एज्योर कम्पनी के साथ मिलकर भारत मे ऊर्जा-परियोजना प्राप्त करने के लिए सरकारी अधिकारियोँ को रिश्वत दी थी। यही सामूहिक स्वीकारोक्ति आठोँ को आरोपित बनाकर मुक़द्दमा करने का आधार बना था।
संयुक्त राज्य अमेरिका के क़ानून की बात करेँ तो अभियोगपत्र के बाद अब इस पूरे प्रकरण मे कोर्ट मे बहस होगी अभियोजन और आरोपित पक्ष न्यायपटल पर अपने-अपने साक्ष्य प्रस्तुत करेँगे। जहाँ तक संयुक्त राज्य अमेरिका का भारत से प्रत्यर्पण की माँग करने का विषय है तो हमे भूलना नहीँ चाहिए कि गौतम आडानी अभी आरोपित हैँ, न कि अभियुक्त, इसलिए संयुक्त राज्य अमेरिका भारत से प्रत्यर्पण की माँग नहीँ कर सकता। दूसरी ओर, सभी आरोपित वहाँ के न्यायालय के आदेश को चुनौती दे सकते हैँ और गिरिफ़्तारी करने से रोकने की माँग कर सकते हैँ। वे ज़मानत के लिए याचिका भी प्रस्तुत कर सकते हैँ। इसके बाद भी आरोपितोँ को राहत नहीँ मिलती है तो वे वहाँ के उच्चतम न्यायालय मे निचले न्यायालय के आदेश के विरुद्ध प्रत्यावेदन कर सकते हैँ। इतना ही नहीँ, यदि संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति चाह ले तो इस प्रकरण को समाप्त भी करा सकता है। इससे यही लगता है कि निकट भविष्य मे जब डोनाल्ड ट्रम्प वहाँ के राष्ट्रपतिपद-भार ग्रहण करेँगे तो उपर्युक्त प्रकरण को समाप्त कर देँगे; क्योँकि नरेन्द मोदी के अति प्रिय गौतम आडानी हैँ और डोनाल्ड ट्रम्प भी।
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