सत्य-न्याय और सामाजिक समानता के लिए हुई बग़ावत के मुखिया क्रान्तिकारी चित्तू पाण्डेय को नमन

डॉ० निर्मल पाण्डेय (लेखक व इतिहासकार)

डॉ• निर्मल पाण्डेय

● अन्याय के ख़िलाफ़ हर बलियावासी-हर देशवासी के अंदर बग़ावत का अक्षय स्रोत है।

जिस बग़ावत की चिंगारी अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ 1857 में मंगल पाण्डेय ने चटकायी थी, 19 अगस्त 1942 को ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में बलिया ने चित्तू पाण्डेय के नेतृत्व में बर्तानिया हुकूमत से आज़ाद करा ‘एक राष्ट्रीय सरकार’ की स्थापना कर उसे यथार्थ के धरातल पर उतारा। 1942 के आंदोलन के दौरान स्थापित ‘राष्ट्रीय सरकारों’ में बलिया पहला था। वे लगभग दो हफ़्ते तक उसके मुखिया रहे। चित्तू पाण्डेय को जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस ने इसके लिए उन्हें ‘टाइगर ऑफ़ बलिया’ मने ‘शेरे बलिया’ की उपाधि से नवाज़ा।

10 मई 1898 को बलिया के रातुचक गाँव में पैदा हुए चित्तू पाण्डेय असहयोग आन्दोलन के दौरान जो पहली बार जेल गए, तो फिर उनका ‘बर्तानिया अन्याय के खिलाफ़ आवाज उठाना और जेल जाना’ रुका नहीं। 1930 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन में, 1932 मैल्कम हैली (संयुक्त प्रान्त के तत्कालीन गवर्नर) के खिलाफ़ काला झंडा दिखाने पे जेल गए। सन् बयालीस के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय भी वो जेल में ही बंद थे, बाहर निकलकर उन्होंने बलिया की ‘संप्रभु राष्ट्रीय सरकार’ की स्थापना की। अप्रैल, 1946 में संयुक्त प्रान्त के प्रांतीय असेंबली के वे सदस्य चुने गये।

‘बलिया’ के नाम के साथ ‘बाग़ी’ जुड़ना ये अनायास ही नही है। इतिहासकारों का मानना है कि भारत छोड़ो आंदोलन में बलिया की ऐसी ज़बरदस्त प्रतिरोध की प्रतिक्रिया इस मामले में विशेष थी क्यूँ कि कांग्रेस का बलिया में संगठन और उनका सांगठनिक ढांचा ऐसी स्थिति में नहीं था कि ऐसे सफल आंदोलन को जन्म सके। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और विद्यापीठ में पढ़े बलिया के छात्र-छात्राओं के आक्रोश ने इसे सफल बनाने में सहयोग दिया, जो बनारस से ग़ाज़ीपुर -बिल्थरारोड की तरफ़ से रेलवे की पटरियों को उखाड़ते, डाक-तार के तारों को निष्क्रिय करते, और सरकारी मशीनरी को ठप करते बलिया तक पहुँचे।

कहते हैं बलिया पर पुनः अधिकार के बाद ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ़ कॉमंस में घोषणा हुयी, कि ‘बलिया रीकांकर्ड’। बलिया अगस्त क्रांति की स्मृति 2001 में भारतीय डाक विभाग द्वारा एक पोस्टल स्टैम्प भी लॉंच किया गया।

1942 में थोड़े समय के लिए ही सही, पचहत्तर सालों बाद भी ‘बलिया के सम्प्रभु गणराज्य’ की स्थापना की वो गर्म तासीर हर बलियावासियों में आज भी महसूस की जा सकती है। अन्याय के ख़िलाफ़ हर बलियावासी-हर देशवासी के अंदर बग़ावत का अक्षय स्रोत है सन् बयालिस में ‘सम्प्रभु बलिया गणराज्य’ की स्थापना।

सत्य-न्याय और सामाजिक समानता के लिए हुई उस बग़ावत के मुखिया रहे चित्तू पाण्डेय की आज जयंती है। उनका संघर्ष-उनका जीवन चरित बताता है कि ‘यूँ ही नहीं कोई बाग़ी बन जाता’। अन्याय के ख़िलाफ मुखर अभियक्ति के प्रतीक पुरुष शेरे बलिया चित्तू पाण्डेय की आज जयंती है।

जयंती पर उन्हें शत-शत नमन।