डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-
चिन्दी-चिन्दी रातें पायीं,
फाँकों में मुलाक़ातें पायीं |
मुरझायीं पंखुरियाँ देखीं,
कही-अनकही बातें पायीं |
बेमुराद आँसू छलके जब,
याद पुरानी घातें आयीं |
दुलराते बूढ़े ज़ख़्मों को,
यादों की रातें घहरायीं |
शातिर की हर चाल पे मैंने,
ठगा-ठगा रह मातें खायीं |
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; ४ अक्तूबर, २०१७ ई०)