चिट्ठी न कोई संदेश

नीना अन्दोत्रा पठानिया-


चलो उर्मी तैयार हो जाओ , मार्किट जाना है कुछ सामान लाने वाला है। ग़ज़लें सुन रही उर्मी को उसकी सास नीलम ने कहा ।
चलते है माँ बस एक लास्ट सुनने दो….. ,फिर चलते है ।
नहीं बिल्कुल भी नहीं……सुनेगी और फिर उदास हो जायगी और मैं नही चाहती तू उदास रहे ।
मैं चाहती हूँ तू खुश रहे मेरे लिए और उसके लिए जो तेरी कोख में पल रहा है ।
तभी गजल शुरू हो गई …”चिट्ठी न कोई संदेश न जाने वो कौन सा देश यहाँ तुम चले गये… । गजल शुरू होते दोनों सास-बहू शांत होकर गज़ल में खो गई। अतीत की बंद किताब को दोनों सास-बहू एक दूसरे से छुपकर खोलती और बंद कर देती पर एक दुसरे को मजबूत बनकर दिखाती ।
गज़ल ख़त्म होने तक नीलम ने अपनी आखें साफ कर ली थी पर उर्मी अभी भी अतीत के समुंदर में थी ।
उर्मी मेरी बच्ची ! मेरा बेटा भी तू है और बहुू भी तू , सब तुझे ही देखना है । रोती हुई उर्मी को चुप कराते हुए नीलम बोली ,वह अपनी बहू के दर्द को समझती थी ।
किसने यह युद्ध बनाया माँ ? क्यों मुझ जैसी लडकियाँ सारी उमर इंतजार करती रहती है, मैं जानती हूँ कमल नहीं आएगा पर मुझे हर पल उसका इंतजार रहता है, सिसकती हुई उर्मी ने कहा ।
मैंने भी तो अपना बेटा खोया है उर्मी पर मुझे जीना है, तेरे लिए और उस कमल के लिए जो  इस दुनिया में आने वाला है और मेरे लिए, कहते -कहते रोती हुई नीलम ने उर्मी को प्यार से गले लगा लिया ।